हर एक पिता की दो कहानियाँ होती है..

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श जैन अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज की दिल्ली तरुणसागरम तीर्थ अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है आज यह अहिंसा संस्कार पदयात्रा भारत गौरव साधना महोदधि    सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज के सानिध्य में
श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन  मंदिर, अशोक विहार ,फैस – 2 दिल्ली
से दिगम्बर जैन मंदिर, F-ब्लाक, अशोक विहार फेज-1, दिल्ली 2 किलोमीटर के लिए होगा विहार दरम्यान उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि
हर एक पिता की दो कहानियाँ होती है..
एक वो जो सबको सुनाता है, और
दूसरी वो जो सबसे छुपाता है..!
पिता सब कुछ बताते नहीं – लेकिन बेटों में वो हुनर होना चाहिए जो अपने पिता की अदाओं से उनके हुनर को चुरा कर अपने जीवन की कला बना ले। जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब पिता की जीवनोपयोगी बातें, उनका अनुशासन, कही गई बातें वक्त पर काम आती है, तभी तो कहते हैं – हमारे पापा ने सिखाया। आश्चर्य की बात तो यह है कि वो दिन, खुद पापा बनने के बाद आता है! कभी कभी पिता की खामोश नज़र से मिली नसीहतें वर्षों बाद समझ में आती है।
हम बचपन में सोचते थे, माँ जितना प्यार पिता क्यों नहीं करते-? चेहरे पर हर वक्त सख्ती बनी रहती थी। बात करते समय भी उनका लहज़ा सधा हुआ रहता था। माँ की तरह उनसे लड़ियाते हुए बात करने की, सोचना भी बेकार था। समय, काम, खर्च और खान-पान को लेकर भी पिता बहुत सख्त रहते थे। बचपन में बच्चों की पिता से कई शिकायतें रहती थी। पिता का प्यार उनकी परवाह देखने के लिये एक उम्र का इन्तजार करना ही पड़ता था। पिता की बातें, उनके अनुभव, उनकी भावना तभी समझ आती है जब हम दुनिया का सामना करते हैं।
अभिभावक अपने बच्चों को, अपने जीवन में हुई भूलों से बचाकर रखने की कोशिश करते हैं, खास तौर पर पिता।* जो उन्हें हासिल नहीं हुआ, वो बच्चों को मिले। जब पिता बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हैं, पीठ  थप थपाते हैं, कन्धे पर हाथ रखते हैं, तब लगता है पिता से दूर होना यानि सागर से बून्द होना जैसा ही है। पिता से ही माँ का संसार है और माँ से परिवार का सुख आनंद है…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद
Regards,

Piyush Kasliwal
9860668168

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