द्रोणगिरि दर्शन
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लेखक -भागचन्द जैन “पीलीदुकान
गुरुदत्तादि साढ़े आठ करोड़ मुनिराजों की निर्वाण भूमि
लघु सम्मेद शिखर जी
श्री दिगम्बर जैन सिध्दक्षेत्र
#द्रोणगिरि#
फलहोड़ी वडगांव अनूप,पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप,
गरुदत्तादि मुनीश्वर जहां,मुक्ति गए बन्दों नित तहाँ।।
(निर्वाण कांड)
“एकबार वन्दे जो कोई,ताह नरक पशुगति नहीं होई”
#द्रोणगिरि परिचय#
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भारत देश के मध्यप्रदेश(बुन्देलखण्ड) के छतरपुर जिले की जनपद व तहसील बड़ामलहरा से 7 km दूरी पर स्थित श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि , इसे “लघु सम्मेद शिखर जी” भी कहते हैं , ग्राम का नाम सेंधपा है।
वीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुब्रत नाथ जी के काल(समय) मे हस्तनापुर के महाराजा गुरुदत्त ने मुनि दीक्षा लेकर द्रोणगिरि पर्वत पर घोर तपस्या की । ध्यान में लीन गुरुदत्त मुनीराज के ऊपर पूर्व के बैरी कृषक ने रुई लपेट कर आग लगा दी। मुनिराज गुरुदत्त, आत्म ध्यान में लीन, गुणश्रेणी चढ़ते हुए, केवलज्ञान को प्राप्त कर ,मोक्ष लक्ष्मी को वरण किया। इसी काल मे साढ़े आठ करोड़ मुनिराजों ने भी द्रोणगिरि पर्वत से निर्वाण प्राप्त किया । ( उपसर्ग केवली भगवान गुरुदत्त का जीवन चरित्र जानने के लिए हमारा लेख “गुरुदत्त चरित्र” पढ़ें)
इस पर्वत की पश्चिम दिशा में (वर्तमान की कुढी कच्चे मार्ग पर) वड़गांव नाम का ग्राम था। जो कालांतर में खंडहर हो गया , वड़गाँव के भवनों के अवशेष अभी मौजूद हैं।
द्रोणगिरि पर्वत, काठन नदी एवं श्यामरी नदी दो नदियों से घिरा हुआ पर्वत है । दोनों नदियों की विशेषता है कि सूखा के समय भी इन नदियों की धारा नहीं टूटी , प्रकति की देन अनुसार बिना पैर प्रक्षाल किये इस तीर्थ पर प्रवेश पाना सम्भव नहीं है ।
दोनों नदियों के मध्य में प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त, घने वृक्षों सहित विशाल पर्वत पर (चरण सहित )गगन चुम्बी 76 जिन मन्दिर बने हुए हैं।
द्रोणगिरि पर्वत पर “सम्मेद शिखर” जैसी अनुभूति होती है।
कमेटी द्वारा मंदिरों का रख रखाव इस तरह किया गया हैं कि हजारों वर्ष प्राचीन मंदिर ,आज भी चांदी जैसे चमकते श्वेत शिखर जिन पर लहलहाती पचरंगी ध्वजाएं मन को प्रफुलित कर रहीं हैं । पर्वत की हरियाली, पुष्पों की बहार ने यहां की प्राकृतिक सौंदर्यता को सहस्त्र गुणा वढा दिया है।
द्रोणगिरि पर्वत के दर्शनीय स्थल
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1. निर्वाण गुफा (गुफा क्रमांक 50)
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गुफा में गुरुदत्त भगवान के चरण विराजमान है । गुफा के अंदर अलग प्रकार की अनुभूति होती है । अशांत चित्त भी शांति को प्राप्त होता है। ध्यान की साधना के लिए यह उत्कृष्ट स्थान है।
इस गुफा में शीत एवं ग्रीष्म का प्रभाव नहीं है। यह साधना के लिए तो उत्कृष्ट स्थान है ही, साथ ही, इस निर्वाण गुफा का अद्भुत चमत्कार है कि यहां जो भी अपनी लौकिक कामना लेकर आता है । उसकी भी पूर्ति यहां होती है।
2.*आठवीं सदी के “आदिनाथ” *
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मन्दिर क्रमांक 58 में देशी पाषाण में भगवान आदिनाथ का छोटा सा मन्दिर है। अति सुंदर कलाकृति से युक्त चंवर ढोरते इंद्र उनके मध्य मन मोहक आकृति में भगवान आदिनाथ की आठवीं सदी की मूर्ति विराजमान है।
