जैन धर्म आचार प्रधान धर्म है। भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी जैन धर्म मैत्री प्रधान धर्म हैं।

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सोनल जैन की रिपोर्ट

श्रावक धर्म प्रधान कहा, जीवन में वरदान कहा। दान और पूजा करना अहो आत्म सम्मान कहा, आगम चर्चा ही, गृहीधर्म कहाये रे। जीवन है पानी की बूँद कब मिट जाये।
जो धर्म के मार्ग पर चलता है वो अपने मार्ग में फूल विधाता जाता है जी अधर्म के मार्ग पर चलता है वो अपने मार्ग में काँटे विछाता जाता है। जब तक वीतराग चारित्र की जीव धारण नहीं करता, तबतक पुनः पुनः लौटकर उरती मार्ग पर भाना पड़ता है। अगर आपमधर्म का आश्रय लेते हैं तो पुनः जब उस मार्ग पर मायेंगे तो राह में कौटे प्राप्त होगे. दुख भोर प्रतिकूलताय प्राप्त होती हैं। और भगर आप धर्म मार्ग कम आश्रय भरते हैं तो पुनः इस मार्ग पर आने पर आपको फूल ही फूল राह में विहे मिलेंगे। अथर्थात आपकी पग पग पर अनुकूलतायें एवं सफलतायें प्राप्त होगी उक्त उद्‌‌गार परमपूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक आदर्श महाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शरतागर जी महामुनिराज ने कृपणानगर जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुये व्यक्स किये।
जैन कुल में जन्म लेना, सुन्दर, स्वस्थ शरीर का प्राप्त होना ये पूर्व के पुण्योदय से प्राप्त हुये हैं। अब आप इन अनुकूलतामों का कितना लाभ ले पा रहे हैं। ये चिन्तन का विषय है। जैन कुल में जन्म लेने के बाद श्रावक कुल में जन्म लेने के बाद श्रावक के योग्य आवश्यक मूल कर्तव्य दान और पूजा करना इस कुल भी, इस पर्याय की सार्थकता है।
आचार्य श्री ने कहा कि जब सुबह आँख खुले तो सिर्फ परमात्मा का स्मरण हो, परमात्मा के प्रति धन्यता के भाव भरे हो कि प्रभुম্ভ। आपके प्रसाद से आज मुझे पुनः जीवन प्राप्त हुमा है, मैं सर्वप्रथम
अब आपका दर्शन पूजन अभिषेक करूँगा। अपने प्रयोजन के अनुसार ही हमारी क्रिया का फल प्राप्त होता प्रयोजन अगर पाप का है तो शुभ क्रियाभी पाप का बंध कराती है। और यदि प्रयोजन पुण्य का हो, तो अशुभ क्रिया भी पुण्य का कारण बनेगी प्रतिदिन गुरुदेव के मंगल प्रवचन, प्रातः 8:00 बजे, एवं गुरुभक्ति शाम 6:30 होती है

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