संसार में प्रत्येक जीव ,वृक्ष ,जंतु को भोजन अनिवार्य हैं .मानव को तो गर्भ से ही माता से भोजन ,पोषण मिलता हैं .और वह उन्ही पर निर्भर रहता हैं .इसीलिए माँ को गर्भस्थ शिशु हेतु उचित आहार विहार की व्यवस्था की जाती हैं और उसके पोषण के अनुसार गर्भस्थ शिशु का विकास होता हैं .इसी प्रकार पेड़ पौधों को भी पोषण की जरुरत होती हैं .शिशु के जन्मते ही उसे स्तनपान की जरुरत होती हैं .और इस समय माँ को यह निर्देशित किया जाता हैं की वह पथ्य,अपथ्य का ख्याल रखे .उसके आहार का प्रभाव नवजात शिशु पर उसके स्तनपान से पड़ता हैं .जैसे जैसे शिशु बढ़ता हुआ चलने फिरने लगता हैं वैसे वैसे उसकी रूचि बढ़ती जाती हैं .और फिर स्कूल ,कॉलेज ,ऑफिस शादी विवाह के बाद जीवन में बदलाव आता हैं .
वर्तमान में समय का अभाव,आर्थिक सम्पन्नता और आलस्य के कारण घरों में चटपटी चीज़ों को बनाने का चलन प्रायः कम या बंद हो गया और चटकोरी जिव्हा होने के कारण बाहर का या होटल का या सड़क किनारे खड़े ठेलों के द्वारा अपनी रूचि के अनुसार चाट खाना शुरू होता हैं ..बाजार के गोलगप्पे ,कचोरी समोसा ,भेलपुरी आदि सबको आकर्षित करती हैं .पर भारत में जबतक सड़क के किनारे की चाट न खाये तब तक उसे संतुष्टि नहीं होती ऐसा क्यों ? ये फुटपाथ की चाट हो या सुसज्जित होटल की चाट हमारे जेबों पर डाका डालती हैं और इसके अलावा क्या खिलाया जाता हैं किसी को नहीं मालूम .फुटपाथ की चाट बिना भेदभाव के गरीब अमीर को पसंद होती हैं पर ये सब इंद्रधनुषी और चकाचौध वाली होती हैं .चाट खाने में कोई बुराई नहीं हैं पर क्या खा रहे हैं ,यह समझना /जानना जरुरी होना चाहिए .जो भी खा रहे हैं वे कितनी साफ़ शुद्ध और स्वच्छतापूर्ण हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक न हो .
अधिकांश होटल या फुटपाथ की चाट या खाने पीने की वस्तुओं में सफाई न होने से चूहे आदि का मल अधिकांश पाया जाता हैं कारण उनके यहाँ घर जैसी सफाई या देखरेख नहीं होती .फुटपाथ के खाने में इ कोलाई बेक्टेरिया की अधिकतम मात्रा पायी जाती हैं जिससे दस्त ,उलटी या दोनों की संभावना होती हैं .हमारे मष्तिस्क में यह धारणा रहती हैं की इस स्थानों पर शुद्ध खाना मिलता हैं .आपने ध्यान दिया होगा की फुटपाथ पर ठेला लगाने वाले जन सुविधाओं से निकटतम स्थान पर ,खुले स्थान पर या किसी कोने में लगते हैं जहाँ नाली .या गटर की गन्दगी होती हैं ,अधिकतर चाट या होटल के नजदीक सैलून होते हैं ,ऐसे स्थानों पर शुद्धता ,सफाई कैसे हो सकती हैं ! बहुत कम चाट वाले अपने हाथों में दस्ताने पहनकर बनाते और परोसते हैं .इसके अलावा भेलपुरी वाले कच्चे प्याज़, आलू ,धनिया ,मिर्ची ,नीबू ,नमक का खुले में उपयोग करते हैं जहाँ मख्खिया भिनभिनाती हैं और वे गंदे हाथों से बनाते हैं .जिससे बीमार होने की संभावना बनी रहती हैं .
