गोमेद-अम्बिका प्रतिमा द्वितीय- इस प्रतिमा में गोमेद-अम्बिका प्रतिमा भी प्रथम प्रतिमा की तरह है। इनके शिर सहित वितान भाग भग्न और अनुपलब्ध है। पुरातत्त्व विभाग की पंजी में इसे किसी अन्य प्रतिमा के नाम से पंजीवद्ध किया गया है, जैन प्रतिमाओं की सूची में इसका उल्लेख नहीं है। इसके पादपीठ में सात अश्वारोही उत्कीर्णित किये गये हैं। मध्योत्कीर्णित सतम्भ के मूल में दो आराधिकाएँ अंजलिबद्ध बैठीं हैं, येे दोनों भी यक्ष की ओर अभिमुख होकर भक्तिरत हैं। यक्ष-यक्षी के निकट वाले हाथों में बीजपूरक फल है। अंबिका यक्षी के बायें पाश्र्व में बालक खड़ा है, उसके शिर पर देवी की हथेली है, शेष भाग टेहुनी तक भग्न है। यक्ष के दक्षिण पाश्र्व में खड़े बड़े बच्चे का हाथ अपने दाहिने हाथ से थामे हुए है। इस बड़े बच्चे का भी पाषाण क्षरित हो जाने से इसमें स्पष्टता नहीं है। इसके कुछ वक्ष उभार से प्रतीत होता है कि यह स्त्रीपात्र है। अलंकरण आदि सभी प्रथम यक्ष-यक्षी प्रतिमा के समान हैं।
गोमेद-अम्बिका प्रतिमा तृतीय- गंधर्वपुरी के राजकीय संग्रहालय के सर्वेक्षण के समय हमने अधिकांश पुरावशेषों के चित्र लिये थे, उस टीम में मेरे अतिरिक्त वास्तुविद् देवन्द्र सिंघई, एम.के. जैन ज्योतिर्विद्, पंकज जैन और श्रीमती नीलू जैन थे। हमने दो पुरावशेषों के टुकड़ों के चित्र मिलाये तो यह तृतीय गोमेद-अम्बिका प्रतिमा प्रतीत हुई। इसका भी वितान भाग नहीं है, जिससे शिर और उिससे ऊपर की संरचना अज्ञात है। इसके पादपीठ में भी सप्त अश्वारोही हैं। दोनों के पाश्र्वों में बालकों के अवशिष्ट भाग को देखा जा सकता है। बाम कर में धारण किये हुए मातुलिंग स्पष्ट है। दोनों भग्न भाग जोड़कर इसका अधिकतर भाग द्वितीय प्रतिमा के समान है।
तीर्थंकर-यक्षी प्रतिमा चतुर्थ- इस तीर्थंकर-यक्षी प्रतिमा का परिकर और घुटनों से नीचे का अधोभाग भग्न और अप्राप्त है। इसके चरणों के पास एक आराधिका बैठी हुई अवशिष्ट है। केश-सज्जा प्रथम प्रतिमा की यक्षी के समान है, प्रभावल भी वर्गाकार है। शिर के ऊपरी भाग में एक ही आसन पर समान स्तर पर तीन लघु जिन पद्मासनस्थ हैं।
गोमुख यक्ष एकल प्रतिमा- प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के शासन देवता गोमुख यक्ष की यह प्रतिमा सम्प्रति केन्द्रीय संग्रहालय गूजरीमहल ग्वालियर में सुरक्षित है। डाॅ. नरेश पाठक ने इसका परिचय दिया है कि गंधर्वपुरी (गंधावल) से प्राप्त गोमुख यक्ष का मुख पशु आकार (गोवक्त्रक) और शरीर मानव का है (सं.क्र. २३०)। सव्य ललितासन में बैठे हुए शासन देव की दायी नीचे की भुजा भग्न है। दायीं ऊपर की भुजा में गदा, बायीं ऊपर की भुजा में परशु व नीचे की भुजा में बीजपूरक है। यक्ष आकर्षक करण्ड मुकुट, मुक्तावली उरुबन्ध, केयूर, वलय, मेखला से सुसज्जित है। कलात्मक अभिव्यक्ति ११वीं शती ईस्वी की परमार युगीन शिल्पकला के अनुरूप है। काले वलुए पाषाण पर निर्मित प्रतिमा का उत्सेध ४५ से.मी. और चैड़ाई ३० से.मी. है।
विश्लेषण- 1. गंधर्वपुरी में प्राप्त यक्षी के एकल स्वतंत्र प्रतिमा अथवा यक्ष-यक्षी की युगल स्वतंत्र प्रतिमाओं के शिरोभाग वितान में पाँच लघु जिन तीर्थंकर उत्कीर्णित किये जाने की परम्परा अनूठी है। यहाँ विश्लेषित प्रथम प्रतिमा के वितान में भी पाँच पद्मासनस्थ लघुजिन उत्कीर्णित हैं, अन्यत्र ऐसी प्रतिमाओं के शीर्श पर एक ही लघु जिन के उत्कीर्णन हुए हैं। 2. द्विभंगासन में खड़े यक्ष-यक्षी की युगल प्रतिमाएँ बहुत अल्प प्राप्त होती हैं, किन्तु गंधर्वपुरी में ऐसीं कम से कम तीन प्रतिमाएँ एक साथ प्राप्त होना अपने आप में महत्वपूर्ण है। 3. चतुर्थ यक्षी प्रतिमा के शिरोभाग में तीन लघुजिन का उत्कीर्णन भी वैशिष्ठ्य युक्त है, शीश पर लघुजिन से स्पष्ट है कि यह किन्ही तीर्थंकर की यक्षी प्रतिमा है।