डोंगरगढ़। 18 फावरी। दिगम्बर जैन परम्परा के सर्वमान्य व सर्वोच्च संत शिरोमणि आचार्य श्रीविद्यासागर महाराज ने 77 वर्ष की आयु में छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में श्रीदिगंबर जैन तीर्थ चंद्रगिरि में स्वास्थ्य की असाध्य प्रतिकूलता के कारण तीन दिन के उपवास पूर्वक 17 और 18 फरवरी की मध्यरात्रि में 2ः35 पर समाधि पूर्वक नश्वरदेह को त्याग दिया है । गुरुवर श्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में रविवार को दोपहर 1 बजे निकाला जा रहा है। सल्लेखना के अंतिम समय श्रावक श्रेष्ठी अशोक जी पाटनी आर के मार्बल किशनगढ राजा भाई सूरत प्रभात जी मुम्बई अतुल शाह पुणे विनोद बडजात्या रायपुर किशोर जी डोंगरगढ भी उपस्थित रहे । डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को यह जानकारी संघस्थ ब्र. विनय भैया तथा राजेन्द्र महावीर ने दी।
हम सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी । पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास ग्रहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था। 6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योगसागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी 19 फरवरी को दी जाएगी।
आचार्य श्री विद्यासागर जी की साधना अद्वितीय थी । अखण्ड बालब्रह्मचर्य के धारक, निःस्पृही, महातपस्वी संत आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव जिले में 10 अक्टूबर सन् 1946 को हुआ था । संसार,शरीर और भोगों से उन्हें पूर्व जन्म के सस्कारों के कारण स्वाभाविक विरक्ति थी । बाईस वर्ष की युवावय में आपने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर की पुण्यभूमि पर गुरुवर्य आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज से दिगम्बर दीक्षा ग्रहण की थी । आपकी प्रज्ञा असाधारण थी । आप कन्नड़,मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी,प्राकृत और संस्कृत आदि अनेक भाषाओं के विशिष्ट ज्ञाता थे । आपकी लोकोपकारी अप्रतिम काव्यदृष्टि से संस्कृत के अनेक काव्यों के साथ-साथ हिन्दी भाषा में मूकमाटी जैसे महाकाव्य का सृजन हुआ है । आपके सरल हृदय और उत्कृष्ट तप से आकृष्ट होकर हजारों युवक युवतियों ने विषयभोगों को त्यागकर साधना का पथ स्वीकार कर लिया है । आपकी अहिंसा और करुणा की परिधि में मनुष्यों के साथ-साथ पशु पक्षी आदि सभी समानरूप से समाहित थे । आपकी प्रेरणा से हजारों गौशालाएं, चिकित्सालय एवं विद्यालय समाज के द्वारा संचालित हो रहे हैं । आपने राष्ट्र के स्वावलंबन हेतु स्वदेशी और स्वरोजगार का मूलमंत्र देश के युवाओं को प्रदान किया था । आपकी इसी प्रेरणा से देश में हजारों ‘श्रमदान हथकरघा केन्द्र’ संचालित हैं । शिक्षापद्धति में आप हिन्दी माध्यम के विशेष पक्षधर थे । नारी शिक्षा और संस्कारों के लिए आपकी प्रेरणा से वर्तमान में संचालित ष्प्रतिभास्थलीष् शिक्षण संस्थायें परम्परा और आधुनिक शिक्षण संस्थाओं की समन्विति का एक आदर्श प्रतिरूप हैं । नई शिक्षा नीति 2020 का निर्धारण करने वाली समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन ने आपके निकट जाकर शिक्षा नीति निर्धारण हेतु विशेष मार्गदर्शन प्राप्त किया था । महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद , प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी एवं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आदि अनेक गणमान्य राजनेता उनके चरणों में पहुँचकर राष्ट्र के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करते थे । आचार्यश्री का मूलमंत्र था – ‘इंडिया छोड़ो भारत बोलो’। उनका संदेश था कि भारत की प्रचीन संस्कृति,शिक्षा और परम्पराओं पर हमें गौरव करना चाहिए और उनका अनुकरण करना चाहिए । वे स्वदेशी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रबल समर्थक थे । उनके आशीर्वाद से जन-जन के आरोग्य हेतु पूर्णायु आयुर्वेद चिकित्सालय एवं अनुसंधान विद्यापीठ की स्थापना भी जबलपुर म.प्र. में हुई है ।
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की अनन्त गुणराशि की शब्दाभिव्यक्ति असंभव है । उनका वियोग राष्ट्र की ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की अपूरणीय क्षति है । वे प्राणिमात्र के शुभचिंतक थे । उनके वियोग से सभी प्राणिमात्र का हृदय विकल है। अब उनका उपदेश और आदर्श ही जीवन का अवलंबन है ।
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
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