जैन पुरातत्व के विश्वविख्यात धर्म मेरू निर्मलजी सेठी

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महावीर दीपचंद ठोले छत्रपति संभाजी नगर महामंत्री श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षणी महासभा महाराष्ट्र प्रांत 75 880 44495
जैन समाज के भीष्म पितामह, जैन संस्कृति के सशक्त आधार स्तंभ, जैन पुरातत्व के रक्षक लोह पुरुष, विश्वविख्यात धर्म मेरु ,महासभा के महानायक श्री निर्मल कुमारजी सेठी जैन की चतुर्थ पुण्य स्मृति 27 अप्रैल 2025 को पूरे भारतवर्ष में संपन्न हो रही है जो जैन धरोहर दिवस के रूप में मनाई जा रही है।
शास्त्रों में वर्णित है जातस्य ध्रुवं मृत्यु। अर्थात जो जन्म लेता है उसका मरण आवश्यंभावी है ।परंतु जो समाजहित में , धर्म के संवर्धन में अपना खून पसीना एक कर मृत्यु को वरण करता है वह अमरता को प्राप्त होता है ।ऐसे ही निर्मल जी सेठी जिन्होंने अपने पारिवारिक संबंधों को तिलांजलि देकर, अपने स्वास्थ्य व उम्र को ना देखते हुए सदा ही तन मन धन से समाज उत्थान वह पुरातत्व की रक्षा के लिए पूर्ण समर्पित एवं सजग रहकर कार्य किया और 27 अप्रैल 2021 के दिन अमरता को प्राप्त होगये।
वे अपने माता-पिता के जेष्ठ पुत्र थे। अत्यंत सरल प्रकृति के निरभिमानी सत्पुरूषथे। बालपन से ही उनके जीवन में धार्मिक भावनाओं के साथ-साथ देव शास्त्र गुरु की भक्ति श्रद्धा एवं धर्म निष्ठा कूट-कूट कर भरी हुई थी ।
सन् 1895 में स्थापित जैन समाज की शिर्षस्थ संस्था जो लम्बे समय से बस्ते मे बंद थी,लुप्त प्रायः थी ऊसे पुर्नजीवित करने कोटा के मिटिंग मे निर्मल जी सेठी को अध्यक्ष पद पर मनोनित किया गया । उनके साथ त्रिलोकचंद जी कोठारी को महामंत्री बनाया गया ।अध्यक्ष व महामंत्री के कर्मठ जोड़ी ने महासभा में प्राण फुकंना शुरू किये। उन्होंने अनेक आहुतियो से उपलब्धियां प्राप्त कर महासभा को नया स्वरूप प्रदान किया। अपने भक्तिपूर्ण कार्य से, कर्मठता से, दुरगामी विचारों से स्वयं को ही नहीं महासभा को चिर स्मरणिय बना दिया। महासभा का कार्य कौशल बढ़ाने के निमित्त से विस्तार करने जैन राजनीतिक चेतना मंच की स्थापना 1988 मे की।तीर्थ संरक्षिणी महासभा का गठन 1998 में किया। जिसका मूल उद्देश्य जैन धरोहरो, तीर्थ क्षेत्र स्थापत्यो , स्थापत्य के अवशेषों, मूर्तियों एवं कला निधियां का समस्त भारतवर्ष में सर्वेक्षण, संरक्षण, जीर्णोद्धार एवं संवर्धन करना है। असुरक्षित बिखरे पड़े जैन पुरातत्व वैभव के लिए साइट म्यूजियमो की स्थापना करना, शोध पुस्तकों पत्रिकाओं का प्रकाशन करना भारतीय सर्वेक्षण एवं राज्यों के पुरातत्व विभाग से सहयोग लेना आदि है। उसके पश्चात आपने 2004 मेंश्रृत संवर्धिणी, 2006 में जैन महिला महासभा , 2010 मे राजनीतिक चेतना मंच, 2012 मे दिगंबर जैन युवा मंच , 2020 मे निर्ग्रंथ सेंटर आफ आर्कियोलॉजी आदि विभागों की स्थापना की ।जिसके कार्यों से महासभा का विस्तार होते गया——2—
