श्री दिगम्बर जैन मंदिर कृष्णानगर में चातुर्मास हेतु पधारे, विशाल संघ के अधिनायक, जिनागम पंथ के प्रवर्तक, जीवन है पानी की बूँद’ (महाकाव्य) के मूल सृजेता भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शरसागर जी महामुनिराज के मुखारबिन्द से प्रतिदिन प्रातः 8:00 बजे से श्री भक्तामर महिमा पर विशेष व्याख्यान माला प्रारंभ हो चुकी है। सुख, शान्ति, समृद्धि दायक अतिशय भारी श्री भक्तामर स्तोत्र के प्रथम काव्य का विस्तार से वर्णन करते हुये पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि- भक्ति ही भक्त को भगवान से मिलाने वाला प्रबल सेतु है। किसी ने पूछा कि संसार के दुखों से मुक्त होने का सरलतम उपाय क्या है? भाचार्य भगवन कहते हैं संसार के दुखों से मुक्ति का सबसे सरलतम उपाय है- भक्ति । भावों की शुद्धि का श्रेष्ठतम् उपाय भक्ति हैं। जिसके हृदय में परमात्म गुणों के प्रति भक्ति का भाव हो, जिसके हाथ में जिनवानी की भक्ति है, गुरु प्रति जिसका रूप्य भक्ति से भरा ही उसे भाव स्वयं ही विशुद्धतम होते चले जाते हैं। जीवन में उपलविधयाँ उन्हीं को प्राप्त होती है जिनके हृदय में भक्ति निवास करती है। भक्ति के बिना जीवन सूना है, जिसके हृदय में भक्ति है उसका जीवन सीना ही सोना है, उसका हृदय अमृत घट बन जाता है। जब भगवान के प्रति अंतस में गहन समर्पण का भाव आता है तो प्रभु की भक्ति में वह भक्त अपनी सुध बुध सब खो देता है। उसके नयनों में सिर्फ परमात्मा का अक्स समाहित रहता है उसे हर जगह सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा नजर आता है, फिर इस भौतिक जगत का आकर्षण उसे लुभा नहीं पाता ।
आचार्य श्री ने कहा कि भक्ति की प्रथम शर्त है नमन। अगर भक्ति हृदय में होगी तो नमस्कार का भाव आयेगा ही आयेगा। भगवान के चरणों में वही झुक सकता जिसने अपने अहंकार की जीत लिया है जीवन में उठना है तो पहले झुकना सीखना होगा। जो जितना जितना परमात्मा के चरणों में नतमस्तक होता जाता है उतना उतना लीक से’ उसका मस्तक उतना उतना ऊपर उठता जाता है। आचार्य श्री ने अपने उपदेश में नशीले पदार्थों के बिन त्याग पर जोर दिया जिससे प्रभावित ही सभा में सैकड़ों लोगों ने गुटखा, भीड़ी सिगरेट, तम्बाकू आदि बनुमों का आजीवन ब्याग का संकल्प लिया। प्रवचन के उपरान्त पाँच प्रश्न सभा में पूछे गये, और प्रतियोगियों की सम्मामित किया गया । प्रतिदिन प्रात: 7:45 पर भक्तामर महिमा एवं 6:30 पर शाम भी टूडेज सोलुसन, भक्ति गंगा महोत्सव चल रखा है।