3. चंदेल कालीन दशवीं शताब्दी का स्तूप
(मंदिर क्रमांक 54)
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दशवीं शताब्दी का चंदेल कालीन कलात्मक मानस्तम्भ बना हुआ है । इस मानस्तम्भ में सबसे ऊपरी भाग में पदमासन मुद्रा में चारों ओर चौबीस तीर्थंकरों की मूर्ति ,उसके ठीक नीचे तीनों ओर खड़गाशन मूर्ति एवं एक पदमासन मूर्ति, एवं सबसे नीचे पद्मावती,सरस्वती,चक्रेस्वरी ,लक्षमी चारों देवियों की मूर्तियां है। इस स्थान पर भी मन्नतें पूरी होती हैं।
पर्वत चार टोंको में विभाजित है
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प्रथम टोंक (मंदिर क्रमांक 1,)
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4. कांच की अत्यंत कलात्मक तरीके से सुंदर तेरहवीं शताब्दी का सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर न0 1 है यहां से वंदना प्रारम्भ होती है।
5. *अतिशय कारी मन्दिर न0 3 *
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मन्दिर न0 3 अतिशयकारी चिन्तामणी पार्श्वनाथ का मन्दिर है । मूर्ति के शिर के अगल बगल से दो सर्प फणी एवं पीछे से सर्प का फण इस तरह के फण की प्रतिमा देश मे कहीं भी दूसरी देखने को नहीं मिलती ,यह अत्यंत अतिशय कारी मन्दिर है । यहां देवों द्वारा रात्रि में घण्टे, झालर एवं मधुर संगीत के स्वर सुनाई देते हैं। पद चाप की भी आवाज़ सुनाई देती है। अनेक बार तो चौकीदार को जयकारे कि आवाज़ सुनकर भृम हो जाता है कि इतनी रात्रि में यात्री ,यात्रा कर रहे हैं जब जाकर देखता है तो कोई नहीं है।
अनेक लोंगों ने यहां आकर अपनी मन्नत रखी एवं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुई हैं। कभी भी किसी की मनोकामना निष्फल नहीं हुई । सच्चे ह्रदय,श्रद्धा से आने बाला कभी खाली हांथ नहीं लौटता है।
द्वतीय टोंक
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6. शांतिसागर उपसर्ग स्थली(क्रमांक10)
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मन्दिर न0 9 के आगे आचार्य श्री शांति सागर जी के चरण विराजमान हैं । दक्षिण से उत्तर की यात्रा के लिए आचार्य श्री शांतिसागर जी का आगमन हुआ ,इसी यात्रा के दौरान आचार्य श्री शांतिसागर जी द्रोणगिरि भी पधारे , द्रोणगिरि की तलहटी में धर्मशाला में अहारचर्या के उपरांत आचार्य श्री पर्वत पर ही रहते थे । रात्रि में जब आचार्य श्री रात्रि में मंदिरों के पीछे घने वन में ध्यान कर रहे थे तभी एक शेर आकर उनके चरणों मे बैठ गया । पूरी रात्रि शेर चरणों मे बैठा रहा ,चूंकि मुनिराज ऐसी स्थिति को उपसर्ग मॉनकर अपने स्थान से नहीं हिलते हैं । पूरी रात्रि आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ध्यान में बैठे रहे, शेर भी चरणों मे बैठा रहा । जब प्रातः कुछ श्रावक पर्वत पर पहुंचे तो श्रावकों की आहट सुनकर शेर चला गया। आचार्य श्री शांति सागर जी द्वारा सिंह की विनय मुद्रा एवं पूरी घटना का वाक्या सुनाया।
(वर्तमान में कोई हिंसक जानवर पर्वत पर नहीं हैं , मात्र हिरण, मयूर,बन्दर आदि ही हैं)
7 तीर्थंकर दीक्षा वन
