गणिनी प्रमुख सर्वोच्च साध्वी आर्यिका ज्ञानमती माता जी का 92वाँ जन्मोत्सव व 73 बर्ष का संयम दिवस यह अलौकिक महामहोत्सव भगवान ऋषभदेव आदि पाँच तीर्थंकरों की जन्म भूमि शाश्वत तीर्थ अयोध्या में जहां परमपूज्यआर्यिका चंदनामती और कर्मयोगी रवींद्रकीर्ति स्वामी जी के ससंघ सानिध्य में जन्मजयंती भव्य दिव्यता के साथ तीन दिवसीय शरद पूर्णिमा रत्नत्रय धूमधाम से देश भर से आये हजारों जनों की उपस्थिति में मनाई गई ,गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी का अवतरण शरद पूर्णिमा 22 अक्टूबर 1934 को बाराबंकी जिले के टिकैत नगर में हुआ,2 अक्टूबर 1952 को शरद पूर्णिमा के ही दिन उन्हें दिगंबर जैनाचार्य देशभूषण महाराज द्वारा ब्रह्मचारिणी के रूप में दीक्षा दी गई,चैत्र कृष्णा एकम को श्री महावीर जी क्षेत्र पर आचार्य देशभूषण महाराज ने ही क्षुलिका दीक्षा प्रदान कर वीरमती नामकरण किया। चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री 108 शांति सागर मुनिराज की समाधि के समय ये करीब एक माह कुन्थलगिरि रही हैं। समाधि के बाद प्रथमाचार्य के निर्देश पर ही प्रथमाचार्य के प्रथम पट्टाचार्य श्री 108 वीरसागर महाराज द्वाराआर्यिका पद परआसीन कर ‘ज्ञानमती’ नामकरण किया ।प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथ न्याय-अष्टसहस्री का हिंदी मेंअनुवाद किया शुभ उद्धरणों और विचारों से लेकर पुस्तकों और संस्करणों के 500 से अधिक जैन ग्रंथ लिखे हैं। हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप व अयोध्या और मांगीतुंगी में ऋषभनाथ की 108 फीट ऊंची प्रतिमा, जो दुनिया की सबसे ऊंची जैन प्रतिमा है, के पीछे प्रेरणा थीं। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड प्रमाण पत्र 6 मार्च 2016 प्रदान किया गया। साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद द्वारा फरवरी 1955 डी. लिट.की मानद उपाधि एवं तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2012 में डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। जैन ब्रह्मांड विज्ञान की बेहतर समझ के उद्देश्य से उन्होंने 1972 में दिगंबर जैन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्मोग्राफिक रिसर्च की स्थापना की। विश्व को अपने ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर रही है ! जन्मोत्सव के अवसर पर भारतवर्षीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी का नेमित्तिक राष्ट्रीय अधिवेशन मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश कैलाश चांदीवाल महाराष्ट्र , अध्यक्षता जम्बू प्रसाद जैन गाजियाबाद राष्ट्रीय अध्यक्ष तीर्थ क्षेत्र कमेटी ,विशिष्टअतिथि पारुल जैन अतिरिक्त जिला न्यायाधीश कानपुर , जहां भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी द्वारा परम पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी को ‘कालजयी व्यक्तित्व’ उपाधि से विभुषित किया गया। इस अवसर पर परम पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी, प्रज्ञाश्रमणी चन्दनामती माता जी, पीठाधीष रवीन्द्र कीर्ति स्वामी जी ने कहा कि तीर्थसंरक्षण के लिए सम्पूर्ण जैन समाज का योगदान होना चाहिए। अधिवेशन में विजय कुमार लुहाडिया,कमल कासलीवाल बॉम्बे, कैलाश जैन सराफ लखनऊ, संजय पापडीवाल,जवाहर लाल जैन सिकन्द्रावाद, शरद जैन दिल्ली,जय कुमार जैन कोटा, डा.अनुपम जी इन्दौर, अनिलजी दिल्ली, उदयभान जयपुर, आदीश सराफ लखनऊ , ब्रिजेन्द्र जी दिल्ली, प्रमोद कासलीवाल औरंगाबाद,जमनालाल हपावत ,पवनघुवारा टीकमगढ़,ज्योति जैन नागपुर,सुनयना जैन लखनऊ, सुनीता काला दिल्ली,श्रीमती प्रियंका घुवारा,अशोक क्रांतिकारी, सहित अनेक गणमान्य जनों ने तीर्थ क्षेत्रों के संरक्षण व किये गये कार्यों पर प्रकाश डाला ,मंगलाचरण प्रतिष्ठाचार्य विजय कुमार जैन एवं स्वागत उद्बोधन डॉ जीवन प्रकाश जैन राष्ट्रीय मंत्री भारतवर्षीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी द्वारा किया गया ,मंच का संचालन हसमुख गांधी इन्दौर द्वारा किया। शरदपूर्णिमा की शीतल चाँदनी सम्पूर्ण धरती पर अमृत बरसाती है, यह सिर्फ एक पूर्णिमा नहीं, बल्कि वह रात्रि है जब त्याग, तप और ज्ञान का संगम धरती पर उतरती है आत्मानुशासन की जीवित प्रतिमा परम पूज्य ज्ञानमति माता जी का जीवन अनुशासन और तपस्या का प्रतीक है ,सीमित आहार, संयमित वाणी और निरंतर ध्यान- ये उनकी जीवनशैली का हिस्सा हैं, आज भी दिगंबर परंपरा के कठोरतम नियमों का पालन करते हुए निरंतर विहाररत हैं। उनका हर कदम धर्म और राष्ट्र के लिए समर्पित है।
