हरिद्वार/कोडरमा झारखंड के तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की पावन भूमि में सबसे बड़ी

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हरिद्वार/कोडरमा झारखंड के तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की पावन भूमि में सबसे बड़ी तपस्या के साथ ऐतिहासिक चातुर्मास संपन्न करने के बाद झारखंड, महाराष्ट,तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश,की लगभग हज़ारो किलोमीटर की पैदल बिहार करते हुवे जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर 1008 श्री आदिनाथ भगवान की निर्वाण स्थली बद्रीनाथ का दर्शन करते विभिन्न राज्यों से हज़ारो किलोमीटर की पदयात्रा कर हरिद्वार स्थित पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रांगण में आध्यात्मिक, दार्शनिक और धार्मिक संवाद का अनूठा दृश्य देखने को मिला, जब दिगंबर जैन परंपरा के प्रखर विचारक जैन संत शिरोमणि अंतर्मना आचार्य श्री108 प्रसन्नसागर महाराज का आगमन हुआ। उनके स्वागत के लिए पतंजलि विश्वविद्यालय में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जहाँ स्वामी रामदेव महाराज और आचार्य बालकृष्ण ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। इस अवसर पर रामदेव जी महाराज ने कहा कि गुरुदेव का आना ये पतंजलि परिवार के लिए बहुत बड़ा उपकार है जैन संत पैदल इस विषम गर्मी में भी पूरे भारत मे घूमते हुवे हम सब पतंजलि परिवार का परम सौभाग्य से गुरुदेव के चरण यहाँ पड़े है ।इस अवसर पर जैन मुनि ने कहा कि स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण मानवता के स्वास्थ्य, सामाजिक समृद्धि और वैश्विक सद्भाव के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं। उन्होंने योग और आयुर्वेद का व्यापक अभ्यास किया है। ऋषियों ने प्रकृति, संस्कृति और विकृति का विस्तृत विश्लेषण किया। उसने कहा,
जीवन पर यदि संस्कृति
और प्रकृति के अनुरूप नहीं है तो विकृति में जीना गरीबी की निशानी है।
स्वागत समारोह में पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं योग मनीषी स्वामी रामदेव ने कहा कि अन्तर्मणि आचार्य प्रसन्नसागर का आगमन मात्र एक जैन संत का आगमन नहीं है, बल्कि यह भारतीय दर्शन के शुद्धतम विचारों की अभिव्यक्ति है। जैन धर्म सनातन धर्म का शुद्धतम रूप है, जो तप, संयम, अहिंसा और आत्म-जागरूकता का मार्ग दिखाता है। स्वामीजी ने कहा कि गुणों और भावनाओं से परे रहना ही सच्चा जीवन है। उन्होंने कहा कि आचार्य प्रसन्नसागर ने जीवनभर प्रकृति की पूजा की है। दिगम्बर बनने का अर्थ है शरीर के सभी भ्रमों से मुक्त होना। वे
आपका जीवन विनम्रता और धैर्य के साथ जिया गया है,
जो उनके व्यक्तित्व में स्पष्ट दिखता है।
इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य आचार्य बालकृष्ण ने अन्तर्मना आचार्य श्री के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए संस्कृत में रचित आठ श्लोकों का वाचन किया। इस काव्यात्मक श्रद्धांजलि ने उपस्थित श्रोताओं के दिलों को छू लिया तथा हॉल को भक्ति से भर दिया। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री के तपस्वी जीवन, पवित्रता और समर्पण को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
कार्यक्रम में जैन समुदाय की ओर से स्वामी रामदेव को प्रशंसा पत्र प्रदान किया गया। इस अवसर पर सम्मानित किये गये मनीष जैन भिड़, प्रदीप जैन कानपुर, मनोज चौधरी हैदराबाद, विवेक जैन कोलकाता, शिवम सोनी विकल्प सेठी ,गणेश भाई,
दिगबर भाई, सत्यम जैन, डॉक्टर जैन, सुमित जैन आदि हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे।कल 8 जून को भारत की राजधानी दिल्ली में भब्य मंगल प्रवेश होग जिसकी तैयारी में पूरा दिल्ली जैन समाज जुटा हुआ है।कोडरमा मीडिया प्रभारी राज जैन अजमेरा।

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