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शांतिसागर उपसर्ग स्थली के आंगें ही तीर्थंकर दीक्षा वन है। परम् पूज्य आचार्य श्री सौरभ सागर जी महाराज श्री की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से वर्ष 2011 में 28 टोंकों का निर्माण किया गया था ।यहां चौबीस तीर्थंकरों की टोंक बनी हैं जिनमे तीर्थंकरों के चरण विराजमान हैं ।इसी के आंगें भगवान बाहुबली,गौतम गणधर,आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य समन्तभद्र,आचार्य उमास्वामी आदि पूर्वाचार्यों के भी चरण टोंक बने हैं ।इसी के आगे शीतल नाथ भगवान का मंदिर है।जिसमे अति प्राचीन शीतलनाथ भगवान की मूर्ति विराजमान है, सूर्य की प्रथम किरण, यहां भगवान की प्रथम चरण वंदना करती है। यह मन मोहक ,प्रशांत स्थान है।
8.रसोइन बाई मन्दिर
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द्रोणगिरि तीर्थ पर रसोई शाला में 5/ रुपया प्रति माह पर रसोईन का काम करने बाली बाई ने अपने सम्पूर्ण जीवन के संचित धन ,जमा पूंजी को दान कर, मन्दिर बनवाया। जिसमे भगवान पार्स्वनाथ की मूर्ति विराजमान है। दान की निस्पर्हता का यह अनुपम उदारहण है।
9. वैराग्य का अनुपम दृश्य
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(मंदिर क्रमांक 49)
रसोईन बाई मन्दिर से आगे बढ़ते हुए गुरुदत्त निर्वाण गुफा पहुंचते हैं । गुफा से लगा हुआ वैराग्य दर्शन स्थल है । इसमें देशी पाषाण पर चारों ओर सुकमाल मुनि का चित्रण है। उनका राज वैभव,उनकी मां के स्नेह के कारण महल के दरवाजे बंद होने के कारण सुकमाल का साड़ी की रस्सी बनाकर महल से उतरने का दृश्य एवं ध्यान मुद्रा में श्यालनी के पैर भक्षण का दृश्य कलाकार ने देशी पाषाण पर कुशलता पूर्वक उतारा है। यह चित्रण देशी पाषाण पर अद्भुत है।
तृतीय टोंक
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मंदिर न0 60 आदिनाथ भगवान का इस पर्वत का मूलनायक मंदिर है। यह अतिशयकारी मंदिर है। इस मंदिर से कभी कभी रात्रि में तेज किरण निकलती है ,उसका प्रकाश इतना तेज होता है कि उसके सामने सूर्य की किरण भी फीकी होती है।
10. मुनि श्री समयसागर जी “दीक्षा स्थली”
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पैदल यात्रा को आंगें बढ़ते हुए अनेक मंदिरों के दर्शन करते हुए जिसमे ऊपर वर्णित चंदेल कालीन मानस्तम्भ स्तूप,आठवीं शताब्दी के आदिनाथ मन्दिर
के ही परिसर में वर्तमान युग के महान
आचार्य रत्न श्री विद्यासागर जी महाराज जी
द्वारा सन 1980 में अपने संघ की प्रथम दीक्षा उन्हीं के लघुभ्राता, वर्तमान निर्यापकाचार्य मुनि श्री समयसागर जी को प्रदान की थी।
इस युग की इस तीर्थ की यह गौरव शाली गाथा है। आचार्य श्री के द्वारा सैकड़ों की संख्या में दीक्षित मुनि ,आर्यिका,क्षुल्लक के साथ हजारों की संख्या में त्यागी व्रती,ब्रह्मचारणि बहिने सम्पूर्ण देश मे धर्मध्वजा फहरा रहे हैं ।
ऐसी विशाल शिष्य मंडली का प्रारम्भिक द्वार द्रोणगिरि का यह पावन तीर्थ है। आचार्य श्री विद्यासागर जी के जीवन की ,शिक्षा(वाचना),शिष्य दीक्षा ,पंचकल्याणक प्रतिष्ठा गजरथ महोत्सव सभी का प्रारंभिक स्थल द्रोणगिरि ही है । उन्होंने शीत कॉलीन वाचना का प्रारम्भ भी यहां से ही किया ।उनके जीवन काल का प्रथम पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव वर्ष 1977 में द्रोणगिरि तलहटी में निर्मित विशाल चौबीसी का हुआ । जिसका वर्णन आगे किया गया है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महराज की दो माह शीतकालीन वाचना के काल मे ससंघ तलहटी धर्मशाला में अहार चर्या के उपरांत सम्पूर्ण समय पर्वत पर ही व्यतीत करते थे रात्रि विश्राम भी पर्वत पर ही करते थे।
11. त्रिकाल चौबीसी मन्दिर(मंदिर क्रमांक 64)