उन्होंने जैन पुरातत्वान्वेषण व पुरातत्व के कार्यों को आजीवन संपादित किया। वे जैन तीर्थो के जीर्णोद्धार में सतत सलग्न रहे और जीर्णोद्धार के नाम पर कतिपय लोगों, संस्थाओं द्वारा किए गए पुरातन जैनायातनों के विध्वंस का मुखर विरोध किया। पुरातत्व की रक्षा के लिए उनका प्रयत्न आचरणीय है। उनकी अटूट भावना थी कि हमारे जैन तीर्थ जैन पुरातत्व के अधिकार में रहे और संरक्षित रहे। आज भारत में जितने भी तीर्थ है, जिनका जीर्णोद्धार नहीं हो पाया है उनकी रुपरेखा तैयार कर ऊन तीर्थो को भारतीय एवं विदेशी पर्यटकों के लिए सार्वजनिक किया और उसके लिए भारत सरकार से अनुमति प्राप्त कि। निर्मल जी सेठी ने भारत के अनेक तीर्थो पर स्वयं अपनी देखरेख में स्वयं के द्रव्य से जीर्णोद्धार कराकर जैन संस्कृति और पुरातत्व का संरक्षण किया ।इसलिए समाज ने उन्हें तीर्थो द्धारक के रूप में सम्मानित किया है। सेठी जी ने जितने मंदिरो, तीर्थो को संरक्षित किया उतने तीर्थों के कोई दर्शन भी नहीं किए होगे ।
वे जैन संस्कृतिके पुरातत्व एवं सांस्कृतिक प्राचीनता को देखकर पुलकित होते थे। वे ऊनकी सुरक्षा एवं विकास में एक पागल की तरह जुटे रहे ।उन्हें न परिवार की ,पत्नी की ,उद्योग की, ना रिश्ते नाते की चिंता थी ।बस एकमात्र धुन थी प्राचीन विस्मृत पुरातत्व को प्रकाश में लानेकी।वे न स्वास्थ्य ,न सुविधा, न मान सन्मान को देखते थे ।उनके उत्साह एवं जोश को देखकर हम जैसे नतमस्तक हो जाते थे ।चाहे पर्वत पर चढ़ना हो, या घोर जंगल में पैदल चलना हो, वर्षामे ,शीतमे ,या भीषण गर्मी मे सेठीजी का उत्साह कभी कम नहीं होता था ।वह इस मामले में नौजवानों को भी पीछे छोड़ देते थे। वे व्यक्ति एक थे किन्तु कार्य सौ व्यक्तियो का करते थे। समाज और संस्कृति के उत्थान का अहर्निश कार्य करनेवाला ऊनके जैसा अद्भुत व्यक्तित्व दुसरा होना दुर्लभ।
भारतवर्ष में यत्र तत्र बिखरी हुई एवं धुप, वर्षा से क्षरण हो रही एवं अविनय हो रही जैन मूर्तियो की सुरक्षा, संवर्धन के लिए वे हर पल चिंतित रहते थे ।उनकी भावना सारे भारतवर्ष की पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में जैन गैलरी बनाने की थी। अब तक पन्ना, मध्य प्रदेश, झांसी, मथुरा एवं लखनऊ आदि स्थानों पर जैन गैलरी की स्थापना हो चुकी है ।महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर में भी भ महावीर गैलरी के निर्माण का प्रयास चल रहा है।
वे तीर्थो के जीर्णोद्धार को जीवन का प्रमुख उद्देश्य मानने वाले, समस्त विश्व का भ्रमण करके जिन धर्म का अलख जगाने वाले रमता योगी ,निस्पृह , घर में रहकर भरत की तरह वैरागी, हिमालय की तरह सिद्धांतों पर अडिग, गंगा की तरह निर्मल मन वाले ईसयुग में होने वाले एकमात्र महामानव थे। आप न तो मताग्राही थे,न हठाग्राही । आप विचारों से समन्वयवादी थे। आप समाज संगठन चाहते थे ।आपने समस्त भारतवर्ष के जैन तीर्थ क्षेत्रो एवं जीर्ण शिर्ण मंदिरों का जीर्णोध्दार इसलिए कराया क्योंकि वे जानते थे कि एक जीर्ण शिर्ण मंदिर का जीर्णोध्दार करने में जो पुण्य अर्जित होता है वह पुण्य नवीन सौ मंदिर निर्माण करने में भी नहीं है ।वे खंडागिरी उदयगिरि जहां विश्व का पहला शिलालेख खारवेल द्वारा लिखा गया था उसको विश्व हेरिटेज का स्थान दिलाने के लिए प्रयास रत रहे। सम्मेद शिखर जी के, गिरनारजी के विवाद को मिटाने में हर पल प्रयास किया। उनकी भावना जिसमंदिर में जो पूजन पद्धति होती आ रही है वही रहे ।प्राचीन मंदिरों के स्वरूप को न बदला जाए । निर्मल जी को जीवन भर अहर्निश धार्मिक, सामाजिक उत्थान की उत्कृष्ठ आकांक्षा ,जैन दर्शन और संस्कृति के संरक्षण का भार, जैन पुरातत्व के प्रति महान आसक्ति दुष्कर से दुष्कर मार्ग पर भी विचलित नही होने देती थी। 125 वर्षीय महासभा के आप सबसे सशक्त लगातार चालीस वर्षो तक नायक थे ।आपकी छत्रछाया में महासभा की चतुर्दिक कीर्ती हुई। आपके कार्य ने प्रत्येक समाज, प्रत्येक प्रदेश के जन जन को प्रभावित किया ।
