जैन परंपरा में पर्युषण महापर्व के एक दिन बाद क्षमा पर्व आता है। क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है।

0
5

जैन परंपरा में पर्युषण महापर्व के एक दिन बाद क्षमा पर्व आता है। क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है।
क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं, सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है। वे प्रायश्चित भी करते हैं। इस प्रकार वह क्षमा के माध्यम से अपनी आत्मा से सभी पापों को दूर करके, उनका प्रक्षालन करके सुख और शांति का अनुभव करते हैं।
क्षमावीरस्य भूषणं’

क्षमा आत्मा का स्वभाव है, किंतु हम हमेशा क्रोध को स्वभाव मान कर उसकी अनिवार्यता पर बल देते आए हैं। क्रोध को यदि स्वभाव कहेंगे तो वह आवश्यक हो जाएगा, इसीलिए जैन आगमों में क्रोध को विभाव कहा गया है, स्वभाव नहीं। ‘क्षमा’ शब्द ‘क्षम’ से बना है, जिससे ‘क्षमता’ भी बनता है। क्षमता का मतलब होता है सामथ्र्य और क्षमा का मतलब है किसी की गलती या अपराध का प्रतिकार नहीं करना। क्योंकि क्षमा का अर्थ सहनशीलता भी है। क्षमा कर देना बहुत बड़ी क्षमता का परिचायक है। इसीलिए नीति में कहा गया है -‘क्षमावीरस्य भूषणं’ अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है।
क्षमा वाणी’ उत्तम क्षमा का व्यावहारिक रूप है। वचनों से अपने मन की बात को कहकर जिनसे बोलचाल बंद है, उनसे भी क्षमा याचना करके बोलचाल प्रारंभ करना अनंत कषाय को मिटाने का सर्वोत्तम साधन है। संवादहीनता जितना वैर को बढ़ाती है उतना कोई और नहीं। अत: चाहे कुछ भी हो जाए, संवाद का मार्ग कभी भी बंद न होने दें। संवाद बचा रहेगा तो क्षमा की सभी संभावनाएं जीवित रहेंगी।
योगेश जैन, संवाददाता, टीकमगढ़, 6261722146

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here