हार मत, ये मंजिलें तेरी परीक्षा तो लेगी.. तू मेहनत करेगा दिल से, तो शोर तेरी सफलता खुद मचा देगी

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अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज       औरंगाबाद  अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज की कुलचाराम से बद्रीनाथ अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रहा है आज 15/04/2025 जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड में आहारचर्या में होंगी अंतर्मना ससंघ का निरंतर अष्टापद  बद्रीनाथ धाम के लिए चल रहा  है पदविहार मे प्रवचन मे कहाँ की
हार मत, ये मंजिलें तेरी परीक्षा तो लेगी.. तू मेहनत करेगा दिल से, तो शोर तेरी सफलता खुद मचा देगी..!
ईर्ष्या एक दीमक है, जो जीवन को भीतर ही भीतर खोखला कर देती है। किसी की प्रसिद्धि से हम जले नहीं, बल्कि प्रेरणा लें कि हमें भी जीवन में कुछ करना है,, जिससे औरों को भी प्रेरणा मिल सके। साधु सन्तों में कुछ ऐसे साधु भी है जिन्हें मेरा तप, त्याग, मौन, एकान्त में रहना हजम नहीं हो रहा। उनसे तप, त्याग की अनुमोदना की उम्मीद करना बेकार है। मेरे पास कुछ ऐसे आचार्यों और साधु, सन्त, त्यागी, व्रतियों के नाम है जो दिल खोलकर तप, त्याग, मौन साधना की अनुमोदना और प्रशन्सा करते हैं। मैं तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी गुरूदेव की कृपा-प्रेरणा से तप, त्याग, साधना को विश्व व्यापी बना रहा हूँ। अब जिसको भी देखो, साधु समाज हो या श्रावक समाज, अपनी शक्ति अनुसार व्रत, उपवास, संकल्प को लेकर अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।जो स्वयं को जलाकर जग को रौशन करे, वो दीप-धर्म है, और जो स्वयं को तपाकर दुनिया को जगा दे, वो सन्त धर्म है।
समत्व की साधना ही सन्त धर्म है। समता से विच्छिन्न होने के दो कारण है। एक – अपने ही किसी साधर्मी भाई की सफलता को पचा नहीं पाना, और दूसरा – अपनी स्वयं की आलोचना सहन नहीं कर पाना। क्योंकि सन्त, सांड और सम्राट को उद्वेलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। ये तब होता है जब हमारी अपेक्षाओं की उपेक्षा होती है।ध्यान रखना!सन्त के जीवन में केवल वाही वाही के फूल नहीं बरसते हैं, वरन निंदा आलोचना की कीचड़़ भी उछाली जाती है। इसलिए सन्त मुनि को चाहिए कि वो अपनी सत साधना में मस्त रहे, ठीक वैसे ही जैसे हाथी अपनी मस्ती में चलता है, पीछे ध्यान नहीं देता कि कौन भौंक रहा है…!!!  नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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