जैन संत मुनिश्री विलोक सागर ने किए केशलोच

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सिर, दाढ़ी एवं मूंछों के बाल हाथों से उखाड़े।

मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन संतों साध्वियों की चर्या बहुत ही कठिन साध्य है । यहां तक कि वे अपने सिर, दाढ़ी, मूंछों के वालों को भी हाथ से उखाड़कर फैंकते हैं।
नगर में चातुर्मासरत युगल जैन संत मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज प्रतिदिन बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा के दौरान प्रवचनों और कक्षाओं के माध्यम से धर्मप्रभावना कर रहे हैं।
शुक्रवार को प्रातःकालीन वेला में मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने केशलोच किए । केशलोच जैन संतों के चर्या का एक हिस्सा है । वे अपने सिर, दाढ़ी, मूंछ के बाल निकालने के लिए किसी भी प्रकार के उपकरण कैंची, उस्तरा या ब्लेड आदि का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि वे उन वालों को प्रत्येक 45 दिनों अथवा दो माह के अंतराल में अपने हाथों से उखाड़कर साफ करते हैं । बालों को हाथों से उखाड़कर फेंकने की क्रिया को ही केशलोच कहा जाता है । यह उनके तपोबल का ही परिणाम है कि वे इस कठिन कार्य को करने पर भी तनिक विचलित नहीं होते । केशलोच की क्रिया जैन साधु की सबसे कठिन क्रियाओं में मानी जाती है । कभी कभी केशुलोच करते समय बालों के उंगलियों से फिसलने एवं खून के रिसने की भी आशंका रहती है, इसके लिए साधुगण शुद्ध राख का उपयोग करते हैं।
इस अवसर पर मुनिश्री विबोधसागर महाराज ने बताया कि जैन मुनि समस्त परिग्रह से रहित होते है तथा अपने पास केवल एक मयूर पंख से बनी पीछी रखते है । अतः बालों को हटाने के लिए वे उस्तरा, कैंची आदि अपने पास नहीं रख सकते और ना ही इनका प्रयोग कर सकते ।जैन मुनि स्वावलंबी होते है और उनकी चर्या सिंह के समान होती है इस लिए बाल हटाने के लिए किसी का सहारा भी नही लेते। इस लिए वे अपने हाथों से बालों को नोंच कर उखाड़ते है। इस क्रिया को केश लोंच कहते है। वैसे केशलोंच परिषह सहन करने के लिए भी जरूरी होता है। दिगम्बर मुनि महाव्रती होते है और 22 परिषह को सहज ही सहन करते है तथा 28 मूल गुणों का पालन करते है जिसमे हाथों से केशलोंच करना एक आवश्यक क्रिया है। और चूंकि केशलोंच करने से भी अनेक परजीवी छोटे जीवों की विराधना होती है जिसके प्राश्चियत स्वरूप मुनि उस दिन निराहार रह कर उपवास भी रखते हैं। अतः दिगम्बर मुनि अहिंसा की जीवंत छवि होते है जिनसे किसी भी जीव को किसी तरह का कोई भय नही रहता है। मुनि स्वयं भी अभय होते है और दूसरों को भी अभय ही प्रदान करते है।
जिस समय मुनिश्री विलोक सागर महाराज शांत मुद्रा में, मधुर मुस्कान के साथ केशलोच कर रहे थे, उस समय प्रकाशचंद साहुला, अनूप भंडारी, मनोज जैन नायक, बृजेश जैन दादा, सुनील जैन, दीपक जैन एवं अन्य साधर्मी बंधु मुनिश्री के समक्ष महामंत्र नमोकार का जाप एवं श्री जिनेंद्र प्रभु की स्तुति कर रहे थे ।

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