आदर्शमय वर्षायोग 2025 (2)
दौलतराम जी ने अपनी कृति छह ढाला में आचार्य कुंदकुंद स्वामी के ग्रंथों का सार भर दिया है।
-आर्
इंदौर (ओम पाटोदी)। पंडित दौलत राम जी जिनशासन के एक उच्च कोटि के विद्वान हुए हैं। जिन्होंने अपनी रचनाओं में आध्यात्म का सागर भर दिया है। यही वजह है कि जैन समाज के प्राचीन कवियों में कविवर पंडित दौलतराम जी का नाम बहुत सम्मान एवं आदर से लिया जाता है। उनकी प्रसिद्ध कृति छह ढाला आध्यात्मिक दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण रचना है। जो संसारी जीवों की चतुरगति के परिभ्रमण के कारण और निदान की वास्तविक जानकारी को प्रस्तुत करती है।
उक्त विचार जिनवाणी पुत्री आर्यिका सिद्ध श्री माताजी ने अपनी छहढाला स्वाध्याय की कक्षा में प्रवचन के माध्यम से कहीं। उन्होंने बताया कि पंडितजी अपने मंगलाचरण में लिखते हैं कि-
तीन भुवन में सार, वीतराग विज्ञानता।
शिवस्वरूप शिवकार, नमहुँ त्रियोग सम्हारिवैं।।
उक्त पंक्तियों का अर्थ बताते हुए आर्यिका माताजी ने कहा कि त्रिभुवन अर्थात् तीन लोकों में जो सारभूत और सर्वोत्तम वस्तु है, वह है वीतराग विज्ञानता अर्थात् रागद्वेष रहित ज्ञान अर्थात केवलज्ञान। यही केवलज्ञान आनन्दस्वरूप है, अनन्त सुख को देने वाला है और संसारी बन्धनों से मुक्त कराने वाला है मतलब मोक्ष रूपी अवस्था को प्राप्त करवाने वाला है। अत: मैं मन-वचन-काय को संभालकर उस केवलज्ञान रूपी स्वरूप, वीतराग अवस्था अर्थात अरिहंत सिद्ध भगवान को नमस्कार करता हूँ।