आप ऐसे क्षमतावादी सुर्य थे जिनमे संयम की उष्मा तेजस्विता और ग्यान
प्रकाश दोनों ही था। आपमे जितनी कर्मठता थी उससे कई अधिक जीवटता थी। हौसला तो इतना की पर्वत भी छोटा पड़ जाए ।
एक के बाद एक वज्रपात होता रहा।दो-दो जवान बेटो की अकस्मात मृत्यु के पच्छात भी आप निस्पृही भाव से अपने उद्देश्यों में संलग्न रहे ।यहां तक की हर असंभव को संभव करने की कला के आगे आपकी आयु भी कभी आडे नहीं आई। आप वास्तु के भी अच्छे जानकार थे ।जब भी वे किसी मकान, ऑफिस, प्रतिष्ठान, भवन, जिन मंदिर पर जाते थे तो वे वास्तु की दृष्टि से अपना निरीक्षण ,चिंतन बताकर आवश्यक सुझाव देते थे ,और संतोष भी प्रकट करते थे।
विश्व में जैन धर्म कहां-कहां तक फैला हुआ है उसकी खोज के लिए वह हर समय उत्सुक रहते थे। ऊनका एक पैर देश मे तो दुसरा विदेश मे रहता था।85 वर्ष की उम्र मे भी विदेशो मे जाकर जैन धर्म की खोज करना यह बहुत बडा कार्य उन्होंने किया।कंबोडिया के पंचमेरु मंदिर की यात्रा 125 लोगों को लेकर की। इंडोनेशिया की यात्रा 100 से अधिक लोगो को लेकर बारबाडोस के नंदीश्वर मंदिर की खोज की। लंदन के संग्रहालय में जाकर जैन मूर्तियां के बारे में जानकारी प्राप्त की ।एशिया के बर्मा, अफगानिस्तान ,एवं वियतनाम के अलावा उत्तरी अमेरिका में जाकर माया सभ्यता के माध्यम से जैन धर्म के अस्तित्व की खोज में अनेक विद्वानो एवं श्रेष्टियों को लेकर की। वहाके पुरातत्व संबधी अधिकारियो से एवं जैन नागरिको से मिलकर ऊन जैन धरोहरो को पुरातत्व मे शामिल करने के लिए परामर्श दिया। जिससे लोगो को सम्पुर्ण विश्व मे व्याप्त जैन समाज की प्राचीनता से तथा विग्यान और अध्यात्मिकता मे कितना समृद्ध है यह जानकारी हो। विश्व पटल के समक्ष लाने का यह कार्य जो उन्होंने किया वह श्रमण संस्कृति को विश्वस्तर पर संस्थापित कराता है।
निर्मल कुमार जी जैन तीर्थो के एनसाइक्लोपीडिया थे।आपका गरिमामयी व्यक्तित्व समाज की, जन आकांक्षाओ के प्रतीक, सजग प्रहरी, वैचारिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर आप में ऊर्जा का अजब स्रोत जो समाज को जीवित तथा चैतन्य बनाता था।आपकी अविस्मरणीय एवं अनुकरणीय सेवाएं, बहुआयामी क्षमताओं से श्रमण संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन, सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा जन संस्कृति की पताका को देश विदेश में फहराने मे महत्व पुर्ण है। ऐसे कालजयी व्यक्तित्व बिरले ही नहीं महा बिरले होते हैं।
आज आपका नश्वर शरीर हमारे साथ नही है परंतु आपकी पुण्यात्मा हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेगी।
आपको याद करते हुए हमारी आखे हमेशा नम रहेगी। कोई चलता पद चिन्हो पर,कोई पद चिन्ह बनाता है।पद चिन्ह बनाने वाला ही ईस धरतीपर पुजा जाता है।ऐसे कर्म योगी महान भव्यात्मा को श्रद्धासे शतशत वंदन,शत-शत नमन्।
श्री संपादक महोदय, सा जयजिनेद्र। 27 अप्रेल को स्व श्री निर्मल कुमार जी सेठी की चतुर्थ पुण्य तिथि जैन धरोहर दिवस के रूप मे सारे भारत मे व्यापक रूप से सम्पन्न हो रही है।इस प्रसंग पर यह आलेख पत्रीका मे प्रकाशित कर उपकृत करे।धन्यवाद।

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