सूरजमल विहार दिल्ली में आचार्य श्री सौरभसागर जी महाराज के सान्निध्य में विद्वानों ने प्रस्तुत किए आलेख
दिल्ली। परम पूज्य आचार्य श्री सौरभसागर जी महाराज के सान्निध्य में 17 व 18 अगस्त 2024 को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जैनाचार संहिता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। संगोष्ठी के निर्देशक डॉ. नरेंद्र कुमार जैन टीकमगढ़ व संयोजक पंडित संदीप जैन ‘सजल’ रहे।
संगोष्ठी में चार सत्र सम्पन्न हुए।
17 अगस्त को प्रातःबेला में प्रथम उदघाटन सत्र की अध्यक्षता डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़ ने तथा संचालन पंडित संदीप जैन सजल ने किया। चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन के साथ सत्र शुरू किया गया। इस सत्र में डॉ. पंकज जैन इंदौर ने -जैनाचार संहिता में विवाह का शास्त्रीय चिंतन, और डॉ. शैलेश जैन बाँसवाड़ा-पुरूषार्थ चतुष्टय जैनाचार संहिता के संदर्भ में विषय पर आलेख प्रस्तुत किए।
दोपहर में आयोजित द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ. पंकज जैन इंदौर और सत्र संचालन डॉ. राजेश जैन ललितपुर ने किया। इस सत्र में डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर ने – जैनाचार संहिता में आए तीर्थंकरों के प्रसंग, पंडित सुनील सुधाकर सागर -मृत्यु भोज उचित या अनुचित जैनाचार संहिता के संदर्भ में, डॉ आशीष जैन बम्होरी-आचार्य श्री सौरभ सागर जी महाराज की गुरु परंपरा, डॉ. ममता जैन पुणे-जैनाचार संहिता के संदर्भ में महिलाओं का दायित्व ने आलेख प्रस्तुत किए।
18 अगस्त को प्रातः तृतीय सत्र की अध्यक्षता डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर ने तथा सत्र का संचालन पंडित सुनील सुधाकर सागर ने किया। इस सत्र में डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन टीकमगढ़ ने धर्म का स्वरूप और उसकी उपयोगिता जैनाचार संहिता के संदर्भ में, डॉ. आशीष जैन आचार्य शाहगढ़-जैनाचार संहिता में दिव्यध्वनि और उसकी भाषा का चिंतन,
डॉ. राजेश शास्त्री ललितपुर – सूतक-पातक जैनाचार संहिता के सन्दर्भ में विषय पर अपने आलेख प्रस्तुत किए।
दोपहर में समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़ व संचालन डॉ. आशीष शास्त्री बम्होरी ने किया।
इस सत्र में डॉ. सोनल कुमार जैन दिल्ली ने -जन्मदिन जैनाचार संहिता के संदर्भ में, पंडित अरुण शास्त्री जबलपुर-दिगम्बर जैनाचार्यों द्वारा वर्णित जैनत्व के संस्कार जैनाचार संहिता के संदर्भ में, पंडित संदीप ‘सजल’-आचार्य श्री सौरभसागर जी महाराज का व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर अपने आलेख प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री सौरभसागर जी महाराज ने कहा कि जैन होना बहुत सरल है जैनी होना बहुत कठिन है। आप में संस्कार रहेंगे तो संस्कृति रहेगी। संस्कारों का होना बहुत जरूरी है। जैन तो जन्म से हो कर्म से जैनी बनो। आज संस्कार खंडित होते जा रहे हैं। विद्वानों को आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा कि नवीन चिंतन, विश्लेषण करते रहें, निरंतर और अधिक गति से जिनवाणी की सेवा में जुटें। युवा विद्वान तैयार हो रहे हैं यह खुशी की बात है। शास्त्र को शस्त्र न बनाएं। शास्त्र की गहराइयों में जाएंगे तो मोतियों सा जीवन पाएंगे। जैनाचार संहिता में संस्कार और संस्कृति भरी पड़ी है। जीवन में आचरण आ जायेगा तो अध्यात्म अपने आप आ जायेगा। वस्तु का स्वभाव धर्म है, व्यक्ति का चारित्र धर्म है, दया भाव से युक्त जीव ही धर्म से पूर्ण है। धर्म सुख का भंडार है। बच्चों के जन्मदिन पर मंदिर लाएं, पूजा विधान अभिषेक करें और व्युष्टि संस्कार कराएं। सदैव जैनी, जैनी के साथ भाईचारा रखें।
संगोष्ठी का आयोजन पुष्प वर्षायोग समिति व सकल दिगम्बर जैन समाज सूरजमल विहार दिल्ली के तत्वावधान में किया गया।
इस मौके पर अध्यक्ष संजीव जैन, उपाध्यक्ष मनोज जैन, राजेश जैन, महामंत्री रमेश चंद्र जैन, उपमंत्री अजय जैन , अविनाश जैन , कोषाध्यक्ष अरुण जैन आदि ने संगोष्ठी में समागत सभी विद्वानों को माला, तिलक, सम्मान पत्र, साहित्य आदि भेंटकर गरिमापूर्ण सम्मान से सम्मानित किया।
संगोष्ठी के निर्देशक डॉ. नरेन्द्र कुमार जी टीकमगढ़ ने परम पूज्य आचार्य श्री सौरभ सागर जी महाराज के सान्निध्य में ही भगवान महावीर स्वामी के 2550वे निर्वाणोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में णमोकार मंत्र पर एक संगोष्ठी आगामी समय में करने की घोषणा की। जिसकी विस्तृत जानकारी बाद में दी जाएगी।
इस दौरान पंडित विमल जैन, पंडित मदन जैन आदि भी उपस्थित रहे।