चेन्नई।
श्री शंकरलाल सुंदरबाई शसुन जैन महिला महाविद्यालय में जैनविद्या विभाग में १ मार्च को तमिल जैन विदुषी डाॅ. नीलकेशी का अकादमिक संवाद हुआ। नीलकेशी पिछली सदी के प्रसिद्ध तमिल जैन विद्वान प्रो. ए. चक्रवर्ती (1880-1960) की पड़पौत्री हैं। वह जैन इतिहास और पुरातत्व में लेखन व अनुसंधान से जुड़ी हैं। उन्होंने तमिलनाडु के जैन पुरास्थलों के शैलशिल्प और शिलालेखों की जानकारी दी। विभाग के शोध-प्रमुख साहित्यकार डाॅ. दिलीप धींग द्वारा सम्पादित अष्टपाहुड (अंग्रेजी) प्रदान करके डॉ. नीलकेशी का सम्मान किया गया।
इस अवसर पर राजस्थानश्री डाॅ. दिलीप धींग ने कहा कि धन की विरासत तो सभी लेना चाहते हैं, लेकिन ज्ञान की विरासत को सहेजना ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रेरणादायी है। ज्ञान एक ऐसा धन है, जिसका बंटवारा नहीं होता है और ज्ञान बांटने पर भी घटता नहीं है। ज्ञान अगले भव में भी साथ चलता है। अतः व्यक्ति को सदैव विद्यार्थी बने रहकर ज्ञान सीखना चाहिये। सहायक प्राध्यापिका डाॅ. रेशमा भंसाली ने संयोजन किया।
– डाॅ. सुनीता जैन
निदेशक: जैनविद्या विभाग, शसुन जैन काॅलेज
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