*अहिंसा में निहित है विश्व की समस्याओं का समाधान*
अहिंसा: विश्व धर्म
अहिंसा सिद्धांत को गांधी जी ने जनांदोलन बनाया
-मुनि श्री अक्षयसागरजी महाराज
भारत एक धर्म प्रधान देश है। जिस तरह कुशल माली सुन्दर गुलदस्ता बनाते समय रंग-बिरंगे फूलों के द्वारा मनमोहक बनाता है। वैसे भारत में कई धर्म, जाति, सम्प्रदाय, पंथ आदि का यह गुलदस्ता हैं। गुलदस्ता का हर फूल धर्म, जाति, समाज, नागरिक है। तो अहिंसा उसकी गन्ध है। गन्ध अपने में ही रहे, यह तो नहीं हो सकता। उसे हवा में बिखर कर ही रहना है। वह दूर तक फैल जाती है। वैसे ही भारत की अहिंसा की गन्ध पूरे विश्व में बिखर गयी। इसी के कारण 2 अक्टूबर ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिन’ के रुप में महात्मा गांधीजी के जन्म दिवस के दिन को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने घोषित किया है।
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस :
तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा सिद्धांत को गांधी जी ने जनांदोलन बनाया और देश को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाई। इसलिए गांधी जी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस स्थापित करने के लिए मतदान हुआ।महासभा में सभी सदस्यों ने 2 अक्टूबर को इस रूप में स्वीकार किया।
अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस का उद्देश्य हमारी दुनिया में शांति, न्याय और स्थिरता को बढ़ावा देने में अहिंसा की महत्वपूर्ण भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना है।
अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र :
गांधी जी मानते थे कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर सब कुछ हासिल किया जा सकता है। महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्तित्व थे ,जिनके विचारों ने पूरी दुनिया को शान्ति ,सद्भाव और अहिंसा का पाठ पढ़ाया | विश्व में ऐसे कई महान लोग हुए जो गांधीजी के विचारों से बेहद प्रभावित हुए। समाज की भावनाओं का आदर करते हुए भारत के आदर्श समाज की कल्पना करने वाले समाज सुधारक, राष्ट्रचिंतक एवं दार्शनिक महात्मा गाँधी जी के लिये अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र था। गाँधी जी के अनुसार-अहिंसा वो मुख्य तत्व है जिसने सम्पूर्ण मानवता को प्रेम और आत्मशुद्धी की सहायता से कठिन से कठिन संकटों में सफलता पाने का संदेश दिया है।
आध्यात्मिक शक्ति की प्रतीक अहिंसा :
गाँधी जी अहिंसा को सर्वोच्च नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानते थे। उनके अनुसार तो अहिंसा केवल दर्शन नही है बल्की कार्य करने की पद्धति है, ह्रदय परिवर्तन का साधन है। गाँधी जी ने तो अहिंसा की भावना को सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक तीनों क्षेत्रों के लिये आवश्यक तत्व माना है। अहिंसा पर गांधी जी ने बड़ा सूक्ष्म विचार किया है। वे लिखते हैं, “अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
सभी धर्मों का आधार अहिंसा :
अहिंसा को जैन, हिन्दू,बौद्ध, व अन्य धर्मों में मानवीय क्रियाओं का आधार माना गया है। अहिंसा की शिक्षा तो भारतीय संस्कृति की पहचान है। उपनिषदों में भी अहिंसा को विशेष महत्व दिया गया है। जैन धर्म में अहिंसा परमो धर्मः के रूप में एक महान धर्म माना गया है। अहिंसा की सबसे सूक्ष्म विवेचना जैनधर्म में कई गयी है। गांधी जी ने भी अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया।
