(आज जो हम हर बात में प्रजातंत्र और लोकतंत्र की बात करते हैं उसे सबसे पहले दुनिया को बिहार ने दिया था। बिहार के वैशाली को दुनिया में पहला गणराज्य माना जाता है। वैशाली का लिच्छवी गणराज्य विश्व का प्रथम गणतंत्र माना जाता है। यह आठ छोटे-छोटे राज्यों का संघ था और यहां सारे बड़े फैसले सामूहिक रूप से लिए जाते थे।)
गणतंत्र दिवस हमारी प्राचीन संस्कृति का गरिमा का गौरव दिवस है। भारत आज लोकतंत्र की मशाल जलाते हुए दुनिया में आशा-उमंग, शांति के आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गया है। 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजों से आजाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया। अंग्रेजों से स्वतंत्रता के बाद भले ही हम 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हों लेकिन गणतंत्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था का जनक भारत ही है।
‘गणतंत्र’ एक ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का जनक भारत ही है। इसकी शुरुआत भारत के बिहार राज्य के वैशाली से हुई है। उन दिनों ये प्रांत वैशाली गणराज्य के नाम से जाना जाता था। प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था के अवशेष आज भी भारत में मौजूद है। भारत यूरोप या फिर अमेरिका सब वैसी ही प्रणाली मानते हैं जैसी आज से 2600 साल पहले वैशाली में शुरू हुई थी। आज लोकतांत्रिक देशों में उच्च सदन और निम्न सदन की जो प्रणाली है वह भी वैशाली गणराज्य में थी।
प्राचीन भारत में सबसे पहला गणराज्य वैशाली था। ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक, वैशाली में ही दुनिया का पहला गणराज्य स्थापित हुआ। वैशाली को कुछ इतिहासकार गणतंत्र का ‘मक्का’ भी कहते हैं। वैशाली की भूमि न केवल ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है वरन् कला और संस्कृति के दृष्टिकोण से भी काफी धनी है। वैशाली जिला के चेचर (श्वेतपुर) से प्राप्त मूर्तियाँ तथा सिक्के पुरातात्विक महत्त्व के हैं। वैशाली अपने हस्तशिल्प के लिए विख्यात है।
*राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने वैशाली के संबंध में लिखा है* –
वैशाली जन का प्रतिपालक, विश्व का आदि विधाता,
जिसे ढूंढता विश्व आज, उस प्रजातंत्र की माता॥
रुको एक क्षण पथिक,इस मिट्टी पे शीश नवाओ,
राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।
महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। वैशाली को भारतीय दरबारी आम्रपाली की भूमि के रूप में भी जाना जाता है। बौद्ध तथा जैन धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्त्वपूर्ण है।
आज लोकतांत्रिक देशों में उच्च सदन और निम्न सदन की जो प्रणाली है, वह भी वैशाली गणराज्य में थी। वहां उस समय छोटी-छोटी समितियां थीं, जो जनता के लिए नियम और नीतियां बनाती थीं। वैशाली वज्जी महाजनपद की राजधानी थी। वैशाली में गणतंत्र की स्थापना लिच्छवियों ने की थी। लिच्छवियों ने वैशाली गणराज्य इसलिए स्थापित किया था, ताकि बाहरी आक्रमणकारियों से बचा जा सके। कालांतर में वैशाली एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा और वहां एक नई प्रणाली विकसित हुई, जिसे हम गणतंत्र कहते हैं। इसे ही दुनिया के ज्यादातर देशों ने अपनाया। आज भारत हो या यूरोप या फिर अमेरिका, सब वैसी ही प्रणाली को मानते हैं, जैसी आज से 2500 साल पहले वैशाली में शुरू हुई थी।
आज के गणराज्य में और वैशाली के गणराज्य में बहुत से फर्क हैं, पर मेन आइडिया वहीं से लिया गया था. वैशाली गणराज्य को नियंत्रित करने के लिए कुछ समितियां बनाई गई थीं, जो हर तरह के कामों पर बारीकी से नजर रखती थीं. ये समितियां समय के हिसाब से गणराज्य की नितियों में तब्दीली लाती थीं, जो काम आज के समय में किसी लोकतांत्रिक देशों में जनता के द्वारा चुने गए सांसद करते हैं।
प्राचीन गणतंत्र ‘वैशाली’ और महावीर स्वामी* :
विश्व को सर्वप्रथम गणतंत्र का पाठ पढ़ने वाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकतंत्र को अपनाया जा रहा है वह यहां के लिच्छवी शासकों की ही देन है। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। यहां का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता था।
दरअसल वैशाली नगर वज्जी महाजनपद की राजधानी थी। महाजनपद का मतलब प्राचीन भारत के शक्तिशाली राज्यों में से एक होता था। ये क्षेत्र प्रभावशाली था अपने गणतांत्रिक मूल्यों की वजह से। वैशाली गणराज्य को लिच्छवियों ने खड़ा किया था। ऐतिहासिक साहित्य से ज्ञात होता है कि भगवान महावीर के काल में अनेक गणराज्य थे। तिरहुत से लेकर कपिलवस्तु तक गणराज्यों का एक छोटा सा गुच्छा गंगा से तराई तक फैला हुआ था। गौतम बुद्ध शाक्यगण में उत्पन्न हुए थे। लिच्छवियों का गणराज्य इनमें सबसे शक्तिशाली था, उसकी राजधानी वैशाली थी। लिच्छवी संघ नायक महाराजा चेटक थे। महाराजा चेटक की ज्येष्ठ पुत्री का नाम ‘प्रियकारिणी त्रिशला’ था जिनका विवाह वैशाली गणतंत्र के सदस्य एवं क्षत्रिय ‘कुण्डग्राम’ के अधिपति महाराजा सिद्धार्थ के साथ हुआ था और इन्हीं के यहाँ 599 ईसापूर्व चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन बालक वर्धमान (महावीर स्वामी) का जन्म वज्जिकुल में हुआ जिसने अनेकान्त-स्याद्वाद सिद्धांत के माध्यम से पूरे विश्व को अच्छे लोकतंत्र की शिक्षा प्रदान कर एक नई दिशा प्रदान की ।
भगवान महावीर के सिद्धांत, शिक्षाएं, संविधान आज भी अत्यंत समीचीन और प्रासंगिक हैं। गणतंत्र दिवस हमारे संविधान में संस्थापित स्वतंत्रता, समानता, एकता, भाईचारा और सभी भारत के नागरिकों के लिए न्याय के सिद्धांतों को स्मरण और उनको मजबूत करने का एक उचित अवसर है, क्योंकि हमारा संविधान ही हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है। अगर देश के नागरिक संविधान में प्रतिष्ठापित बातों का अनुसरण करेंगे तो इससे देश में अधिक लोकतांत्रिक मूल्यों का उदय होगा।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान और गणतंत्र के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहरानी चाहिए और देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मिलकर सामूहिक रूप से सामना करने का प्रण लेना चाहिए। साथ-साथ देश में शिक्षा, समानता, सदभाव, पारदर्शिता को बढ़ावा देने का संकल्प लेना चाहिए। जिससे कि देश प्रगति के पथ पर और तेजी से आगे बढ़ सके।
(डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर) :ज्ञान-कुसुम भवन, नेशनल कान्वेंट स्कूल के पास
874/1, गांधीनगर, नईबस्ती ललितपुर उत्तर प्रदेश