अवतरण 02 मई 1963 : महाप्रयाण 04 जुलाई 2024
✍️ सुरेश जैन , (आईएएस),
अध्यक्ष- जैन तीर्थ नैनागिरि
30, निशात कॉलोनी, भोपाल, मध्यप्रदेश 462 003
मो 94250 10111
विरागवाणी के यशस्वी संपादक इंजी. श्री आनन्द कुमार जैन ने 4 जुलाईए 2024 को प्रात: 6 बजे गुरुदेव श्री विरागसागर जी की समाधिस्थ होने के दु:खद समाचार हमें दिए। नैनागिरि में न्यास कमेटी के मंत्री द्वय और सदस्यगण स्थानीय समाज और हमारे सभी सहायकों ने शांतिविधान कर गुरुदेव के प्रति अपनी विनयांजलि समर्पित की। इसके पूर्व उनके विपरीत स्वास्थ्य की जानकारी मिलते ही 2 और 3 जुलाई को नैनागिरि तीर्थ के बड़े पुजारी कोमलचन्द्र जैन , वरिष्ठ प्रबंधक शिखरचन्द्र जैन तथा सहायक प्रबंधक विकास जैन आदि सभी सहायकों और उपस्थित महानुभावों ने भगवान पार्श्वनाथ के मंदिर में शांतिधारा कर उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की थी।
वर्ष 1992 में द्रोणगिरि में आयोजित उनके आचार्य दीक्षा समारोह का साक्षी बनने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनकी सात नैनागिरि यात्राओं में तथा विभिन्न तीर्थो पर उनके दर्शन कर न्यायमूर्ति विमला जी तथा हमने आत्मीय आशीर्वाद प्राप्त किया। उनकी मधुर वाणी की महात्रिवेणी से मन भर, जल दुग्ध रसपान का अपरिमित आनन्द लिया। नैनागिरि तीर्थ प्रबंधन समिति की प्रथम प्रार्थना पर ही सहजता और सरलता पूर्वक गुरुदेव नैनागिरि तीर्थ पर आयोजित पंचकल्याणक 2023 में पधारे और अपने पूरे संघ का सान्निध्य प्रदान किया। कठिन और कलुषित मानवीय व्यवहार की पुन: पुन: उलझती गांठे सरलता से खोलकर उन्होंने समग्र समाज के बीच गोवत्स प्रीति पूर्वक शाश्वत समन्वय स्थापित किया। पूरी शांति और सफलतापूर्वक देशना स्थल पर निर्माणाधीन तीन मूर्ति मंदिर में पीतल की तीन विशाल मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की। नवनिर्मित श्रुत मंदिर में विशाल श्रुतस्कंध विराजमान कराया। उनकी स्नेहभरी सतत मंद- मंद मुस्कान से अपार प्रेरणा प्राप्त कर तीर्थ समिति ने तन, मन और धन से रात- दिन कार्य करते हुए सफलतम पंचकल्याणक संपन्न करने का श्रेष्ठतम उदाहरण प्रस्तुत किया।
गुरुदेव की मिसरी सी मीठी मधुरतम वाणी से अपरिमित ऊर्जा प्राप्त कर इस पंचकल्याणक में अपना अमृतकालीन जीवन व्यतीत कर रहीं श्रीमती कस्तूरीदेवी और उनके पति श्री लालचन्द्र जी भगवान के माता – पिता बने। शिशु पार्श्व को देखते हुए उनके तन-मन की प्रसन्नता जन – जन के आकर्षण का केन्द्र बन रही थी। समाज के इस वयोवृद्ध परिवार के साथ – साथ सभी पात्रों ने पूरे उत्साह और समर्पण पूर्वक अपने विविध कर्तव्यों का निर्वाह किया। सम्यकदर्शन के सभी अंगो को स्वीकार करते हुए उनके युवा पौत्र पुलकित और पौत्रवधु राखी ने सौधर्मइन्द्र और शची की प्रभावी भूमिका का सम्यक् और सफलतम ढंग से निर्वाह किया।
