वर्तमान समय में आचार्य पद धारी मुनिराज ही सर्वोच्च पद पर आसीन हैं। अरिहंत, सिद्ध भगवान हमें साक्षात् प्राप्त नहीं होते हैं, अतः आचार्य परमेष्ठी ही हमें धर्ममार्ग दिखाते हैं। संसार-सागर से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मुनि पद ही पर्याप्त है । कोई सुनिराज आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वे मुनिपद का विस्मरण कर चुके हैं। ध्यान रखना, कोई आचार्य पद पर स्थित होकर अपने को मात्र आचार्य ही माने तो उसकी समाधि नहीं हो सकती, आचार्य परमेष्ठी को भी समाधि के समय, पहले ही आचार्य पद का त्यागकर स्वयं मात्र मुनिपद में स्थित होना होता है, तब ही साधना के शिखर स्वरूप समाधि घटित हो सकती है।
‘आचार्य पद वास्तव में निष्पृहता का पद है। साधुजन इन पदों को प्राप्त करने के लिए मुनि नहीं बनते हैं। आचार्य यद इच्छा – वांछा पूर्वक माँगा नहीं जाता, यह श्रेष्ठ आचार्य पद तो गुरु जन अपनी शिष्य परंपरा में से किसी योग्य शिष्य को जाँच परखकर उन्हें आचार्य पद प्रदान करते हैं। यह आचार्य पद जिम्मेदारी – कर्त्तव्य पालन का श्रेष्ठ पद है। आचार्य परमेष्ठी अपने 36 मूलगुणों का पालन करते हुए मुनि पदके 28 मूलगुणों का भी सदैब परिपालन किया करते हैं। इस पंचम काल में आचार्य, मुनि आदि चतुर्विध संघ से ही जिनशासन की प्रभावना चिरकाल तक इस घरा पर होती रहेगी।
आज परमपूज्य शुद्धोपयोगी संत सूरिंगच्छाचार्य आचार्य गुरुवर श्री 108 विरागसागर जी महामुनिराज का ” 32 वाँ आचार्य पदारोहण महोत्सव है। आचार्य श्री निस्पृहता का महान उदाहरण है, उन्होंने आचार्य पद की इच्छा- वांछा नहीं की, अपितु आचार्य श्री विमलसागर जी महामुनिराज के आशीर्वाद से “द्रोणगिरि सिद्धक्षेत्र” पर वरिष्ठ विद्वानों ने जबरन आचार्य पद के योग्य सिंहासन पर बैठाकर महान आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया था। ऐसे निस्पृही संत आचार्य गुरुवर जो अभी तीर्थक्षेत्र श्रेयांसगिरि (पन्ना) में विराजमान हैं, गुरुदेव के चरणों में यहीं से हम सब भावपूर्ण विनयांजलि समर्पित करते हैं।
*गुरु विमर्श सिद्ध चालीसा का हुआ विमोचन*
भारतीय जैन संगठन तहसील अध्यक्ष एवं जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि
गणाचार्य श्री विराग सागर जी महामुनिराज के ” 32 वे आचार्य पदारोहण दिवस” पर जतारा नगर गौरव के सानिध्य में गणाचार्य श्री की महापूजा की गई साथ ही बालिकाओं द्वारा नृत्य- मंगलाचरण विनयांजलि भी प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात् वरिष्ठ पत्रकार श्री सुभाष जैन ‘सिंघई’ द्वारा रचित ” गुरु विमर्श सिद्ध चालीसा” का विमोचन भी किया गया। उन्होंने बताया कि यह चालीसा सिद्ध चालीसा है, जो भी इसे श्रद्धा से पढ़ेगा निश्चित ही उसके सब दुःख संकट दूर होंगे और यह मेरे अनुभव की बात है! संध्या बेला में गणाचार्य थी की महाआरती की गई।
18 नवम्बर को जतारा के प्राचीन शोयरे वाले जिनालय का भव्य शिलान्यास कार्यक्रम संपन्न होगा ।