जगत पूज्य जी की आज की वाणी सुनकर मन तृप्त हुआ

0
1

जगत पूज्य जी की आज की वाणी सुनकर मन तृप्त हुआ। मेरे मन में भी गुरु का अपमान और संघ को विखरता देख आक्रोश आ गया था इसलिए मैं भी अपने आक्रोशित मन के द्वारा किए हुए आलोचनात्मक पापों की निंदा करता हूं। और क्षमा प्रार्थी हूं। जैसा कि जगत पूज्य जी ने कहा कि मंच से गलती हुई है और मेरा भी उपयोग नहीं गया। कभी कभी गलतियां हो जाती है लेकिन स्थितिकरण हो जाये तो पुनः वही श्रद्धान वापिस आ जाता है। वैसे भी शास्त्रों में न्याय संगत बात कही गयी है कि परिस्थितियों में कभी कभी विभाव परिणति बन जाती है लेकिन स्वत: ही स्थितिकरण करके स्व परिणति में लौटना भी मुनि धर्म का स्वभाव है। जगत पूज्य जी ने इक बात और क्लेयर कर दी कि संघ के नायक पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ही हैं और वो मेरे भी आचार्य हैं।इससे भी मेरे मन का विकार भाव समाप्त हो गया है। जगत पूज्य जी ने जिज्ञासा समाधान में जो व्यर्थ की जिज्ञासाओं को हटाने का प्रावधान और स्वार्थ हित को छोड़कर धर्म हित के संबंध में जिज्ञासाओं को रखने की व्यवस्थाओं को बनाने के लिए आपने जो समाज को आदेश दिया है वह भी मेरी आत्मा को आनंदित करता है। अतः अब मेरा श्रद्धान पुनः आपके गुणों की और लौट आया है। विकार भाव को देख कर मेरा श्रद्धान डगमगाया था। लेकिन पुनः स्थितिकरण होने पर अवगुणों को अदृश्य कर मुनि स्वभाव में गुणों के दर्शन होने पर आपके प्रति मेरा श्रद्धान पुनः ज्यों का त्यों हो चुका है। लेकिन फिर भी इन विपरीत परिस्थितियों में और साम्प्रदायिकता के माहौल में मेरे अशांत मन में आपके प्रति जो विकार भाव आया था। इसके लिए आपके वीतरागी स्वरूप को देख कर क्षमा मांगता हूं।
उत्तम क्षमा
सबसे क्षमा।
सत्य के लिए सत्य के साथ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here