जगतमें जितने भी तीर्थंकर, परमात्मा, ईश्वर, ऋषि-मुनि, महंत,महात्मा, माऊली, मौलवी आदि जितने भी संत साधू होकर गये, इन सभी ने यही बताया कि – अहिंसा परमो धर्मः, जीवाणं रक्खणं धम्मो।।
– जीवों की रक्षा करना ही धर्म है (धर्मस्य मूलं दया…)
अहिंसा का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना’। इसका व्यापक अर्थ है – किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन मे किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है।
नींव के बिना भवन खडा हो नही सकता, जड़ के बिना वृक्ष खड़ा रह नही सकता है। जिस वृक्ष की जड़े मजबूत होती है, वृक्ष उतना ही विकसित होता है और बादल के बिना बारिश नहीं हो सकती वैसे ही ‘अहिंसा’ के बिना जीवन विकसित नहीं हो सकता।
दुःख का मूल कारण हिंसा :
ऋषि-मुनियों ने दुःख का मूल कारण हिंसा बताया है -हिंसैव दुर्गतेर्द्वारं हि सैव दुरितार्णवः। हिंसैव नरकं घोरं हिंसैव गहनं तम।। हिंसा दुर्गतिका द्वार है। हिंसा पाप का समुद्र है। हिंसा घोर नरक है और हिंसा महा अंधकार है।
हिंसा प्रसूतानि सर्वदुःखानि ।
जिस तरह माता बालक को जन्म देती है। वैसे समस्त दुःख को जन्म देनेवाली हिंसा है। अहिंसा की महानता को किसी जाति, धर्म और सम्प्रदाय या किसी विशेष व्यक्ति नाम के साथ अथवा देश और काल की सीमाओं से जकड़ा नही जा सकता। ‘अहिंसा विश्व धर्म’ है याने प्राणी मात्र का धर्म है। जिस प्रकार घाट पर जाकर पानी पीने से सभी प्राणी की प्यास बुझती है उसी प्रकार अहिंसा धर्म में भी वही शक्ति है। जो आत्मा इसे धारण करेगी वही आत्मा परमात्मा बन सकती हैं।
अहिंसा से जीवन शुद्धि :
अहिंसा से जीवन शुद्धी होती है। अहिंसा से ही आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। धर्म का सारा ढांचा अहिंसा पर आधारित है। इसलिए कहा जाता है कि, धर्म का प्रमुख तत्व ‘अहिंसा’ है। अहिंसा कहां है? – ‘आत्मवत्सर्वभूतेषु’।
जैसी मेरी आत्मा है। वैसे प्रत्येक संसारी जीवों की आत्मा है। जिसको यह समझ में आया, उसने अहिंसा को समझ लिया। जिस प्रकार का व्यवहार हम नही चाहते हैं कि दूसरे हमारे प्रति करे, वैसा व्यवहार हम भी उनके प्रति न करे। इसे धर्म कहते हैं।
कई लोग अपना परिचय देते समय जैन, हिन्दु, वैष्णव, इस्लाम, बौद्ध, सिख आदि कहकर धर्म की ,सम्प्रदायों की दीवारें/सीमाएं खीच देते हैं। इसलिए भगवान महावीरादि तीर्थंकरोंने कहा कि, धर्म उसको कहना ‘आत्मवत्-सर्वभूतेषु।’ ‘जिओ और जीने दो’ – हमें जीने की इच्छा है, वैसे समाने वाले को भी जीने की इच्छा है।
मांस को कृषि दर्जा देना संस्कृति का अपमान :
मांस उत्पादन मामले में ‘कृषि’ शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। मांस को कृषि दर्जा देकर संस्कृति को बड़ा धोका दे रहे हैं। बूचड़खाने खेत नहीं है। भारत सरकारने उन्हें कृषि के अन्तर्गत रख कर ‘वधिक’ और ‘कृषक’ दोनों को एक दर्जा देकर घोर अन्याय कर रही है, हमारे देश की अहिंसा, शांति, दया आदि शक्तियाँ क्षीण की जा रही हैं।
