दशहरा यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक। देश के अलग-अलग हिस्सों में दशहरे का अलग-अलग महत्व है। दक्षिण, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में दशहरे को महिषासुर के ऊपर मां दुर्गा की जीत के तौर पर मनाया जाता है, जबकि पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में इसे रावण पर भगवान राम की जीत के तौर पर मनाया जाता है। हालांकि, इस पूरे त्योहार का निचोड़ यही है- बुराई पर अच्छाई की जीत। यही वजह है कि दशहरे को बुरी चीजों, बुरी आदतों और बुरी यादों से मुक्ति पाने के आदर्श समय के तौर पर भी देखा जाता है। आज के दौर में, जब हम सबकुछ बहुत जल्दी और तत्काल पा लेना चाहते हैं, इस सिलसिले में हम अनजाने में कई बुरी आदतें भी विकसित कर लेते हैं। इन बुरी आदतों में हम कभी-कभी खराब खान पान चुनने से लेकर गंभीर वित्तीय भूलें तक कर देते हैं। हम सभी दशहरा मनाने के लिए तैयार हैं, ऐसे में हमें कुछ आदतों से तौबा कर लेनी चाहिए।
कॉरपोरेट जगत में प्रवेश करने वाले ज्यादातर युवाओं के पास कोई पुख्ता वित्तीय योजना नहीं होती। बिना कोई स्पष्ट लक्ष्य तय किए ही, हम महज उच्चतम रिटर्न के आधार पर अपने निवेश प्लान कर लेते हैं। हम अपने क्रेडिट कार्ड बिलों को बढ़ाते जाते हैं और महीने का अंत आते-आते अपनी सैलरी भी खत्म कर देते हैं। हम टैक्स फाइल करने में संघर्ष करते हैं और अपनी वित्तीय प्रबधन को आखिरी क्षणों तक अक्सर नजरअंदाज करते हैं। ये आदतें हमारी वित्तीय ज्ञान के स्तर से विकसित होती हैं या इसकी कमी से पैदा होती हैं। इन आदतों को खत्म करने और अपनी वित्तीय प्रबधन और निवेश को प्रबंधित करने के लिए इस दशहरा हमें कुछ बदलाव करने की जरूरत है।
बचपन में तो जब हम बीमार पड़ते थे तो माता पिता पर निर्भर थे। माता पिता ही हमारी सेहत का ध्यान रखते थे, बीमार पड़ने पर हमें डॉक्टर के पास ले जाते थे। हालांकि, जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और खासकर जब घर छोड़ना पड़ता है तो अपनी सेहत का ध्यान रखना हमारी प्राथमिकताओं में नीचे चला जाता है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि हम बीमार होने के बाद भी काम करते हैं और इस बात को टालते जाते हैं कि डॉक्टर को दिखाना है। इस आदत का हमारी सेहत पर गंभीर असर पड़ता है। अक्सर इलाज के अभाव में हमारी बीमारी बहुत ज्यादा जटिल हो जाती है। इसलिए, यह वादा करें कि अपनी सेहत का बेहतर ढंग से ध्यान रखेंगे। एक वयस्क के तौर पर हमें यह आदत विकसित करनी चाहिए कि शुरुआत में ही हम मेडिकल हेल्प लें। कारण रोग की जीर्णता बहुत घातक होती हैं .हम लाक्षणिक चिकित्सा का करके कारणों पर ध्यान देकर चिकित्सा करे तो हम बुनियादी रूप से स्वस्थ्य होकर स्वास्थ्य वर्धन कर सकेंगे .
