जैन ग्रन्थ लिपिबद्ध दिवस – श्रुत पंचमी महापर्व

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ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी ग्यारह जून पर विशेष आलेख
श्रुत का सीधा सा अर्थ होता है सुनना, यानी कि एक व्यक्ति बोलता है और दूसरा व्यक्ति या अन्य व्यक्ति उसको सुनते हैं। श्रुत से ही श्रुतलेखन और श्रुति लेख शब्द बना है जिसका अर्थ है सुनकर लिखना वर्तमान में विद्यालयों में श्रुत लेखन का कार्य वर्तनी सुधार हेतु अध्यापकों द्वारा कराया जाता है।
जैन धर्म के इतिहास में यदि देखें तो भगवान महावीर की देशना का निरंतर रूप से श्रुत के रूप में प्रवाह हो रहा था तब इस देशना को लिखने का कार्य नही हो रहा था। क्योंकि स्मरण रख ही जैन सन्तो के द्वारा श्रुत को एक दूसरे के माध्यम से आंशिक प्रवाहित किया जा रहा था। किंतु अवसर्पिणी काल के कारण स्मरण शक्ति निरंतर क्षीण होती जा रही थी यानी कि सुनकर याद रखना कुछ कठिन महसूस होता जा रहा था। उसी को जानकर जैन आचार्य धरसेन ने दो मुनिराजो भूतबली और पुष्प दन्त को भगवान महावीर की देशना यानी कि उनकी वाणी को जिसे श्रुत कहा जाता है, के लेखन का कार्य सुपुर्द किया और उन्होंने उसको सिद्ध करते हुए छठ खंड आगम पुस्तक में लिपिबद्ध किया था। वह दिन जयेष्ठ शुक्ल पंचमी का दिवस था और उस दिन छठ खंड आगम ग्रंथ की छठ कर्म पूजन संपन्न हुई और वहीं से यह श्रुत पंचमी पर्व प्रारंभ हुआ।
जैन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। इसी दिन पहली बार जैन धर्मग्रंथ लिखा गया था। भगवान महावीर ने जो ज्ञान दिया, उसे श्रुत परंपरा के अंतर्गत अनेक आचार्यों ने जीवित रखा। गुजरात के गिरनार पर्वत की चन्द्र गुफा में धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों को सैद्धांतिक देशना दी जिसे सुनने के बाद मुनियों ने एक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया।
एक कथा के अनुसार लगभग 2,000 वर्ष पहले जैन धर्म के वयोवृद्ध आचार्यरत्न परम पूज्य 108 संत श्री धरसेनाचार्य को अचानक यह अनुभव हुआ कि उनके द्वारा अर्जित जैन धर्म का ज्ञान केवल उनकी वाणी तक सीमित है। उन्होंने सोचा कि शिष्यों की स्मरण शक्ति कम होने पर ज्ञान वाणी नहीं बचेगी, ऐसे में मेरे समाधि लेने से जैन धर्म का संपूर्ण ज्ञान खत्म हो जाएगा। तब धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि की सहायता से ‘षटखंडागम’ शास्त्र की रचना की, इस शास्त्र में जैन धर्म से जुड़ी कई अहम जानकारियां हैं। इसे ज्येष्ठ शुक्ल की पंचमी को प्रस्तुत किया गया।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा के रूप में प्रारंभ किया गया। इसीलिए यह दिवस श्रुत पंचमी के नाम से जाना जाता है। इसका एक अन्य नाम ‘प्राकृत भाषा दिवस’ भी है।
श्रुत हुआ लिपिबद्ध, षट्खण्डागम रचना हुई साकार
आचार्य धरसेनाचार्य का आदेश, भूतबली पुष्पदन्त ने दिया आकार
श्रमण ने श्रुत रचा, श्रुत ने श्रमण को दिए संस्कार
श्रुत पंचमी का पर्व पावन, श्रावक को संरक्षण का मिला अधिकार
इस पावन दिवस पर हम सभी श्रावकों का कर्तव्य बनता है की अलमारी में रखे हुए पुराने, हस्तलिखित व अन्य शास्त्रों को बाहर निकाल कर धूप लगाएं और उनके कवर,जिल्द आदि बदलकर उनका संरक्षण संवर्धन करें। जय जिनेंद्र
संजय जैन बड़जात्या कामां, राष्ट्रीय प्रचार मंत्री धर्म जागृति संस्थान

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