एच. एन. डी. बोर्डिंग के प्रकरण से मिलती है सीख

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महावीर दीपचंद ठोले महामंत्री श्री भारतवर्षीय दि जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा, महाराष्ट्र
छत्रपति संभाजीनगर | 75880 44495

जैन धर्म सदा से प्रकृति जन धर्म रहा है — जिसमें करुणा, संयम और अहिंसा का समन्वय है।
प्राचीन काल में हमारी जनसंख्या लगभग 40 करोड़ थी, जो घटकर ई. सन् 1556 में 4 करोड़ रह गई, और 2011 की जनगणना के अनुसार अब केवल 44,51,753 रह गई है।यह गिरावट केवल संख्या की नहीं, बल्कि हमारी धार्मिक जागरूकता और एकता की भी है।
इस ह्रास के प्रमुख कारण हैं —कठोर धार्मिक सिद्धांतों की जटिलता,आपसी कट्टरता,राजाश्रय का अभाव,देशांतर औरपंथवाद का प्रसार।तेरह-पंथ, बीस-पंथ जैसे विभाजनों ने समाज की एकता को कमजोर किया।
हमारी शक्ति और संपत्ति आपसी विवादों में नष्ट होती रही, जबकि अन्य समाज इसका लाभ उठाकर हमारे तीर्थों पर कब्ज़ा कर रहे हैं।
हमारे तीर्थों पर बढ़ते संकट
आज अनेक पवित्र तीर्थ जैसे — गिरनार जी, बद्रीनाथ जी, सम्मेद शिखर जी, केशरिया जी, तिरुपति बालाजी, खंडगिरि-उदयगिरि आदि पर लगातार आक्रमण हो रहे हैं।
अनेक अजैन कर्मचारियों के प्रबंधन में आने से तीर्थों की दुर्दशा हुई है।प्राचीन मूर्तियाँ उत्खनन में मिलने पर स्वामित्व प्रमाण के अभाव में पुरातत्व विभाग उन्हें अपने कब्जे में कर लेता है।ट्रस्टों में लापरवाही, धांधली और अव्यवस्था ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।* एच. एन. डी. बोर्डिंग प्रकरण — एक चेतावनी और प्रेरणा।पुणे की सेठ हिराचंद नेमचंद दिगंबर जैन बोर्डिंग (1958) — जो समाज के दानदाताओं की भावना से निर्मित थी को विश्वस्तों ने अवैध रूप से बेचने का प्रयास किया।
परंतु गुरुदेव आचार्य गुप्तिनंदी जी महाराज के आक्रामक मार्गदर्शन और सकल जैन समाज की एकजुटता से वह संपत्ति पुनः समाज के अधिकार में आ गई।यह केवल एक भवन की जीत नहीं थी, बल्कि श्रद्धा, एकता, विश्वास और शांतिपूर्ण संघर्ष की विजय थी।यह प्रकरण हमें भविष्य के लिए अमूल्य सीख देता है कि—“जब समाज जागता है, तो अन्याय झुकता है।”
सार्वजनिक संपत्ति — समाज की अमूल्य धरोहर
सार्वजनिक या ट्रस्ट संपत्ति समाज की सामूहिक अमानत होती है।इसे सुरक्षित रखने के लिए मुंबई पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950 के अंतर्गत पंजीकरण आवश्यक है।
ट्रस्टी मालिक नहीं, रक्षक होता है।
ट्रस्ट डीड में निम्न बिंदु स्पष्ट होने चाहिए —
ट्रस्ट का उद्देश्य,
न्यासी के अधिकार और दायित्व,
संपत्ति का विस्तृत विवरण।सभी लेन-देन पारदर्शी हों, रसीदें और बैंक रिकॉर्ड ऑडिटेड रहें।
हर वर्ष आम सभा आयोजित कर समाज को वार्षिक रिपोर्ट देना चाहिए — इससे विश्वास और पारदर्शिता दोनों बढ़ते हैं। ट्रस्ट प्रबंधन की नैतिकता और पारदर्शिता
संपत्ति के क्रय-विक्रय हेतु चैरिटी कमिश्नर की अनुमति अनिवार्य है।निजी लाभ लेना अपराध है।ट्रस्ट की संपत्ति का विवरण शेड्यूल (एक) में दर्ज हो।
सभी परिवर्तन की तत्काल सूचना दी जाए।संपत्तियों पर स्वामित्व बोर्ड लगें।
दस्तावेजों की ऑनलाइन और ऑफलाइन सुरक्षा हो।ट्रस्टी मीटिंग नियमित हों और निर्णय मिनिट्स बुक में लिखे जाएं।
“जहाँ पारदर्शिता है, वहीं विश्वास है; जहाँ विश्वास है, वहीं धर्म की प्रतिष्ठा है।”
संस्था में नई सोच और नई ऊर्जा की आवश्यकता
जो व्यक्ति धार्मिक संस्था में आकर निजी स्वार्थ में लिप्त हो जाता है,वहसंस्था का दीमक बन जाता है।इसलिए ट्रस्टों में नियमित चुनाव होना चाहिए।नये विश्वस्तों में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, आर्किटेक्ट और वकील जैसे योग्य व्यक्ति भी सम्मिलित हों — ताकि प्रशासनिक मजबूती बनी रहे।* तीर्थों की सुरक्षा हेतु प्रमाणिक उपाय
मूर्तियों, मंदिरों व तीर्थों के शिलालेख, प्रशस्ति व इतिहास को तांबे या पत्थर की पट्टिकाओं पर तीन प्रतियों में अंकित करें।इन्हें भूगर्भ, दीवारों व विश्वस्तों के पास सुरक्षित स्थानों पर रखें।स्वामित्व दस्तावेज़ संबंधित विभाग में पंजीकृत हों।
मूर्तियों पर लेप करते समय प्राचीन शिलालेख सुरक्षित रहें।जहाँ जैन परिवार कम हैं, वहाँ रोजगार और आवास की सुविधा देकर बसाए। करें।
स्थानीय समाज के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखें।
नव निर्माण से पहले चेतना निर्माण
आज अनेक नये मंदिर उन क्षेत्रों में बन रहे हैं जहाँ जैन समाज नगण्य है।
ऐसे स्थानों पर भविष्य में संरक्षण की समस्या उत्पन्न हो सकती है।हम अल्पसंख्यक हैं — यदि सजग न रहे तो हमारी स्थिति “छोटी मछली को निगलती बड़ी मछली” जैसी हो सकती है।इसलिए —“भवनों से पहले भावनाओं का निर्माण करें,
तीर्थों से पहले तीर्थमानवों का निर्माण करें।”
आत्मचिंतन का आह्वान
नई सदी में जैन धर्म और समाज की मर्यादा को सुरक्षित रखना हमारा धर्मिक कर्तव्य है।यदि हमने आत्मसजगता नहीं दिखाई, तो जैन धर्म की जगहंसाई और दुर्गति अवश्य होगी।
इसलिए —
“नव निर्माण से पूर्व नव चेतना का संकल्प लें।धर्म को मानने वाले तैयार करें, तभी धर्म बचेगा।”
निष्कर्ष:
एच. एन. डी. बोर्डिंग का प्रकरण हमें यह सिखाता है कि जब समाज संगठित होता है, तो अन्याय पर विजय निश्चित होती है।
हमारा कर्तव्य है कि हर तीर्थ, हर संस्था, हर मंदिर हमारी एकता और जागरूकता का प्रतीक बने — यही जैन धर्म की सच्ची साधना है।

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