अगर आपको दिनभर काम के बाद यह विकल्प दिया जाए कि आप कुछ बर्गर या फिर सलाद या कोई भारतीय खाना मंगा लें तो आप क्या चुनेंगे? ज्यादातर का जवाब जंक फूड ही होगा। हमारी खाने पीने की आदतें तेजी से खराब हो रही हैं क्योंकि हम बहुत ही ज्यादा जंक फूड ले रहे हैं और हमारे शरीर के लिए जरूरी पौष्टिक खाने को लेने से बच रहे हैं। अगर हम फल और सब्जी खाते भी हैं तो अक्सर वे कीटनाशक और रसायनों से से मिश्रित होते हैं जो हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। बेहतर खाने के लिए हम जिस सबसे जरूरी बुनियादी चीज को बदल सकते हैं, वह है पूरी तरह ऑर्गैनिक फूड को अपनाना। वैसे भी ऑर्गैनिक और नैचरल प्रॉडक्ट्स हमेशा बेहतर चुनाव होते हैं। खाद्य उत्पादों के खेत से खाने के टेबल पर आने में जितने कम पड़ाव होंगे, सेहत के लिए उतने ही बेहतर होंगे। बहुत अच्छा हैं की आप अपने साथ लंच बॉक्स लेकर चले जिसके कारण आप स्वस्थ्य और संक्रमित भोजन से मुक्त हो सकेंगे .इसके साथ भोजन का समय नियमित करे .क्योकि नौकरी जिंदगी भर करना हैं तो स्वास्थ्य से खिलवाड़ क्यों ?अन्यथा जीवन भर कमाओ और अंत में खुद का कमाया खुद नहीं खा सकेंगे .जितने प्रकृति से नजदीक उतने सुरक्षित और सुखी .
एक और अहम चीज और इस लेख का अंतिम भाग है, वह है सही जीवन शैली का चुनाव। हम खतरनाक तेजी से दौड़ती-भागती दुनिया में जी रहे हैं। इस दौड़ती-भागती दुनिया से कदमताल के लिए हम सुगम और तेज जीवन शैली अपना रहे हैं। इस क्रम में हम इनके अपने साथ-साथ पर्यावरण पर पड़ने वाले दीर्घकालीन प्रभावों के बारे में भी नहीं सोचते। अधिक टिकाऊ जीवनशैली को अपनाने और प्राकृतिक व ऑर्गैनिक प्रॉडक्ट्स अपनाना एक ऐसी आदत है जिसे विकसित किए जाने की जरूरत है। नैचरल और ऑर्गैनिक प्रॉडक्ट्स पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं। इसके अतिरिक्त, स्थानीय स्रोतों से प्रॉडक्ट्स की खरीदारी से स्थानीय उत्पादकों को फायदा मिलेगा न कि बड़े कॉरपोरेशंस को। हम जितना कम उपयोग एयर कंडशनरों का करे उतना हमारे लिए लाभकारी होता हैं .आजकल पसीना का निकलना सभ्यता की निशानी हैं जबकि पसीना के माध्यम से हमारे शरीर की विषाक्तता ख़तम होकर स्वस्थ्य रहते हैं .
इसके लिए जरुरी हैं हम अपने पुरातन पद्धति को अपनाये हम स्थानीय विक्रताओं को संरक्षित करेंगे तब ही वे सुरक्षित रहेंगे .आज आक्रामक बाज़ारीकरण के कारण हम प्रकृति /अपनों से दूर हो रहे हैं .आज रसायनों के नाम पर बनने वाले उत्पादन में बहुत छल किया जा रहा हैं और कृतिम और नकली सामग्रियां बेचने के कारण हम अनचाहे रोगों को आमंत्रित कर रहे हैं .इसलिए स्वदेश का गौरव में अपनी भागीदारी निभाएं तभी हम सही अर्थों में बुराइयों पर अंकुश लगा सकेंगे .
दशहरा बाहर के रावण को मारने का नाम नहीं हैं
हमारे भीतर बैठे रावण रुपी अहंकार ,लोभ लालच
कुटिलता ,व्यभिचार को ख़तम नहीं करेंगे
तब तक कितने राम हमें सुरक्षित रखेंगे ?
एक नियम ही काफी हैं जिंदगी सुहानी बनाने
अपनाओ और जीवन सुखद बनाओ
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753
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