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द्रोणगिरि पर्वत पर विशाल काय मन्दिर जिसका सागौन की लकड़ी का नक्काशी किया हुआ विशाल प्रवेश द्वार । इस मंदिर में तीनों कालों (भूतकाल,भविष्यकाल,वर्तमान काल) की खड़गासन मुद्रा में भगवान विराजमान हैं।
मूलनायक शांतिनाथ,कुन्थनाथ, अरहनाथ भगवान खड़गासन मनोज्ञ मुद्रा में विराजमान है। इस मंदिर से चारों दिशा में दर्शन होते हैं। मन्दिर में प्रवेश करते ही अलग प्रकार की अनुभूति होती है। वाहर निकलने का मन ही नहीं होता । त्रिकाल चौबीसी मंदिर में भी रात्रि में देवों द्वारा मधुर ध्वनि में की गई पूजन की संगीत की ध्वनि सुनाई देती है।
इस मंदिर का पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव इस युग के आध्यात्मिक सन्त, साक्षात समयसार आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी के परम सानिध्य में हुआ था। यहां पर प्रतिदिन रजत कलशों से 108 ऋद्धि, सिध्दि मन्त्रों से महाभिषेक, शांतिधारा,एवं शांतिनाथ विधान होता है। इस मंदिर के शिखर स्वर्णभद्र कूट पर अत्यंत मनमोहक सहस्रफणी पार्स्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है, यहां पहुंचकर सम्मेदशिखर की पार्श्वनाथ टोंक की अनुभूति होती है।
मन्दिर के सामने ही सुंदर उद्यान एवं देशी पाषाण का आकर्षक मानस्तम्भ बना हुआ है।
चतुर्थ टोंक
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12.* मूंगा वर्णी पार्स्वनाथ*
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मन्दिर न075 में हल्के गुलाबी रंग मूँगावर्ण की मनमोहक अतिशयकारी पार्स्वनाथ की मूर्ति विराजमान है ऐसी मनमोहक मूर्ति देश मे अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है।
13.गुरुदत्त स्थली
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(मंदिर क्रमांक 66)
चारों ओर से दर्शन प्राप्त(खुले में) गंधकुटी में काले पाषाण में गुरुदत्त भगवान की मनमोहक मूर्ति विराजमान है। यहां खड़े होकर ऐसा लगता है जैसे नन्दीश्वर,नन्दन वन जैसी छटा निराली है, रक्षाबंधन,पर्व दसहरा, या दीवाली है ,सभी पर्वों जैसा आनंद यहां आता है।
14.गणेश प्रसाद वर्णी स्थली (क्रमांक 67 B)
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इस सदी के महान आध्यात्मिक संत जिनका उपकार समाज कभी नहीं भूल सकती । जिन्होंने जैन धर्म शिक्षा की अलख जगाई, गाँव -गाँव में पाठशाला खुलवाई, वाराणसी में स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना की,द्रोणगिरि में विद्यालय खुलवाया इस विद्यालय के अनेक विद्वानों ने देश में कीर्ति स्थापित की , वर्णी जी की साधना ,तपस्या स्थली द्रोणगिरि रही है जो हमेशा यही कहते थे कि सम्मेद शिखर जी के बाद सम्मेद शिखर जी जैसी वर्गणायें (पोजेटिव एनर्जी) यदि कहीं है, तो वह द्रोणगिरि में है । उन्हींने इस तीर्थ को “लघुसम्मेद शिखर जी” के नाम से उच्चरित किया ऐसे महान संत क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी (समाधि मुनि गणेश कीर्ति जी ) की मूर्ति यहां विराजमान है।
15.* वनौषधियां *
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द्रोणगिरि पर्वत पर अनेक दुर्लभ औषधियों का प्रचुर मात्रा में भंडार है । इमारती लकड़ी सागौन,महुआ,तेंदू,सीताफल,नीम,नींबू,आवंला,