इसी कारण प्राकृतिक आपदायें बढ़ती जा रही हैं। सुजडल (रुसा में पिछले दिनों भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डॉ. मदन मोहन बजाज, डॉ. इब्राहीम और डॉ. विजयरजसिंह के तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा कि – भारत में पिछले दिनो आए तीन बड़े भूकंपो में आइस्टीन पैन वेब्ज (इपीडब्ल्यू) या नोटीप्शन वेब्ज कारण रही है। कत्लखानों में जब जानवरों को काटा जाता है, उसके पहले कई दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है। फिर उसके ऊपर 70 डिग्री सेंटीग्रेट गर्म पानी की बौछार डाली जाती है। उससे उनका शरीर फूलना शुरू हो जाता है। तब गाय और भैंस तडपने और चिल्लाने लगते हैं, तब जीवित स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकट्ठा किया जाता है। फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है। दुनिया के करीब ५० लाख छोटे बड़े कत्लखानों में प्रतिदिन ५० लाख करोडमेगावॅट की मारक क्षमतावाली शोक तरंगे या इपीडब्ल्यू पैदा होती है। उन पशुओंकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तडप वातावरण में भय, चिंता और कतल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस हारमोन निकलते हैं और उनकी जो शोक वेब निकलती है वो पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है, कम्पायमान कर देती है। उत्सीसे प्राकृतिक उत्पात जैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, भूकंप, पानी का स्तर नीचे जाना, ज्वालामुखी के विस्फोट जैसे संकट आते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक एक कत्लखाने से जिस में औसतन पचास जानवरों को मारा जाता है १०४० मेगावॅट ऊर्जा फैलनेवाली इपीडब्ल्यू पैदा होती है। इसीसे विस्फोटमय वातावरण बनता हैं।
आधुनिक विज्ञान ने ये सिद्ध किया है कि, मरते समय जानवर हो या इन्सान अगर उसको क्रूरता से मारा जाता है तो उसके शरीर से निकलनेवाली जो चीख-पुकार है उसकी वायब्रेशन में जो निगेटीव वेब्ज (ऊर्जा) निकलती हैं वो पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करती है और उससे सभी मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पडता है, इससे मनुष्य में हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ती है जो अत्याचार और पाप पूरी दुनिया में बढ़ा रही है।
हिंसा से प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ा :
हिंसा से प्राकृतिक सन्तुलन गड़बड़ा रहा है। समुद्र से मछली और अन्य जीव पकड़कर खाने से समुद्र के नीचे की जमीन का संतुलन डावाडोल होता जा रहा है। इंडोनेशिया में जब सुनामी लहर उठी तो जपान, चीन, इंडोनेशिया और मलेशिया को पार करती हुई भारत के पूर्व तट तक घुस गई। सुनामी के इस तुफान में कई संख्यामें आदमी मरे, जीव जंतु नहीं।
भूमि हिंसा – कीटनाशक और रासायनिक खाद्य का प्रयोग करने से सब्जी फल और अनाज के द्वारा शरीर में विषाक्त पदार्थों के कारण धड़कन कम होना, आंतों में दुष्प्रभाव याददाश्त कम होना तत्काल प्रभाव सामने आते हैं इसके लगातार प्रयोग से कैंसर जैसी घातक बीमारी हो सकती है और प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं।
देश में मांसाहार और व्यसनों के कारण देश का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि शरीर देश की संपत्ति है। उसका सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग नही होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संघटन (W.H.O) के बुलेटिन में लिखा है, एकबार मांस खाने के बाद 160 प्रकार की बीमारियाँ उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर लेती हैं। एक अंश मांस पर ३3 करोड किटाणू होते हैं। मांसाहारी की आयु कम होती है। इसके बारे में जॉन हरैद साहब Advance Hygiene में लिखते हैं।
