जैन पंचकल्याण और चातुर्मास पर होने वाला खर्च : एक दृष्टिकोण :

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जैन पंचकल्याण और चातुर्मास पर होने वाला खर्च : एक दृष्टिकोण :
राकेश जैन, असिस्टेंट प्रोफेसर, गीतांजलि कॉलेज, उदयपुर

अक्सर समाज में यह कहा जाता है कि जैन पंचकल्याण और चातुर्मास जैसे धार्मिक आयोजनों में बहुत अधिक खर्च होता है। कई लोग यह तर्क देते हैं कि इस धनराशि का उपयोग अगर स्कूल, कॉलेज या अन्य सामाजिक संस्थाओं की स्थापना में किया जाए तो समाज और भी अधिक लाभान्वित हो सकता है। यह सोच एक हद तक व्यावहारिक अवश्य लगती है, परंतु इसके पीछे की वास्तविकता और भावनात्मक दृष्टिकोण को भी समझना आवश्यक है।

सबसे पहले यह विचार करना चाहिए कि क्या यही तर्क लोग अपने निजी जीवन में भी अपनाते हैं? जब कोई अपने घर का निर्माण करता है तो क्या वह यह सोचता है कि इतने पैसों से किसी विद्यालय का निर्माण हो सकता है? जब कोई अपने बच्चों का विवाह करता है और लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करता है, तो क्या तब यह सवाल उठता है कि इस धनराशि से गरीब बच्चों की पढ़ाई हो सकती थी या अस्पताल बन सकता था? वास्तव में यह प्रश्न केवल धार्मिक आयोजनों पर ही क्यों उठता है?

जैन पंचकल्याण और चातुर्मास केवल धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि ये समाज को जोड़ने वाले, संस्कृति को जीवित रखने वाले और आत्मिक शांति प्रदान करने वाले पर्व हैं। इन आयोजनों से समाज में धार्मिक आस्था, संस्कार और एकता की भावना विकसित होती है। जब समाज के लोग एकत्र होकर धर्म की वाणी सुनते हैं, तपस्या और साधना करते हैं, तो यह मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर बनता है।

खर्च का प्रश्न केवल रुपये-पैसे तक सीमित नहीं है। इस अवसर पर अनेक लोग दान-पुण्य के कार्य भी करते हैं। अन्नदान, वस्त्रदान, औषधि वितरण, शिक्षा सहायता जैसी अनेक गतिविधियाँ भी इन्हीं अवसरों पर होती हैं। इस प्रकार इन आयोजनों से केवल धार्मिक लाभ ही नहीं बल्कि सामाजिक कल्याण भी होता है।

अतः हमें केवल खर्च के पहलू को देखकर निर्णय नहीं लेना चाहिए। जिस प्रकार व्यक्ति अपने घर या परिवार के लिए खर्च करता है, उसी प्रकार समाज भी अपनी आस्था और संस्कृति को संजोने के लिए करता है। और यही संस्कृति अंततः समाज की असली पहचान और शक्ति बनती है।

इसलिए यह कहना कि “धार्मिक आयोजनों में खर्च व्यर्थ है” सही नहीं है। यह खर्च वस्तुतः समाज की आत्मा और संस्कारों की रक्षा में लगाया गया एक अमूल्य निवेश है।

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