गीगंला आदिनाथ दिगम्बर जैन में आज दिनांक 12/सितम्बर/ 2024 गुरूवार को पर्यूषण का पांचवा दिन ऊत्तम सत्य धर्म की पुजा आराधना की गई, प्रात: सात बजे सभी वेदियों में बीराजीत जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमाओं के अभिषेक के पश्चात सभागृह हाॅल में मण्डप में आदिनाथजी, शान्ति नाथजी,एवं नन्दीश्वर भगवान की प्रतिमाओं को बीराजमान करके पंचामृत अभिषेक की सारी क्रियाएं श्रावीकाओं ने बढ चढ कर बोलियां लगाकर पुण्यार्जन प्राप्त किया, जिसमें दुध से अभिषेक करने का सौभाग्य श्रावक श्रेष्ठी श्री मान शान्ति लालजी प्यार चन्द जी बम्बोरिया धर्म पत्नी सवागी बाई पुत्र विनोदकुमार,अनिल कुमार बम्बोरिया परिवार ने प्राप्त किया। मौसंबी रस एवं दो कोण कलशों से अभिषेक करने का लाभ मगन लाजजी हमेरमलजी ध.प.
ललिता देवी,पुत्र सोनु,विनोद केलावत परिवार ने, वहीं सबसे महत्वपूर्ण शान्ति धारा की बोली श्री मान हीरालाल जी ध.प. जमनादेवी,पुत्र रतन लाल,शान्ति लाल,छगन लाल केलावत परिवार ने बडी बोली लगाकर पुण्यार्जन प्राप्त किया। शान्ति धारा मन्दिर में बीराजीत मुनी108 श्री अनुशासन सागरजी।महाराज के मुखारविंद से बोली गई। तत्पश्चात रिद्धिमन्त्रों सहित शान्ति धारा का समापन लक्ष्मी लाल जैन बम्बोरिया के मन्त्रोचार से सम्पन्न की गई। नित्य नियम पुजा के बाद आज सोलहकारण,पंचमेरू, दशलक्षण,नंदीश्वर द्वीप की विशेष पर्व की पुजा के श्री फलों युक्त अर्ध्य।मण्डप पर समर्पित किये गये। ईसी बीच मुनी अनुशासन सागरजी महाराज ने ऊत्तम सत्य धर्म पर प्रवचन करते हुए बताया,सिर्फ जुठ बोलना ही असत्य नहीं अपितु,किसी को चुभे एसा कठोर संभाषण,पराई नीन्दा, विष्वास धात,ये सभी भी जूठ की श्रेणी में ही आते हैं, एसा सत्य भी किस काम का जो किसी के प्राणों का धात करता हो एसी स्थिति में मौन रहना ही ठीक है। कीसी की एक आंख फुट गई तो ऊसे ए कानिया,लुले को ए लंगडीया कहकर बुलाए और कहे मैंने जुठ थोडे ही कहा, श्रास्त्रों में आचार्य देव ने कहा है नहीं हे धर्मी यह सच नहीं जुठ का पाप लगेगा, मुनी महाराज तो पंच महाव्रतों के धारी होते हैं वे तो अपने प्राण चले जाए तब भी जूठ नहीं बोलते, ऊनको साधु के भेस में एक ठोंगी ने अपने हाथ में कपडे में छोटी-सी चीडिया का जीवित बच्चा दबाकर रख्खा था और मुनी महाराज को ललकारा बताओ तुम अवधि ज्ञानी मुनी हो तो बताओ मेरे थैले जो है जीवीत है या मृत। मुनिराज तो अवधिज्ञानी थे, पर वे समज चुके थे अगर मैं सच बताऊंगा कि चिडिया का जीवित बच्चा है तो यह निर्दयी मूजे मुजे जुठा साबित करने के लिये दबा कर मार डालेगा, और जूठ बोलता हुं तो सत्याणु व्रत में दोष लगेगा, पर ऊन्होने कहा बच्चा मरा हुआ है, ऊस पाखण्डी ने जट से हाथ खोला कहा देखो तुम कैसे ज्ञानी हो देखो बच्चा जीवीत है, चीडिया का बच्चा ऊड गया। साधु मन ही मन मुस्कुरा रहे थे वे यही तो चाहते थे, एसा जूठ जुठ नहीं होकर सच से बढकर हो जाता है। दान देते समय भी पात्र कुपात्र का ध्यान रखकर करना चाहिए कहीं अपने दिये द्रव्य का वह जीव हिंसा हथीयार आदी में तो नहीं ऊपयोग करने वाला नहीं हो। गृहस्थ सर्वथा जुठ का त्याग नहीं कर सकते पर बात बीना बात अपनी सेखी बगारने के लिये ऐसा तो मेरे पास भी था, एसा तो मैं भी जानता हुं, वहां तो मैं कई बार जा चुका, मैं तो हमेशा एसा करता हुं, भैया हम करते हैं या नहीं करते हमें कौन कह रहा है पर बे वजह जुठ बोलने से तो अवश्य ही बचना चाहिये। तभी आगे चल कर मुनी अवस्था में जुठ का सम्पुर्ण त्याग हो पाएगा। प्रवक्ता = लक्ष्मी लाल चम्पालालजी जैन (बम्बोरिया) आयुर्वेदिक औषधालय के पास गीगंला।
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