इस अवसर पर विरागोदय तीर्थ पथरिया में समायोजित यतिसम्मेलन : युग प्रतिक्रमण की स्मृति को स्थाई स्वरूप देने के लिए नैनागिरि तीर्थ पर प्रशस्ति शिलालेख स्थापित किया गया। घनघोर वरदत्त वन में स्थित सिद्ध शिला पर बैठे श्री विरागसागर जी ,श्री विशुद्धसागर जी, श्री आदित्यसागर जी, श्री विरंजनसागर जी प्रभृति अनेक संघस्थ साधुओं के दिगंबरत्व की असाधारण साधना के विविध आयाम खिल उठे।
यद्यपि आषाढ़ की रिमझिम फुहारों में भी विराग के वियोग के आंसुओं को विराम देना और मन – मस्तिष्क को संतुलित करना कठिन हो रहा है तदपि थोड़ा सा आत्मिक साहस जुटाकर बुन्देखण्ड की शताधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक शक्तियों के जनक, सिद्ध पथ के महापथिक, समग्र जैन समाज के विराट सामाजिक सेतु के महान शिल्पी तथा आज के व्यावहारिक जगत में समतापूर्वक महासमाधि के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण के महान प्रस्तोता श्री विरागसागर जी को हम सब शत – शत प्रणाम करते है। आध्यात्मिक और सामाजिक समरसता के महासागर को पुनः पुनः नमोस्तु करते है। इस महामुनि के चरणों में चार शताब्दियों में एक बार खिलने वाले महामेरु मंगल पुष्प समर्पित करते है।
अनुपम और असाधारण संयम के धारक गुरुदेव ने अपने संघस्थ श्री विशुद्धसागर प्रभृति नौ साधु रत्नों का सर्वोत्तम वैज्ञानिक पद्धति से गुणात्मक उत्थान करते हुए उनमें आचार्यो के मूलगुणों की सफलता पूर्वक संस्थापना की है और उन्हें अपने जीवन काल में ही आचार्यो के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया है। पूरे संघ को वैज्ञानिक प्रबंधन के पटल पर सुस्थापित कर आध्यात्मिक एकता का सुदृढ़ शिलान्यास कर दिया है। हमें पूरा भरोसा है कि गुरुदेव के प्रथम श्रेष्ठतम रत्न श्री विशुद्धसागर जी के नेतृत्व में सभी आचार्य रत्न और सभी संत मिल – जुलकर सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र की शताधिक त्रिवेणियों की शक्ति समेकित कर भगवान महावीर की प्राचीनतम आधारभूत आध्यात्मिक परंपराओं को हिमालयीन ऊँचाई प्रदान करते रहेंगे।
यह उल्लेख करना अत्यावश्यक प्रतीत होता है कि श्री विरागसागर जी के सभी शिष्य आध्यात्मिक पदों के राग से परे है। आध्यात्मिक अहंकार से बहुत दूर हैं। अभी तक उनके संघ में किसी भी पद के लिए विसंवाद का उदाहरण समाज को देखने में नहीं आया है। हमें यह दृढ़ विश्वास है कि यह संघ आध्यात्मिक विखण्डन की दुष्प्रवृत्तियों को कभी भी प्रश्रय नहीं देगा और भौतिकता से ओतप्रोत इक्कीसवीं सदी में भी महावीर की आदर्श चर्या के सफलतम उदाहरण विश्व के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
ममता और वात्सल्य से ओतप्रोत राष्ट्र संत विरागसागर जी को उनके महाप्रयाण पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, नई दिल्ली के सांसद श्री मनोज तिवारी प्रभृति अनेक राजनेताओं, पूरे देश के संतो और वरिष्ठतम विद्वानों ने अपनी विनयांजली प्रस्तुत की।
