इंद्रियों को संयम करना ही धर्म का मार्ग है जैन मुनि श्रुतेशसागर जी महाराज

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नैनवा 9 अगस्त शुक्रवार प्रातः ८’३० श्रुतेश सागर जी महाराज ने धर्मसभा में बताया
आज का मनुष्य अपने इंद्रियों के द्वारा ही नाना प्रकार के पाप कर रहा है इंद्रिय भोगों के लिए लालायित करने पर ही वह इंद्रियों के अनुसार चलने पर भोगों की क्रियाओं में पाप कर रहा है भोग की पांचो इंद्रियों से बचने के लिए मुनि ने संयम का मार्ग बताया

मुनि ने यह भी बताया की चिंता करने से कोई कार्य ठीक नहीं होते खुमार के पास मिट्टी रखी हुई है उस मिट्टी के घड़े मटकी बनाने के लिए खुमार को मेहनत पुरुषार्थ करने पर ही वह बर्तन बना पाएगा
विद्यार्थी को परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए अपने पुस्तकों को पढ़ना बहुत जरूरी है बिना पुस्तकों के पढे उसे सफलता प्राप्त होना असंभव है पुरुषार्थ के बिना कोई भी सफलता प्राप्त नहीं होना मुनि ने बताया
जैन धर्म की पहचान मुनि ने बताई
छुल्लक 105 सुप्रकाश सागर महाराज ने बताया जैन धर्म में अहिंसा अपरिग्रह अनेकांतवाद अक्रांता
संसार के सभी जिओ पर दया करना अहिंसा धर्म है! जरूरत से ज्यादा वस्तुएं इकट्ठी नहीं करना! एक ही वस्तु को अनेक नाम से जाना जाना अनेकांतवाद बताया
उन्होंने यह भी बताया इस संसार का करता धरता कोई नहीं है इसे चलाने वाला भी कोई नहीं है मनुष्य पर्याय में शांति से रहना झगड़ा प्रसार न करना मनुष्य पर्याय का गुण बताए
आज भक्तामर स्तोत्र के पुण्याजक श्री रिषब कुमार जैन ठक परिवार
चित्र अनावरण दीप प्रज्वलित पाद पक्षालन मंगलाचरण की प्रस्तुति श्रीमती सुनीता जैन प्रस्तुत किया
समिति द्वारा तिलक माला पहनाकर स्वागत सम्मान किया
महावीर कुमार जैन सरावगी
दिगंबर जैन समाज प्रवक्ता नैनवा

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