इसी प्रकार फलों के रस की दूकान और ठेलों में भी बहुत बीमारी होने का खतरा होता हैं .जहाँ तक हो अपने विश्वनीय फल विक्रेता से ही फल खरीदना उचित होता हैं कारण फलों को रसायनों से भी पकाया जाता हैं ,रासायनिक फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं जबकि हम स्वास्थ्यवर्धन के लिए खाते हैं ..खासतौर पर यह सुनिश्चित नहीं रहता की उनके द्वारा जो बर्तन उपयोग किये जाते हैं वे कितने साफ़ सुथरे होते हैं .कभी कभी यह भी देखा जाता हैं की होटल वाले अपनी कढ़ाई आदि बाहर रख देते हैं जिसे कुत्ते ,अन्य जानवर चाटकर साफ़ करते हैं .रस में जो बर्फ डाला जाता हैं वह बहुत गंदे पानी से बनता हैं और विशेषकर मेडिकल कॉलेजों या हॉस्पिटल जहाँ पर शवगृह होते हैं उनके पास के रस विक्रेता शवगृह का बर्फ उपयोग करते हैं ! गर्मियों में लम्बी कतारों में रस की दुकानों में शुद्ध रस कीआवाज़ लगाते हैं उनके यहाँ अधिकांश कटे ,खुले फलो का उपयोग होता हैं और तपती गर्मी में वे फल ताज़े हो नहीं सकते .जिनमे मख्खियां ,चीटियां ,भुनगे भिनभिनाते रहते हैं .इसी कारण घातक बिमारियों के साथ पीलिया होने की संभावना होती हैं .यह सामान्य मान्यता हैं की फलों को ढंककर ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए .न होने पर दूषित और विषैले होने लगते हैं .इसके न होने पर संक्रमण होने का अवसर अधिकतर होता हैं .
इनसे बचने के लिए कुछ उपाय की आवश्यकता होती हैं .जहाँ तक हो बाहर की चाट न खाये ,यदि खाये तो उचित स्थान से खाये ,खाने के पहले उस चाट ठेले के उपयोग होने वाले बर्तन और परोसने वाले बर्तनों की सफाई ठीक हैं या नहीं .आसपास कोई गन्दगी तो नहीं हैं .बेचने वाला दस्ताने का उपयोग या सफाई का ध्यान रखता हैं या नहीं .जहाँ तक बिना बर्फ का फलो का रस का उपयोग करे व उस दुकान के जग ,गिलास साफ़ हैं या नहीं .कटे सड़े फलों का उपयोग तो नहीं हो रहा हैं .होटल या फूटपाथकी चाट की सफाई की बात करे तो वह होना संभव नहीं हैं .यह मान्यता मिलने लगी की होटल या चाट दुकान में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता हैं पर व्यवहारिक धरातल में उतनी नहीं हैं .इसके लिए जरुरी हैं की स्वच्छत्ता की जरुरत बहुत होती हैं .आजकल सामान्य बीमारी होने पर लाखो रुपये खर्च होना मामूली बात हैं .साथ ही उसने द्वारा उपयोग करने वाला कपड़ा का बहुत महत्व होता हैं ,कारण उससे वे सब काम करते हैं और उस गंदे कपडे के द्वारा बीमारियां आसानी से फैलने लगती हैं .इसके लिए उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला कपडा गरमपानी में डाल कर सर्फ़ आदि से धो कर उपयोग करना चाहिए .तथा होटल वालों को थोड़े लोभ के कारण घटिया सामग्री उपयोग नहीं करना चाहिए .और उनको इस भांति सामग्री निर्मित की जानी चाहिए जिसे वे स्वयं उपयोग कर सके ,नहीं तो पता चला वह दूसरी दुकान पर चाट खाने जाता हैं .
होटल का खाना आमतौर पर बंद करना संभव न हो तो कम से ऐसे स्थान का चयन करे जहाँ साफ़ सफाई ,उच्चतम क्वालिटी का सामान उपयोग होता हों अन्यथा खाने के बाद रोगों को आमंत्रण देने की अपेक्षा न खाये या घर में बनाये.आजकल संदिग्ता/शक /संदेह करना जरुरी हैं .चाट खाना मना नहीं हैं वशर्ते वे सफाई से बने जिससे हमारा स्वाद भी बना रहे और बिना आमंत्रण के कोई रोग न फैले .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संस्थापक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753
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