हमारे बीच नहीं रही श्राविका शिरोमणि ब्र. शीला वती

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98 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
*यमुनानगर, 6 अप्रैल (डा. आर. के. जैन): *
जैन धर्म हमेशा से ही त्याग व सेवा भाव के लिये समाज में अपनी अलग पहचान रखता है और जैन धर्म के अनेकों सेवादार व अनुयायी समाज के लिये प्रेरणा स्रोत रहे है। इसी कड़ी में सेवादार ब्रह्मचारिणी शीला वती जैन (अम्मा जी) ने त्याग तप तपस्या के पश्चात 98 वर्ष की आयु में अपनी सांस ली और अब वह हमारे बीच नहीं रही। पुत्र पवन कुमार ने बताया कि श्राविका शिरोमणि शीला वती जैन का जन्म अगस्त 1928 में हुआ, और आपके जीवन में धर्म के प्रति असीम श्रद्धा एवं समर्पण की क्षवि बाल्यकाल से ही दृष्टि गोचर होती रही है, और अपने जीवन के अंतिम समय तक सेवा साधना की ज्योति पूरी तरह से रही है। उन्होंने बताया कि साधु संतों के प्रति उनके चरणों में समर्पित माता शीला वती का जीवन सभी के लिये प्रेरणादायक रहा है, और वह जय शांतिसागर निकेतन में सेवा करते हुए जैन धर्म का पावन परंपरा का निरंतर विस्तार करती रही। उनकी सेवा व समर्पण को आचार्य विद्या सागर गौशाला निकेतन द्वारा श्राविका शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया गया था, और उनकी धर्म के प्रति अडिग आस्था, अहिंसा के मार्ग पर अनवरत चलने का अनुपम उदाहरण रहा है। उन्होंने अपने पुत्र व पुत्रियों की परवरिश में धर्म व उच्च शिक्षा पर जोर दिया, सभी को पूजा-पाठ करना सिखाया और इसके साथ ही भौतिक शिक्षा का भी पूरा ज्ञान कराया। उन्होंने आजीवन जिमीकंद, रात्री भोजन एवं परिग्रह का त्याग किया है और अंतिम समय तक नियम पूर्वक अपने जीवन का निर्वाह किया।
फोटो नं. 4 एच.
अम्मा जी का फाईल फोटो

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