वर्तमान में रशिया और यूक्रेन के साथ इज़राइल और हमास में जो युध्य हो रहे हैं उनमे मानव और जीव हिंसा के साथ धन और आवास आदि का जो नुक्सान हो रहा हैं उनकी पूर्ती कब कितने समय में होंगी कहना असंभव हैं। उन देशों में जल बिजली सड़क स्वास्थ्य के साथ रोजगार की जो जीवंत समस्या मुंह बांये खड़ी हैं और कोई भी देश उनको बाह्य सहायता कर सकता हैं पर व्यक्तिगत संकट अतयनत विकराल हैं और विश्व की शीर्षथ संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ हतप्रभ हैं और कोई भी शांति प्रस्ताव को लाने में विफल हैं। यह संस्था मात्र दंतविहीन शेर हैं
हर साल 6 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 नवंबर 2001 को प्रत्येक वर्ष के 6 नवंबर को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया था।
युद्ध के दौरान यह विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र जैसे कि पानी की आपूर्ति में जहर, जंगल जलाना जानवरों की ह्त्या, आदि को प्रभावित करता है। हालांकि मानवता ने हमेशा मृत और घायल सैनिकों और नागरिकों, नष्ट शहरों और आजीविका के संदर्भ में अपने युद्ध हताहतों की गिनती की है, जबकि पर्यावरण अक्सर युद्ध का असंगठित शिकार बना रहा है। इसके अलावा इस दौरान जल कुओं को प्रदूषित किया जाता है, फसलों को जलाया जाता है, जंगलों की कटाई, मिट्टी में जहर मिल जाता है, और जानवरों की सैन्य लाभ प्राप्त करने के लिए हत्या कर दी जाती है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, पिछले 60 वर्षों में, सभी आंतरिक संघर्षों में से कम से कम 40% प्राकृतिक संसाधनों और लकड़ी, हीरे, सोना और तेल जैसे उच्च मूल्य वाले संसाधनों के दोहन से जुड़े हुए हैं। , या उपजाऊ भूमि और पानी सहित दुर्लभ संसाधन।
किसी भी युद्ध या सशस्त्र संघर्ष में हताहतों की गिनती हमेशा मृत और घायल सैनिकों और नागरिकों के रूप में की जाती है। दरअसल, युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के कारण शहर और आजीविका भी नष्ट हो जाती है। पर्यावरण अघोषित रूप से युद्ध का शिकार बना हुआ है क्योंकि पर्यावरण पर युद्ध के प्रभाव को हमेशा नजरअंदाज किया जाता है।
यह दिन इस बात पर भी केंद्रित है कि युद्ध के प्रभाव से प्राकृतिक पर्यावरण कैसे खराब हो रहा है क्योंकि युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के कारण होने वाली क्षति और विनाश के गंभीर और दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पर्यावरण पर कार्रवाई संघर्ष की रोकथाम, शांति स्थापना और शांति निर्माण रणनीतियों का हिस्सा है, क्योंकि यदि आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने वाले प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाते हैं तो कोई स्थायी शांति नहीं हो सकती है।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद A2 /104 , पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753
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