इंटरनेट और मोबाइल के उपयोग लाभ

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एक सर्वे में यह जानकारी मिली हैं कि  जो बच्चे  दिन में ३ घंटे सोशल मीडिया में रहते हैं यानि ऑनलाइन गेमिंग ,मोबाइल, इंटरनेट आदि में रहते हैं उनकी प्रवत्ति आक्रामक  होने लगती  हैं ,उनमे अधीरता नहीं रहती यानी सहनशीलता का अभाव होने लगता हैं। अधिक ऊर्जा ख़तम होने से सुस्त रहते हैं और कोई भी कार्य में अधिक क्रियाशील होने से यानी अन्य कार्य शीघ्र निपटाना  चाहते हैं। वे अधिक अवसादग्रस्त होते हैं और उनमे प्रसन्नता का अभाव देखा जाता हैं।
इसके बचाव के लिए सांगली जिले के गांव में ग्रामीणों ने यह निर्णय लिया हैं कि उनके गांव में मुनादी और साइरेन द्वारा सुचना दी जाती हैं कि इस समय के पश्चात् कोई इंटरनेट ,मोबाइल आदि का उपयोग नहीं करेगा। इस प्रयोग के बाद उस गांव में अद्भुत परिवर्तन ग्रामीणों के साथ खासकर युवा -युवतियों में आया। वे पहले मानसिक विकारो से ग्रस्त हो जाते थे अब उनके व्यवहार में परिवर्तन आया।
इस परिवर्तन का मुख्य कारण अनुशासन और हमारे माता- पिता ,बड़े भाई- बहिनों  के द्वारा भी इंटरनेट और मोबाइल का उपयोग न किया जाना। आज हम अपने बच्चो से यह अपेक्षा करते हैं कि वे इंटरनेट और मोबाइल या टी,वी का उपयोग न करे और वे स्वयं इनकी क्रियायों में लिप्त रहते हैं जिससे बच्चे भी उनकी देखादेखी पूरे समय इंटरनेट और मोबाइल से जुटे रहते हैं।
कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेज और मोबाइल का अधिकतम उपयोग  होने से इनके द्वारा उतपन्न बीमारियां बहुत अधिक देखने को मिले। इसी काल में घरेलु हिंसाएं और बच्चों में आत्महत्याएं बहुत हुई। क्योकि  इस समय ,समय का उपयोग अधिकतम मोबाइल और इंटरनेट में बहुत किया गया और इसके साथ मोबाइल कंपनियों ने सस्ते दाम में अधिक सुविधाएँ देने से उसका उपयोग बढ़ा।
हर सिक्के के दो पहलु होते हैं एक मोबाइल ,इंटरनेट से घर बैठे मनचाही जानकारियां मिल जाती हैं और दूसरा इसकी आदत जो व्यसन बन जाती हैं उससे मुक्ति पाना कठिन होता हैं। इससे बचाव के लिए हमें यानी पालकों और बड़े भाई बहिनों को अपने बच्चों के समक्ष एक उदाहरण ,आदर्श  प्रस्तुत करना होगा और उन बच्चों को विज्ञान के वरदान और अभिशाप को बताना चाहिए। जबरदस्ती करने से कुछ नहीं होगा। उनको मनोवैज्ञानिक ढंग से उसके दुष्परिणामों को बतलाना होगा और उनकी जब तक शिक्षा दीक्षा न हो जाए कम से कम उपयोग करे ,अन्यथा आगामी काल में हर घर में मनोविकार ग्रस्त रोगियों कि संख्या बढ़ेगी और इसकी बीमारी असाध्य के साथ मृत्युकारक और घातक होगी।
इससे आजकल नेत्र रोगी कि संख्या बढ़ गयी और मनोविकार ग्रस्त होने से उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता हैं। पढाई कि कमी और अच्छे नंबर न आने से परीक्षा प्रतिस्पर्धा में असफल होने से आत्महत्या और अवसादग्रस्त होने से मानसिक अपंग होंगे।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल  ०९४२५००६७५३

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