भारत अहिंसा प्रधान देश हैं। जहां भगवान रामचन्द्र, महावीर आदि महान पुरुषोंने अहिंसा का संदेश देकर हम लोगों पर बहुत बड़ा उपकार किया और इस देश के अहिंसक भविष्य का निर्धारण किया लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि जहाँ दूध की नदी बहती थी, उसी पवित्र वसुंधरा पर खून की नदी बहती जा रही हैं। कत्लखानों से खूनी सडान की बदबू से वातावरण दुर्गन्धित होता जा रहा है।
अहिंसा इस जगत की व्यवस्था है जो किसी का नाश नहीं करना चाहती। जड़ता और जड़वाद से भी उसको बैर नहीं वह तो सबको अपना अपना स्थान बना देती है। इसीलिए ऋषि मुनियों ने वसुधैव कुटुंबकम् यह विश्व शांति का सूत्र दिया और बताया
“आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्”
जिस प्रकार का व्यवहार हम नहीं चाहते कि दूसरे हमारे प्रति करें वैसा व्यवहार हम भी उनके प्रति ना करें।”अहिंसा का मूल लक्ष्य विश्व शांति”।
हिंसा प्रसूतानि सर्व दु:खानि।
अर्थात् – हिंसा ही समस्त संतापो और दु:ख को जन्म देती है।
मांस और शाक भोजन से शारीरिक हानि लाभ क्या क्या पहुंचते है? अब यह विचार करना है कि, इनसे मानसिक (Mental) और आत्मिक (Spiritnal हानि, लाभ क्या है? मनुश्य का उसकी मानसिक और आत्मिक उन्नति में बहुत बाधा डालता है। मांस आत्मा का सम्बन्ध अशुभ कर्म के परमाणुओं से कराता है।
मांसाहार – ‘सप्तधातुसमाश्रितं मांस’ जो सप्तधातु से युक्त कलेवर है उसको ही मांस कहते है। वनस्पति में सप्तधातु नहीं पाई जाती। अत: उसकी मांस संज्ञा नहीं हो सकती।
यद्यपि बहुत लोग मांस, मछली और अण्डा भोजन के रुप में लेते है। लेकिन मानव शरीर की रचना मांसाहार के अनुकूल नहीं है – मनुष्य की आंतो में कई मोड होते है और वह चक्करदार होती है, अत: भोजन को आगे ढकलनेके लिए फल ओर सब्जी के खुज्जे और रेशे बहुत मदद करते है। मांस में रेशे न होने के कारण जटिल आंतों में वह बहुत कठिनाई से आगे खिसकता है जिससे भोजन जमाव हो जाता है। इससे विपरीत मांसाहारी पशुओं की आंते सीधे सपाट होती है। उसमें मांस को आगे ढकलने में खुज्जों और रेशों की जरुरत नहीं पडती है।
मनुष्य के मुख में क्षारीय लार बनती है। जो कार्बोहाइड्रेटस को पचाता है। इस सम्बन्धों मे बडे मार्केकी बात है। हमारे मुंह का रस केवल उन्ही खाद्य पदार्थों को पचाने में मदद देता है। जो मानव समाज के लिए प्रकृति द्वारा निर्धारित है, वैसे- अन्न, शाक, फलादि मांस, चर्बी, अण्डा नहीं, मांस पचाने के लिए तेजाब की आवश्यकता होती है, मांसाहारी पशु-पक्षीयोंकी लार तेजाबी होती है।
मांसाहारी पशु-पक्षी पानी जिव्हा से पीते है, नूकीले दांत तथा पैने नाखून और दाँतो से बीच कुछ अन्तराल वाले होते है। शाकाहारी ओठोंसे पानी पीते है, चपटे नाखून और दाँत-दाढ़वाले होते है, सटे दांतोवाले होते है। मानव शाकाहारी है। शाकाहार – शा-शांति, का-कारक, हा-हानि, र-रहित। जो शांतिकारक और हानिरहित है वह शाकाहार। शाक-योग्य होना, समर्थ होना, शक्तिशाली होना, सहन करना। शाकाहार का शाब्दिक अर्थ – ऐसा आहार जो मनुष्य को बलवान, समर्थ और रोगो से लडने की क्षमता प्रदान करे।