नैनागिरि में बीसवीं शताब्दि के 87 वें वर्ष में आध्यात्मिक जन्म लेकर अभूतपूर्व शैक्षणिक क्रांति के जनक बने मुनिवर सुधासागर जी ने अपने प्रवचन में गुरुदेव को अपरिमित पुण्य के स्वामी और प्रभावशाली प्रभावक आचार्य घोषित किया है। अपने संघ को अपने संगठन कौशल से व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने के लिए उनकी सराहना की है। उन्हें संबोधित करते हुए पूरा धैर्य रखने की सलाह दी है। प्रभावना योग के प्रभावी प्रस्तोता मुनिवर प्रमाणसागर जी ने कहा कि विरागसागर जी के महाप्रयाण से श्रमण संस्कृति की बड़ी क्षति हुई है। उन्होंने इतने बड़े संघ को अपना सक्षम और कुशलतम नायकत्व प्रदान करते हुए श्रमण संस्कृति को असाधारण विस्तार दिया है। इन दोनों राष्ट्रीय संतों ने अपने शब्द सुमनों से आध्यात्मिक और सामाजिक समन्वय की सराहनीय सद्प्रवृत्तियों को ऊर्जा प्रदान की है। यह सुखद और प्रसन्न्तादायक है कि उनकी इस स्मराणांजलियों ने आध्यात्मिकता और जैन धर्म की अनेकांतात्मक – एकता के समुन्नत मापदण्ड स्थापित किए है। इससे सभी संघों के बीच पारस्परिक सौहार्द और सम्मान की वृद्धि हो रही है। महावीर का एकीकृत मंगलपथ प्रशस्त हो रहा है।
शुद्ध – स्वस्थ मस्तिष्क तथा संपूर्ण विवेक के साथ पूर्णतः जाग्रत तथा चैतन्य स्थिति में श्री विरागसागर जी ने जैन आगम के अनुकूल अपनी समाधि साधना के अंतिम प्रवचन दिनांक 3 जुलाई 2024 में श्रमणाचार्य श्री विशुद्धसागर जी को पट्टाचार्य बनाने की स्पष्ट घोषणा कर दी। उनके संघ से वर्षो पूर्व अलग हुए आचार्य श्री वसुनंदी जी से क्षमायाचना करते हुए उनके प्रति अपना प्रति नमोस्तु निवेदित किया। यह मार्मिक प्रकरण पूरे विश्व के समक्ष उनकी हिमालयीन आध्यात्मिक ऊँचाई और समता की पूरी गहराई को प्रदर्शित करता है। पवित्रता और पावनता से ओतप्रोत श्रेष्ठतम आत्मा का यह प्रभावी , बिरला , असाधारण और अनूठा प्रवचन भारतीय सांस्कृतिक जगत के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जावेगा। सर्वोत्तम समाधि का प्रकाश स्तंभ बनेगा। इस प्रवचन के कुछ ही घण्टों बाद गुरुदेव ने अपना शरीर त्याग कर भौतिकता की इस सदी में भी महासमाधि का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। बुन्देलखण्ड की वीर प्रसूता माटी में जन्मीं उनकी देह कुबेर प्रसूता महाराष्ट्र की माटी में मिल गई। अपने पद का त्याग करते हुए और सभी से क्षमायाचना करते हुए वे चिरनिद्रा में विलीन हो गए। हमे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें अपनी मृत्यु का सही – सही पूर्वाभास हो गया था।
4 जुलाई की रात्रि में 8 बजे डॉ. श्रेयांस जी बड़ौत और ब्र. भैया प्रतिष्ठाचार्य जय निशांत जी के द्वारा पं. राजकुमार जैन शास्त्री के सक्षम एवं कुशल संचालकत्व में आयोजित विनयांजलि समर्पण सभा की गई। हमें और विमला जी को श्रद्धासुमन भेंट करने का अवसर देने के लिए हम उन्हें अनंत साधुवाद प्रदान करते हैं और गणाचार्य गुरुदेव, पट्टाचार्य श्री विशुद्धसागर जी और उनके संघस्थ सभी संतों के चरणों में पुनः पुनः शत – शत वंदन करते हैं।