इंसान के परिचय की शुरुआत भले ही उसके नाम और चेहरे से होती होगी.. लेकिन उसकी सम्पूर्ण पहचान तो उसकी वाणी, व्यवहार और सत्कर्म से होती है.

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अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज                                     औरंगाबाद सवाददाता नरेंद्र पियुष जैन(16 मई) अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज की उत्तराखण्ड के बद्रिनाथ से अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है आज    तरुण सागरम तीर्थ अहिंसा संस्कार पद यात्रा उभय मासोपवासी साधना महोदधि प.पू. अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी महाराज उपाध्याय श्री 108 पियूष सागर जी महाराज पतंजलि गुरुकुलम मुल्या जिला पौड़ी उत्तराखंड प्रातः पूजन दीप आराधना हुई संपन्न
9 वें दिवस में बद्रीनाथ से   लगभग 230 किलोमीटर की दुरी की तय निरंतर चल रहा है मंगलमय पदविहार तेज दोपहरी भीषण गर्मी में बढ़ते कदम हरिद्वार की ओर गोविन्द सेवा सदन गोविंदपुरम जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड
गोविन्द सेवा सदन गोविंदपुरम जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड
 अंतर्मना गुरुभक्त परिवार के द्वारा अष्टद्रव के सहित रूप से संपन्न हुई गुरुपूजन आशीर्वाद रेस्टुरेंट तीनधारा जिला टिहरी उत्तराखंड
अलकनंदा नदी के किनारे सपन्न संध्या गुरुभाक्ति प्रवचन मंगल आरती 16/05/2025 गवर्नमेंट पॉलिटानिक के पास सोर्ड पानी जिला टिहरी उत्तराखंड में आहारचर्या संपन्न हुई विहार दरम्यान उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री कहा कि
इंसान के परिचय की शुरुआत भले ही उसके नाम और चेहरे से होती होगी.. लेकिन उसकी सम्पूर्ण पहचान तो उसकी वाणी, व्यवहार और सत्कर्म से होती है…!
तुमने देखा होगा कि बगुला नदी किनारे कैसे एक टांग पर खड़ा रहता है, एकदम ध्यान मग्न, निश्चल। मगर ज्यों ही कोई मछली आती है, झपट्टा मारकर पकड़ लेता है। बगुले का ध्यान भगवान को रिझाने के लिए नहीं होता है, बल्कि मछली को फंसाने के लिए होता है। वह बगुला और कोई नहीं तुम ही तो हो। तुम में से भी तो बहुत से लोग भगवान और धर्म का उपयोग केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए करते हैं।
तुमने उस बिल्ली की भी कहानी सुनी होगी कि सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। बिल्ली कितनी ही बार हज की यात्रा कर आये, मगर जब वह चूहे को देखती है, तो सारे नियम धर्म भूल जाएगी और चूहे पर झपट्टा मार देगी।  बिल्ली और कोई नहीं तुम ही हो  क्योंकि तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद भी विधान, पूजा, पाठ करने के बाद भी वही घर में क्लेश, द्वेष, क्रोध और कषाय। संसार की आपा धापी यदि कम नहीं होती है..तो मान कर चलना बिल्ली जैसी हुई तुम्हारी यात्रा…!!!  नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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