जैन समाज का गौरवशाली एवं प्रेरणादायी इतिहास
****************************** *********. विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.
जैन समाज वर्तमान में शासकीय आंकड़ों से भले ही अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ गया है। मगर हम गर्व से कह सकते हैं। जैनों का अतीत का इतिहास गौरवशाली रहा है। कभी ईशा से 1000 वर्ष पूर्व जैनों की जनसंख्या 40 करोड़ थी, जो ईशा से 500 -600 वर्ष पूर्व 25 करोड़ तथा अकबरे आईनी के अनुसार सन 1556 ईस्वी में अकबर के शासनकाल में जैन समाज की जनसंख्या 4 करोड़ थी। एक अंग्रेजी गजट के अनुसार सन 1947 में जैनों की जनसंख्या 9 करोड़ थी एवं पिछली जनगणना के अनुसार भारत में जैनों की जनसंख्या मात्र 44.02 लाख ही रह गई।
हम भले ही सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत वर्ष में मात्र 44 लाख रह गए हैं, मगर जैन समाज का गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरणादायी एवं भगवान महावीर के जिओ एवं जीने दो के अहिंसा सिद्धांत पर चलने की प्रेरणा देता है। जैन संस्कृति विश्व की महान एवं प्राचीन संस्कृतियों में एक है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त मुद्रा एवं उस पर अंकित ऋषभदेव का सूचक बैल तथा सील नंबर 449 पर स्पष्ट रूप से जैनेश्वर शब्द का अंकन होना तथा वेदों की 141 ऋचाओं में भगवान ऋषभदेव का आदर पूर्वक उल्लेख इस संस्कृति को वेद प्राचीन संस्कृति सिद्ध करती है। हमारे देश भारतवर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से भारत विख्यात है,जो कि जग जाहिर प्रमाण है। विष्णु पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उड़ीसा के खंडगिरि स्थित खारवेल के शिलालेख पर भरतस्य भारत रूप प्रशस्ति को देखकर ही इस देश के संविधान में नामकरण भारत किया था। राजा श्रेणिक, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल तथा सेनापति चामुंडराय जैन इतिहास के महान शासक हुए हैं। जैन पुराणों के अनुसार सती चंदन वाला, मैना सुंदरी एवं रानी रेवती आदि अनेक महान सम्यक दृष्टि जैन नारियां हुई है। नारी स्वतंत्रता के प्रतीक भगवान महावीर के चतुर्विधि संघ में कुल 36000 आर्यिकायें थी। मुगल काल में सम्राट अकबर एवं जहांगीर के द्वारा समय-समय पर जैन साधुओं के उपदेशों से प्रभावित होकर जजिया कर माफी एवं पर्यूषण पर्व आदि के अवसर पर पशुबध बंदी के अनेक फरमान जारी किए गए हैं। अंग्रेज शासको के द्वारा भारत में सन 1818 में भगवान पार्श्वनाथ एवं सन 1839 में भगवान महावीर पर सिक्के जारी किए गए थे। आज से लगभग 6000 वर्ष पूर्वोत्तर भारत में सरस्वती नदी के तट पर आत्म मार्गी अनुज पद की राजधानी कालीबंगा स्थित थी। जिसके अंतर्गत राजस्थान के गंगानगर जिले के आसपास का क्षेत्र आता था। इस अनुज पद के जैन आचार्य ओनसी थे, जो कि तत्व ज्ञान, जैन दर्शन, राजनीति एवं अर्थतंत्र के अपने समय के पारंगत विद्वान हुआ करते थे। ईसा से 4000 वर्ष पूर्व जैन धर्म यूरोप, रूस, मध्य एशिया, लघु एशिया, मैसोपोटामिया, मिश्र, अमेरिका, यूनान, बेबीलोनिया सीरिया, सुमेरिया, चीन, मंगोलिया, उत्तरी और मध्य अफ्रीका, भूमध्य सागर, रोम, इराक, अरविया, इथोपिया, स्वीडन, फिनलैंड, ब्रह्म देश, थाईलैंड, जावा, सुमात्रा एवं श्रीलंका में छा गया था। भारत में लक्षद्वीप को छोड़कर सभी राज्यों में जैन समुदाय के लोग रहते हैं। विदेशों में सर्वाधिक संयुक्त राज्य अमेरिका में एक लाख से अधिक जैन रहते हैं। वहां पर 26 जैन मंदिर एवं 100 विशिष्ट जैन मंडल हैं। यूनाइटेड किंगडम में 35000 एवं अफ्रीका में 20000 जैन रहते हैं। बेल्जियम के कच्चे हीरे के दो तिहाई व्यापार पर जैन भारतीयों का वर्चस्व है ।भारत के बाहर आयरलैंड, पोर्ट्सबार, हर्ट फोर्ड शायर, लॉस एंजिल्स, न्यू जर्सी, लीसेस्टर, ग्रेटर फिनिक्स, लंदन नैरोबी, मुंबई, सिंगापुर तथा बैंकॉक ऑस्ट्रेलिया एवं तथा जापान में प्रवासी जैन समुदाय के लोग रहते हैं। चीन में 13000 वर्ष पूर्व करीब 28000 जैन मंदिर थे इजराइल में भगवान ऋषभनथा के पिता नाभि राय और माता मरुदेवी की पूजा होती है। एक जर्मन विद्वान ने दिल्ली में आयोजित एक विचार गोष्ठी में बतलाया था कि जर्मन नाम सरमन से पड़ा है। 16वीं सदी में गोवा पूरी तरह जैन राज्य था। जैन धर्म को अंतरराष्ट्रीय धर्म के संगठन में दसवें धर्म के रूप धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त है।जैन समाज के गौरवशाली एवं प्रेरणादायी इतिहास से जैन समाज की वर्तमान पीढ़ी परिचित नहीं हैं। गौरवशाली इतिहास की अनेक जानकारी और है जिनका भी हम आगे उल्लेख करने का प्रयास अवश्य करेंगे। नई पीढ़ी को इतिहास की जानकारी देने सकारात्मक प्रयास समय की आवश्यकता है।
नोट -लेखक स्थायी अधिमान्य स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय संरक्षक हैं।
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