ज्ञान एक ऐसी वस्तु है, जो हमें इंसान बनाती है -मुनिश्री विलोक सागर

0
7

संस्कार शिक्षण शिविर के प्रथम दिन दी गई धार्मिक शिक्षा

मुरैना (मनोज जैन नायक) ज्ञान एक ऐसी वस्तु है जो हमें इंसान बना देती है । यदि हम थोड़ा थोड़ा भी अध्ययन करें, स्वाध्याय करें तो भी हम एक दिन ज्ञानवान बन सकते हैं। थोड़ा थोड़ा संयम धारण करने वाला व्यक्ति भी एक दिन संयमी पुरुष बन जाता है । थोड़ा थोड़ा संचय करने वाला भी एक दिन धनवान बन जाता है । बूंद बूंद से भी घड़ा भर जाता है । इसी प्रकार एक एक गुण को धारण करने वाला व्यक्ति गुणवान बन जाता है । जो व्यक्ति समय का महत्व नहीं समझते, अपने अमूल्य समय को यू ही बर्बाद करते हैं वे जीवन में कभी भी सफल नहीं होते । बिना परिश्रम के विद्या प्राप्त नहीं होती, यदि बिना परिश्रम के विद्या प्राप्त हो भी जाए तो वो अधिक समय तक रुकती नहीं हैं । आने वाले समय में ऐसी विद्या नष्ट हो जाती है । परिश्रम और संघर्ष के साथ जो विद्या प्राप्त होती है, वहीं हमें सही ज्ञान प्रदान करती है । समय का सम्मान करिए, समय का सम्मान करने वालों को विद्या विद्या तुरंत प्राप्त होती है । इसलिए कठिन परिश्रम के साथ संघर्षों में हमें विद्या अर्जन करना चाहिए । विद्या का, ज्ञान का सृजन करना ही हमारे मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए, तभी हमारा मानव जीवन सार्थक होगा । उक्त उद्गार दिगम्बर जैन संत मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में श्रमण संस्कृति संस्कार शिविर में शिवरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
आत्मा की विशुद्धि के लिए प्रभु आराधना आवश्यक है
किसी भी कार्य की सफलता के लिए विशुद्धि की आवश्यकता होती है । उसी विशुद्धि को बनाए रखने के लिए प्रभु की भक्ति, प्रभु की आराधना की आवश्यकता होती है और यह आवश्यकता तब तक बनी रहना चाहिए तब तक हमें निर्वाण की प्राप्ति नहीं हो जाती । हमें आत्मा की विशुद्धि के लिए सतत ज्ञान की आराधना परम आवश्यक है । क्योंकि ज्ञान प्राप्त करना बहुत दुर्लभ है । हमें मानव जीवन मिला है । कब यह शरीर हमारा साथ छोड़ दे, किसी को नहीं मालूम । जीवन बहुत कम है, थोड़ा है । हमें इस थोड़े से जीवन में ज्ञान प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए । विद्या और ज्ञान से हमारा जीवन सहज और सरल हो जाता है । यही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए ।
शिक्षण शिविर का आज प्रथम दिन
आज शिक्षण शिविर के प्रथम दिन शिविरार्थियों में भारी उत्साह दिखाई दिया । प्रातःकालीन वेला में सभी बंधुओं, युवाओं एवं बच्चों को सामूहिक रूप से श्री जिनेंद्र प्रभु के अभिषेक पूजन का प्रशिक्षण दिया गया । साथ ही श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर से आए हुए विद्वानों ने बाल बोध प्रथम, द्वितीय, भक्तामर, तत्त्वार्थ सूत्र, छहढाला, द्रव्य संग्रह, रत्नकरण श्रावकाचार की विषयवार कक्षाओं में शिविरार्थियों को विषयवार शिक्षा प्रदान की गई । स्वयं मुनिश्री विबोध सागर महाराज ने रत्नकरण श्रावकाचार की कक्षा का संचालन करते हुए शिक्षण प्रदान किया । शाम को मुनिश्री विलोक सागर जी महाराज ने शंका समाधान कार्यक्रम में लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान किया ।
कार्यों की सफलता के लिए उमंग और उत्साह चाहिए
सांसारिक जीवन में कोई भी कार्य बगैर विघ्न के पूरा नहीं होता है । अनुशासन एवं विधि विधान से किए गए सभी कार्य सफल होते है । सभी कार्यों की सफलता के लिए समर्पण, उत्साह और उमंग की आवश्यकता होती है । उमंग और उत्साह के साथ किए गए सभी कार्य सफल होते है ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here