इस्लामिक बोन चाइना”/ बोन चाइना का भ्रामक प्रचार – विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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शुरूआती दौर में ,जानकारियों के अभाव में सामान्य रूप से चाय कॉफी नाश्ता की प्लेट और खाने की प्लेट जो चमकदार और ललचाने सामग्री जिसे क्रॉकरी बोला जाता हैं का उपयोग बहुतायत से होता था और हो रहा हैं .जैसे जैसे जानकारियां मिलना शुरू हुई की इसमें हड्डी का चुरा मिलाया जाता हैं ,बहुत से शाकाहारियों ने इसका उपयोग करना बंद कर दिया था .
आजकल आक्रामक बाजारीकरण के कारण मिथ्या प्रचार प्रसार के कारण बहुत अधिक भ्रांतियां पैदा कर व्यापार किया जा रहा हैं और हमें अप्रत्यक्ष्य में भ्रष्ट किया जा रहा हैं .वैसे हम अपने आपको कट्टर शाकाहारी और धार्मिक मानते और कहते हैं पर हम प्रतक्ष्य में अभक्ष्य पदार्थों का सेवन किसी न किसी रूप में कर रहे हैं .वे बचे हुए हैं जो बाजार में खाना नहीं खा रहे हैं और न बनी बनाई मसाला ,घी ,बटर ,बिस्किट्स ,टॉफी आदि खा रहे हैं . अन्यथा खान पान सौंदर्य सामग्रियां ,साग सब्जी ,दवाइयां आदि दैनिक जीवनोपयोगी सामग्री हमें हिंसक बनाने में कोई हिचक नहीं हैं .हम अपने आपको कट्टर अहिंसक कह सकते हैं पर खान पान में हिंसक हो चुके हैं .इसी कारण हिंसा सम्बन्धी घटनाये प्रचुरता से बढ़ी हैं . यह मात्र जानकारी साझा की जा रही हैं पर उपभोक्ता स्वतंत्र हैं .
बोन चीन अपने नाम के अनुरूप, गाय की हड्डी की बारीक पिसी हुई राख को अन्य सिरेमिक सामग्रियों के साथ मिलाकर बनाया जाता है। फाइन चाइना में एक समान विनिर्माण प्रक्रिया है, केवल हड्डी की सामग्री के बिना। उच्चतम गुणवत्ता वाले बोन चाइना में नोरिटेक के टुकड़ों में गाय की हड्डी की राख की तरह कम से कम 30% हड्डी की राख होनी चाहिए
इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है। इसका मतलब ये है कि आप किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रहे है। बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है।
बोन चाइना के उत्पाद बनाने के लिए हड्डियों को उबाल कर धूप में सुखाया जाता है, जिसके बाद उसे लगभग 1000 डिग्री तापमान पर गर्म कर उसका पाउडर बनाकर उसमें पानी तथा अन्य रासायनिक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट तथा अन्य क्रॉकरी बनाए जाते हैं।
बोन चाइना का पारंपरिक सूत्रीकरण लगभग 25% काओलिन , 25% कोर्निश पत्थर और 50% हड्डी की राख है ।
बोन चाइना में उपयोग की जाने वाली हड्डी की राख पारंपरिक रूप से मवेशियों की हड्डियों से बनाई जाती है जिनमें आयरन की मात्रा कम होती है। इन हड्डियों को डीजिलेटिनाइज करने से पहले कुचल दिया जाता है और फिर हड्डी की राख बनाने के लिए लगभग 1,000 डिग्री सेल्सियस तक कैल्सीन किया जाता है । राख को बारीक कण आकार में पीसा जाता है।] शरीर के काओलिन घटक को बिना जलाए शरीर को प्लास्टिसिटी देने की आवश्यकता होती है जो वस्तुओं को आकार देने की अनुमति देता है। फिर इस मिश्रण को लगभग 1200 डिग्री सेल्सियस पर जलाया जाता है। बोन चाइना के लिए कच्चा माल तुलनात्मक रूप से महंगा है, और उत्पादन श्रम-केंद्रित है, यही कारण है कि बोन चाइना एक लक्जरी स्थिति और उच्च मूल्य निर्धारण बनाए रखता है।
हाल के वर्षों में चीन में उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है, और देश अब दुनिया में बोन चाइना का सबसे बड़ा उत्पादक है। बोन चाइना का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन करने वाले अन्य देश बांग्लादेश , भारत , इंडोनेशिया , ईरान श्रीलंका और थाईलैंड हैं ।
1964 में पहली फैक्ट्री, बंगाल पॉटरीज़ की शुरुआत से, भारतीय कारखानों से बोन चाइना का उत्पादन 2009 तक 10,000 टन प्रति वर्ष तक बढ़ गया था।] राजस्थान भारत में बोन चाइना का केंद्र बन गया है, राज्य में कुल उत्पादन के साथ 2003 में 16-17 टन प्रतिदिन।
21वीं सदी में, “इस्लामिक बोन चाइना” उपलब्ध हो गया, जिसमें केवल हलाल जानवरों की हड्डी की राख का उपयोग किया जाता था।
बोन चाइना के उत्पादन में जानवरों की हड्डियों के उपयोग के कारण शाकाहारी और शाकाहारी लोग इसका उपयोग करने या खरीदने से बच सकते हैं और बचना ही चाहिए .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैनसंरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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