मनुष्य को जीवित रहने के लिए अल्प एवं सात्विक भोजन की आवश्यकता है। विटामिन, कॅल्शियम एवं फॉस्फरस से युक्त शाकाहार भोजन से ही मनुष्य अधिक स्वस्थ व प्रसन्न रह सकता है।
मांसाहार स्वभाव पर बहुत बुरा प्रभाव- ईर्ष्या,द्वेष, क्रोध, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना और हिंसक प्रवृत्ति के दैनंदिन विकास का प्रमुख कारण मांसाहार है, इससे अंदर क्रुरता का, अहंकार का विकास होता है। जिससे वह निकृष्ट क्रिया कलापों को करने पर भी उतारु हो जाता है।
मांस और अण्डे में यूरिक ॲसिड होती है। उसी से सिरदर्द, पागलपन, लकवा, गठिया, श्वास, अनिद्रा, मधुमेह, जलोदर, हिस्टीरिया, नेत्रविकार आदि रोग पैदा होते है।
महात्मा गांधी – मोहनदास करमचंद गांधी ने जैन साधु के पास मद्य, मांस और परस्त्री सेवन के त्याग का व्रत लिया था। गांधीजी के सुपुत्र बहुत बीमार थे डॉक्टर ने कहा ‘मांस का सुप नहीं दिया तो यह जिन्दा नहीं रहेगा’ ऐसा कहा । किन्तु गांधी जी ने कहा – ‘चाहे जो परिणाम हो मांस का सुप नहीं देंगे।’ उनका लडका बिना मांस के प्रयोग से ही बच गया ।
विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘अल्बर्ट आइन्स्टाईन – जब हम खुद मृत प्राणियों की जीती- जाती कब्र है, तब फिर हम इस दुनिया में किन्ही आदर्श स्थितियों की कल्पना कैसे कर सकते है।
हिन्सा से प्रकृतिका सन्तुलन गडबडा रहा है –
जहाँ सलाटस हाऊस है वहाँ मशीनों से लाखो जानवर रोज कटते है। उनकी चीख से आसपास की धरती के भीतर का तापक्रम बढता है। जब वह तापक्रम बहुत उच्च हो जाता है तो वह धरा को फाडकर बाहर आ जाता है। जिससे धरती हिलने लगती है। ज्वालामुखी, भूकंप, पर्यावरण दूषित होना, इत्यादि।
समुद्र से मछली और अन्य जीव पकडकर खाने से समुद्र के नीचे की जमीन का संतुलन डावाडोल हो गया । इंडोनेशिया में समुद्र से सुनामी लहर उठी जो जापान, चीन, इंडोनिशया और मलेशिया को पार करती हुई भारत के पूर्वी तट पर घुस गई । सुनामी के इस तुफान मे आदमी मरे है, जीव जन्तु नहीं।
भूमि हिंसा – जहरीली रासायनिक खाद्य, रासायनिक कीटनाशक, प्लास्टिक, पॉलीथिन आदि का उपयोग भूमिकी उर्वरा शक्ति को नष्ट कर देता है। विषैली गैसों कारखानों से, वाहनों से निकलने वाला धुआं हवा में जहर घोल रहा है इससे खेती बंजर होती जा रही है, वर्षा कम हो रही है, उत्पादन कम होता जा रहा है। कारखानों, वाहनों से निकलने वाला धुंआ हवा में जहर घोल रहा है।
*अहिंसा ही धर्मात्मा की पहचान -* विश्व में जितने भी मानव है वे किसी न किसीधर्म, संपद्राय, मजहब के नामसे अपने आराध्य की उपासना करते है। लेकिन धर्म का प्रारंभ दया से ही होता है। दया के बिना संसार में कौनसा भी समुदाय धर्म संज्ञा प्राप्त हो ही नहीं सकता।
आज पुरे विश्व में ‘अहिंसा दिन’ मनाया जा रहा है। लेकिन यह अहिंसादिन कब होगा? इसके लिए विश्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत होते हुए। सर्वोदयी जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी हायकू लिखते है – ‘‘मेरी आत्मा हैं, औरों से आत्मीयता, मेरी श्वास है।’’ इसी तरह विश्व के हर मानव भी ऐसा व्यवहार आपके लिए अच्छा नहीं लगता । वह व्यवहार दुसरेसे न करें। इसी भावना के साथ विश्व शांन्ति कल्याण भावना के साथ –
सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे ।
बैर-पाप अभिमान छोड़ जग, नित्य नये मंगल गावे ॥
– प.पू. मुनिश्री 108 अक्षयसागरजी महाराज
प्रेषक :
डॉ सुनील जैन संचय , ललितपुर