प्रशान्त जी के लिए बस इतना ही जानता हूं कि समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में आप धर्मनिष्ठ श्रावक है। सच्चे देव, शास्त्र गुरू में आपकी अपार श्रद्धा है।
मैं पूरे भारत के जैन समाज की तरफ से प्रशान्त जी की माताजी श्रीमती ममता जैन पिताश्री राजेन्द्र प्रसाद जैन को चिटकी अंगुली के पहले काॅलम पर याद करना चाहता हूं कि उनके ऐसा पुत्र रत्न प्राप्त हुआ जिसने अपनी चंचला लक्ष्मी का उपयोग ऐसे परमार्थ के कार्य में किया। जैन गजट के पाठकों से मेरा यही अनुरोध है कि भलाई व अच्छाई के रास्ते कभी मत छोड़िए, आपकी गैरहाजिरी में इन्हीं के द्वारा आप याद किए जायेगें।
रत्नों से भी मंहगी मनुष्य पर्याय को प्रशान्त जी ने सार्थक किया। ज्ञात रहें कि परम मुनिभक्त, दानवीर श्रेष्ठी, दृढ़-संस्कारवान, व्यवहार ज्ञान में निपुण, समाज हितैषी, आथित्य सत्कार में बेजोड़, इतनी ऊचाईयों पर जाकर भी इतने सरल स्वभावी प्रशान्त जी निवासी कन्नौज प्रवासी मुम्बई ने अपनी चंचला लक्ष्मी का परमार्थ के कार्य में जो उपयोग किया है, उससे रत्नों से मंहगी मनुष्य पर्याय जो मिली उसको सार्थक कर दिया है। मैं जैन गजट के पाठकों को बताना चाहता हूं कि जैन गजट में आचार्य विद्यासागर जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक सागर-बूंद-समाय पूरे एक वर्ष तक प्रकाशित होंगे, उसमें भी अपने माता-पिता को पुण्यार्जक बनाया है। प्रशान्त जी के विचारों में कितनी महानता झलकती है यह तो मैं मुम्बई में जब उनसे मिला तब महसूस हुयी। प्रशान्त जी ने मुझसे कहा पाटनी जी इस छोटे से कार्य मुम्बई आने की क्या जरूरत थी। किशनगढ़ से ही फोन कर देते मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं। आप दशलक्षण जी में विद्यासागर जी के चातुर्मास में कई बार आपको मंच से बोलते हुए सुना है।
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