औरंगाबाद /एलोरा संतशिरोमणी आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य युवा तरुणाई के प्रखर वक्ता सुनि श्री 108 संधान सागर जी महाराज जैन गुरूकुल एलोरा मे कहाँ की कहा कि सामने वाला गुस्सा करें – हमें क्रोध न आये तभी ज्ञानी कहलायेगे अन्यथा ईंट का जवाब पत्थर से दूंगा यदि ऐसी मानसिकता है तो इस अज्ञान के कारण कभी संसार से पार हो नहीं सकते। मुनि श्री जी ने कहा दोनो पक्ष ही गुस्सा करेगे तो विवेक कहाँ चला गया ? किसी कवि ने कहा है आधी जिंदगी गुजार दी हमने पढ़ते-पढ़ते और सीखा क्या ? दूसरों को नीचा दिखाना। शास्त्रज्ञान भी तभी जब भीतर आत्म ज्ञान हो अन्यथा मन्दिर में भी पडोसी ही -दिखेगा। मुनि श्री जी ने कहा- राग-द्वेष छोडेगे तभी शत्रु- मित्र की कल्पना से ऊपर उठना होगा। जिससे तुम्हे घृणा न हो उससे अनुराग क्यों ? अथवा, जिससे तुम्हें घृणा होती उससे अनुराग क्यों ? वितरागी बनना आवश्यक है वित द्वेषी भी होना है। आज का इंसान चाहे घर परिवार में पति-पत्नि, भाई भाई, पिता- पुत्र, माँ-बेटी, सास-बहु, ननद – भोजाई दोराणी जेठानी सभी में एक ही भावना हावी हो जाती है – हम ईट का जवाब पत्थर से देगे । कोई दो बात कहता है, ये चार कहता है, वो सीधा छका लगाता है फिर महाभारत मच जाती है। आपस में बात बढ़ती जाती है। इसलिए कषायाग्नि को कभी कम मत समझो।
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