एटा के भगवान भावलिंगी संत ने कहा- मकर संक्रान्ति पर्व पर 12 चक्रवर्तियों द्वारा की गई आराधना सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगी।

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जैन धर्मानुयार्या के आदर्श तीर्थकर भगवान हुआ करते हैं। तीर्थकर भगवान के माहात्म्य सैन के आदर्श भगवान है यहाँ यारों और 100-100 भोजन अर्थात 1200 किलोमीटर सातक रसमित हो जाता है अर्थात चारों ओर वातावरण सुख-शान्तिमय हो जाता है। तीर्थकर भगवान को केवलज्ञान प्रगट हो जाने पर केवल ज्ञान के दस अतिशयों में से यह एक अतिशय है-समिक्षता । बन्धुओ। तीर्यकर भगवान के इस महान अतिशय से मात्र बाहर ही सुभिस्ता नहीं होती, अपितु अंतरंग में अर्थात प्राणियों के अंतरंग परिणामों में भी सुभिक्षता हो जाती है। ऐसे महान महिमावान तीर्थकर भगवान को जो भक्ति पूर्वक अपने हृदय में धारण करता है, महाभाव से उनकी भक्ति करता है, वह निश्चित रूप से अपने जीवन में सुभिक्षता-सुख शान्ति का अनुभव करता है। ऐसा धर्मम्य वक्तव्य श्री पार्श्वनाथ जिनालय के मध्य उपस्थित धर्म- सभा को सम्बंधित करते हुए आचार्य श्री विमर्रा सागर जी महामुनिराज ने दिया !

जिनालयों की महिमा बताते हुए आचार्य श्री ने आगे कहा – बन्धुओं ! हमारे जिनालय अत्यंत पवित्र स्थान हुआ करते हैं। जिनमंदिर में श्री जिनेन्द्र भगवान के निकट बैठने से हमारे भाव पवित्र – निर्मल होते चले जाते हैं और ध्यान रखना आपके भाव ही आपके भविष्य का निर्माण करने वाले हैं।

12 चक्रवर्तियों ने की सूर्य विमान में विराजमान श्री जिनेन्द्र विम्बों की आराधना

जैन धर्म के अनुसार आकाश में चमकता हुआ सूर्य ज्योतिषी देवों के प्रतीन्द्र सूर्य देव का विमान है। उस सूर्य विमान में अकृत्रिम जिनालय स्थित है जिसमें अकृत्रिम जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमायें विराजमान हैं। जब सूर्य पृथ्वी के सबसे निकट वाली गली में स्थित होता है। तब प्रथम चक्रवर्ती 84 खण्ड में निर्मित अपने महल के उपरिम खण्ड में खड़ा होकर अपने नेत्रों से साक्षात् सूर्य विमान में विराजमान जिनबिम्बों के दर्शन करता हुआ जल की धारा से अभिषेक तथा अर्ध समर्पित करता है। इसप्रकार चक्रवर्ती राजा मकर संक्रान्ति पर्व के अवसर पर श्री जिनेन्द्र भगवान की महा- आराधना सम्पन्न करता है। अतः जैन धर्मानुयायी श्री जिनालय आज विशेष अभिषेक-आराधना पूर्वक मकर पर्व मनाया करते हैं।
15 जनवरी, सोमबार मकर संक्रान्ति पर्व के अवसर पर पुरानी बस्ती एटा के श्री पार्श्वनाथ जिनालय में भावलिंगी संत एटा के भगवान आचार्य श्री विमर्रासागर जी महामुनिराज के ससंघ सानिध्य में एटा समाज से 12 श्रावक बन्धुओं ने 12 चक्रवर्ती बनकर श्री जिनेन्द्र भगवान का महा-अभिषेक कर श्री भक्तामर महामण्डल विधान की आराधना की। आचार्य श्री ने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा – मकर संक्रान्ति पर्व के अवसर पर 12 चक्रपर्तियों द्वारा श्री जिनेन्द्र देव की आराधना सम्पूर्ण भारत वर्षीय जैन समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। आज सभी को यही शुभाशीष देता हूँ कि आप जीवन में श्री जिनेन्द्र देव की आराधना पूर्वक अपना जन्म व जीवन सफल बनाते रहें!”

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