जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम पलवल में नवम् दिवस पर श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का दिव्य अभिषेक एवं उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना

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दिनांक: 05-09-2025, वार: शुक्रवार

दशलक्षण महापर्व का प्रत्येक दिवस आत्मा को निर्मल करने और आत्मोन्नति की राह दिखाने वाला होता है। इनमें से नवम् दिवस उत्तम आकिंचन धर्म के लिए समर्पित है। इस पवित्र अवसर पर जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल में श्रद्धा और भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिला। प्रातःकालीन बेला में जब भूगर्भ से अवतरित श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का पंचामृत अभिषेक हुआ, तो वातावरण में ऐसी दिव्यता छा गई मानो सम्पूर्ण सृष्टि भगवान की शांति-छाया में नहा रही हो। पुष्पवृष्टि और शांतिधारा के पावन क्षणों ने सभी के मन को अपूर्व शांति और आत्मिक उल्लास से भर दिया। इसके उपरांत शासन रक्षक देवी माँ पद्मावती जी का श्रृंगार किया गया। यह दृश्य श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत भावविभोर करने वाला रहा। इसके बाद उत्तम आकिंचन धर्म की पूजा सम्पन्न हुई, जिसमें श्रद्धालु गहन भक्ति और भावनाओं के साथ सहभागी बने।

इस अवसर पर नितिन जैन ने अपने भावुक उद्गार प्रकट करते हुए कहा—“उत्तम आकिंचन धर्म का मर्म केवल भौतिक वस्तुओं के त्याग तक सीमित नहीं है। आकिंचन का अर्थ है—‘कुछ भी मेरा नहीं’। जब मनुष्य अपने जीवन से ‘मेरा’ और ‘तेरा’ का भाव निकाल देता है, तभी उसकी आत्मा शुद्धता की ओर अग्रसर होती है। आकिंचन धर्म हमें यह सिखाता है कि संसार का कोई भी धन, वैभव, पद या प्रतिष्ठा स्थायी नहीं है। सब कुछ क्षणिक है, सब कुछ नश्वर है। जो स्थायी है, जो शाश्वत है, वह हमारी आत्मा है। और उस आत्मा की महिमा तभी प्रकट होती है, जब हम संग्रह की प्रवृत्ति को छोड़कर संतोष और विरक्ति का मार्ग अपनाते हैं।”

नितिन जैन ने आगे कहा—“आज का समाज संग्रह, प्रतिस्पर्धा और दिखावे में डूबा हुआ है। हर कोई अधिक से अधिक पाने की लालसा में जी रहा है, लेकिन इस अंधी दौड़ में आत्मा की शांति कहीं खो गई है। आकिंचन धर्म इस खोई हुई शांति को वापस लाने का दिव्य साधन है। यह धर्म हमें बताता है कि जितना अधिक हम अपने पास चीज़ें बाँधते हैं, उतना ही हम बंधनों में उलझते हैं। और जब हम उन्हें छोड़ना सीखते हैं, तो आत्मा हल्की होकर आकाश की तरह अनंत हो जाती है। यही हल्कापन, यही विरक्ति आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाती है। आकिंचन धर्म का अभ्यास करना वास्तव में आत्मा को पंख देने के समान है।”

उन्होंने अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में कहा—“हम सब गृहस्थ हैं, हमारे लिए संसार से पूर्ण विरक्ति कठिन हो सकती है, लेकिन आकिंचन का भाव अपनाना असंभव नहीं है। हमें बस इतना करना है कि अपने जीवन से लोभ, तृष्णा और ममता को कम करना शुरू कर दें। यदि हम छोटी-छोटी इच्छाओं को त्याग कर संतोष की भावना को अपनाएँ, तो हम धीरे-धीरे आकिंचन के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। यही अभ्यास हमें भीतर से पवित्र करेगा और हमें उस आत्मिक शांति तक ले जाएगा जिसकी खोज में आज पूरी दुनिया भटक रही है।”

नितिन जैन ने श्रद्धालुओं से आह्वान किया—“आइए, हम सब इस नवम् दिवस पर यह संकल्प लें कि आकिंचन धर्म को केवल एक पूजा तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ। क्योंकि जब हम ‘कुछ न होने’ की स्थिति को स्वीकार कर लेते हैं, तभी हमें यह दिव्य अनुभव होता है कि हमारे पास आत्मा की वह अनंत संपत्ति है जो किसी भी सांसारिक वैभव से कहीं अधिक महान और स्थायी है।”

उन्होंने अंत में कहा—“पलवल की यह पुण्यभूमि धन्य है कि यहाँ चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की दिव्य छत्रछाया में उत्तम आकिंचन धर्म की ऐसी अनुपम आराधना हुई। यह आयोजन केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मा को बंधनों से मुक्त करने की प्रेरणा है। आज हर श्रद्धालु जिसने इस दिवस की आराधना की, उसने निश्चय ही आत्मा की गहराइयों में शांति और संतोष का अनुभव किया होगा। यही आकिंचन धर्म की असली महिमा है—जहाँ कुछ भी अपना नहीं, वहाँ आत्मा ही सब कुछ है।”

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