*राकेश जैन(पाटनी)
भीलवाड़ा(राज.)*
जैन धर्म में 1 जनवरी का दिन विशेष महत्व नहीं रखता है, क्योंकि जैन धर्म अपने धार्मिक कैलेंडर का पालन करता है, जो भारतीय पंचांग पर आधारित होता है। जैन धर्म के अनुयायी विशेष रूप से “विजयादशमी” या “परुष प्रमाण” (जो आमतौर पर दीवाली के आसपास होता है) के दिन नववर्ष मनाते हैं। यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आत्मसंवर्धन और धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक होता है।
हालाँकि, 1 जनवरी का दिन सामान्य रूप से नया साल मनाने के रूप में मान्यता प्राप्त हो सकता है, खासकर जो ग्रेगोरियन कैलेंडर को मानते हैं। कुछ जैन लोग इस दिन को भी एक अवसर मानकर अपने जीवन में अच्छे कार्य, तपस्या, और धर्म का पालन करने का संकल्प ले सकते हैं।
जैन छात्रों को अपने नववर्ष का उत्सव आत्मनिर्भरता, अध्ययन और धर्म के प्रति आस्था के साथ मनाना चाहिए। यह समय होता है जब वे अपने जीवन के उद्देश्यों और अध्ययन के मार्ग पर पुनः विचार करें। नववर्ष के दिन वे ध्यान और साधना के माध्यम से अपनी आत्मा की शुद्धि करें, ताकि मानसिक शांति और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सके। इस दिन, वे अपने जीवन में अनुशासन, विनम्रता और अहिंसा के सिद्धांतों को अपने व्यवहार में लागू करने का संकल्प लें। साथ ही, जैन छात्र समाज में शांति और सौहार्द्र को बढ़ावा देने के लिए अच्छे कार्यों और परोपकार में भाग लें। वे इस दिन अपने अध्यात्मिक लक्ष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को फिर से मजबूत करें और अपनी शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित हों। जैन नववर्ष छात्रों के लिए एक अवसर है, जब वे अपने आंतरिक विकास के साथ-साथ समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और निभाएं।