टाइटल देखकर चोंकिये मत केवल यह विचार कीजिए कि टाइटल क्यों दिया गया है? अचानक से 2011 की जनगणना में जैन धर्मावलंबियों की संख्या मात्र 0.4% पर आ गई। इस सब का कारण यही रहा कि हमने धर्म के कॉलम में जैन धर्म न लिखा कर अन्य धर्म का प्रयोग कर दिया। वास्तविक रूप से इस टाइटल के अनुरूप कार्य योजना बनाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। जैन समाज की सभी राष्ट्रीय, प्रांतीय व स्थानीय संस्थाओं को संयुक्त रूप से मिलकर इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
एक बार फिर जनगणना का बिगुल बज चुका है। आगामी वर्ष में जनगणना होना तय है। जनगणना के आधार पर ही यह पता चलेगा कि भारतवर्ष में कितने जैन धर्म के अनुयायी है। इस सबके लिए हमें सावचेत होना चाहिए, यदि हम जैन है तो हमें धर्म के कॉलम में जैन आवश्यक रूप से लिखाना चाहिए अब बात करते हैं लेख में दिए गए टाइटल की तो हां *जैन को जैन धर्म मे गिनाओ अभियान* चलाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। मंदिर-मंदिर और समाज-समाज,संस्था-संस्था,श्रा वक-श्राविका तक इस अभियान को तीव्र गति के साथ चलाना वर्तमान परिस्थितियों में अति जरूरी है। तभी हम अपनी सही संख्या का पता लगा पाएंगे।हमारी संख्या के बारे में भ्रांतियां यह है कि हम हैं तो ज्यादा किंतु जनगणना में हमारी संख्या कम नजर आती है। दिगम्बर,स्वेताम्बर, स्थानक वासी,मन्दिर मार्गी,तेरापंथी,बीस पंथी,हुमड़, जैसवाल, ओसवाल,खंडेलवाल, अग्रवाल व अन्य गच्छो में विभाजित जैन समाज के सभी घटकों को इस अभियान से जोड़ने की आवश्यकता है। नही तो स्थिति और भी कष्ट प्रद हो सकती है। समय रहते हुए कार्य योजना बनाकर कार्य करने की नितांत आवश्यकता है। सादर जय जिनेंद्र।
सवांददाता जैन गजट