आजकल प्रदर्शन का जमाना हैं ,प्रकृति का भी अपना दिखावा हैं वह नैसर्गिक होता हैं .वृक्ष ,नदियों ,और जानवरों में कोई दिखावा नहीं होता हैं ,वे हमेशा प्रकृति के नजदीक रहते हैं ,वे हर समय एक समान दिखाई देते हैं ,पर मानव ने ज्यों ज्यों विकास किया और मन –बुद्धि के कारण उनमे विवेक आया तो उनको श्रृंगार के लिए पहले वृक्षों के पत्ते ,छाल आदि का उपयोग किया .फिर समयानुसार कपड़ों का चलन शुरू हुआ .
कपड़ें भी अब अनेकों प्रकार के आते हैं उनका खूबसूरती के लिए उपयोग किया जाता हैं .परिधान से व्यक्ति का व्यक्तित्व उजागर होता हैं .आज समाज में दिखावा करने अधिक से अधिक महंगे कपड़ों का उपयोग किया जाता हैं .परिधान से ही उसकी हैसियत पता चलती हैं ,पर कभी कभी धनवान व्यक्ति सादा जीवन उच्च विचार से लदे होने के कारण बहुत सामान्य रहते हैं
जहाँ तक पुरुषों के परिधान ,कपडे कुछ कुछ ढंग के पहने मिलते हैं ,क्योकि पुरुषों की संरचना प्रकृति ने ऐसी बनायीं हैं की वे दिगम्बर भी रहते हैं पर वहीँ दूसरी ओर आजकल या कभी भी स्त्रियों की नग्नता को स्वीकार्य नहीं किया जाता हैं .वैसे सभी जन्म के समय निःवस्त्र रहते हैं और समय के साथ साथ वस्त्रों की जरुरत पड़ती हैं .
आज कल फ़िल्मी दुनिया से ही फैशन की शुरुआत होती हैं और उसका प्रभाव समाज और परिवार पर पड़ता हैं जो स्वीकार्य होता हैं पर यदि उसकी पुनर्वृत्ति कोई करता हैं तब उसको मान्य नहीं करता हैं ?
एक पापा टेस्ट होता हैं और एक बाबा टेस्ट होता हैं .इसका मतलब पिता कोअपने बच्चे के सामने ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए / जो नहीं कर सकते और पुत्र को अपने पिता के सामने ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए /l-जप नहीं कर सकते .यही बात पुत्री, बहिन ,माता, पत्नी या अन्य के ऊपर लागू होती हैं .क्या ऐसे परिधान में कितनी स्वीकार्यता हैं .ये सब परदे पर या फ़िल्मी दुनिया में करते हैं पर जब उनका प्रदर्शन सार्वजानिक होते हैं तब मन मष्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता हैं ?
स्त्रियों का आभूषण लज्जा होती हैं और वे यदि लीक से हटकर चलती हैं तब उनके निर्लज्ज कहते हैं .आज उनका वश नहीं चलता नहीं तो वे नग्न परिवेश में रहना पसंद करती हैं कारण उनमे समानता का भाव हैं .वे पुरुषों की बराबरी में भरोसा करती हैं और यदि कुछ अनहोनी घटना होती हैं तो स्त्रियां ही प्रभावित होती हैं .
वैसे स्त्रियां जन्मजात कमनीय ,सुन्दर होती हैं जो पुरुषों को सामान्य रूप से आकर्षित करती हैं वैसे ही वे पुरुषों की ओर आकर्षित होती हैं .पर जो स्त्रियां मर्यादित रहती हैं उनका आकर्षण स्वाभाविक होता हैं पर जो नग्नता पर उतर आती हैं तब वे विकर्षित होने लगती हैं .
यह लेख लिखने का मात्र उद्देश्य आज प्रकाशित एक समाचार पत्र में प्रकाशित फोटो के कारण लिखने को मजबूर हुआ ,वैसे ये दृश्य आज लेपटॉप ,मोबाइल ,इंटरनेट पर प्रचुरता से उपलब्ध हैं और वे सब व्यक्तिगत रूप से देखते हैं ,आज कोई नहीं बचा हैं .आज यदि लक्ष्मण जी होते तो उनको सीता जी को पहचानने या आभूषण पहचानने में बहुत परेशानी होती .कारण तिरुपति बाला जी में सब गंजे या बिना बाल के दिखाई देते हैं जिससे अपनों को पहचानने में परेशानी होती हैं .इसी प्रकार नग्नता के कारण कौन कौन हैं बहुत मुश्किल होगा .
यह आलोचना का विषय नहीं हैं बल्कि समालोचना का विषय हैं .विषय चिंतनीय हैं और सोचनीय हैं .वैसे हर स्त्री पुरुष का अपना स्व अधिकार हैं वह खान पान पूजा पहनावा के लिए स्वतंत्र हैं पर सामाजिक व्यवस्था का पालन करना अनिवार्य हैं पर फैशन के नाम पर खुली छूट !इससे क्या अपराध को बढ़ावा नहीं मिलता ?इससे सबसे अधिक कौन प्रभावित होता हैं ?
यह बहुत अच्छा हैं की मिलिट्री ,पुलिस ,डॉक्टर वकील आदि के लिए एक निश्चित ड्रेस कोड हैं वहां मनमानी नहीं हैं .इससे वहां पर सब एक से रहकर मित्रवत रहते हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
सी ५०४ कुंदन एस्टेट ,कांटे बस्ती ,पिम्पले सौदागर पुणे ४११०२७
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