अमरूद,पूजन में उपयोग होने वाले सिहारू फूल ,सेजा,जामुन,यूकोलिप्टस,मधुकामनी,विघ्न वेलिया,आम ,कटवर,आदि अनेक प्रकार के असंख्य वृक्ष लगे हुए हैं । इस पर्वत की दुर्लभ देशी जड़ीबूटियों से निर्मित, यहां संचालित निःशुल्क आचार्य देवनन्दी औषधालय में आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जाता है। जिसके सेवन से असाध्य रोगों का निवारण होता हैं।
16. पर्वत पहुँच मार्ग एवं अन्य सुबिधायें
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द्रोणगिरि पर्वत पर पहुंचने के लिए धर्मशाला से पैदल मार्ग से 167 सीढयों से चढ़कर एवं
स्लीपर बस,कार,हर प्रकार के वाहन से पर्वत के पीछे से बने हुए पक्के मार्ग से पर्वत पर पहुंचा जा सकता है । सभी प्रकार के वाहन पर्वत के मंदिरों तक पहुंच जाता है।
पर्वत पर वाहन पार्किंग,पीने का स्वच्छ ठंडा जल , पूजन हेतु शुद्ध धोती दुपट्टे 24 घण्टे उपलब्ध रहते हैं , सन्तों ,त्यागियों को विश्राम हेतु कमरे बने हुए हैं । पर्वत पर उप कार्यालय है जिसमे प्रातः 7 बजे से शांध्य तक कार्यकर्ता बैठते हैं एवं चौबीस घण्टे सिक्युरिटी गार्ड रहते हैं
नोट- पर्वत पर यात्रियों के ठहरने का स्थान नहीं है।
पर्वत के ताले प्रातः 5.30 पर खुलते हैं । सूर्य अस्त रात्रि 6 बजे के उपरांत पर्वत का प्रवेश द्वार बंद हो जाता हैं।
पर्वत पर चरण स्थली एवं विशाल गगन चुम्बी मंदिरों सहित कुल 76 दर्शन हैं।
17. द्रोणगिरि तलहटी
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द्रोणगिरि पर्वत की तलहटी में रोड के किनारे श्यामली नदी के तट पर विशाल परिसर में आकर्षक विशाल चौबीसी जिनालय मन्दिर बना हुआ है। यह मंदिर देश के गिने चुने मंदिरों में आता है।
मन्दिर से लगा हुआ विशाल स्थाई प्रवचन पंडाल एवं साधु संतों के रुकने के लिए सुंदर सन्त निवास (श्रमण भवन) बना हुआ है यह पिरामिड आकृति में बना है।
इसी परिसर में वातानुकूलित आधुनिक क्वालिटी का सर्व सुबिधा युक्त विशाल A C यात्री भवन बनकर तैयार है। यात्री भवन के सामने विशाल सुंदर पार्क, चारों ओर हरा भरा प्राकृतिक वातावरण ,भवन के पीछे कल -कल श्यामरी नदी वह रही ,नेचुरल स्विमिंग पूल है ,यहां रुकने बाले यात्री का मन यहां से जाने का नहीं होगा।
18. प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान
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चौबीसी परिसर के सामने ही देश का अपने आप मे अनोखा प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान स्थित है। इस संस्थान की अलग पहिचान है । देश मे शिक्षा संस्थाए अनेक हैं किंतु प्रशिक्षण के उपरांत शिक्षा का सर्टिफिकेट के साथ 100 प्रतिशत रोजगार देने का गौरव रखने वाली यह देश की प्रथम संस्था है। इस संस्थान में प्रबन्ध,एकाउंट,विधि विधान , ज्योतिष,वास्तु,कम्प्यूटर,स्किल डेवलोपमेंट का प्रशिक्षण,नैतिक शिक्षा आदि की निःशुल्क शिक्षा ,एवं निःशुल्क भोजन ,आवास आदि की सुबिधा छात्रों को उपलब्ध कराई जाती है। एवं सत्र समापन के दिन ही परीक्षा परिणाम, सर्टिफिकेट एवं साथ मे देश की विभिन्न संस्थाओं में रोजगार का नियुक्ति पत्र सौंपा जाता है।
वर्ष 1999 से संचालित इस संस्थान से हजारों की संख्या में छात्र शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं एवं देश एवं विदेश की जैन संस्थाओं ,तीर्थों मंदिरों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।अनेक छात्र विधि विधान में पारंगत होकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, विधान आदि कर धर्म की महती प्रभावना कर रहे हैं।
इस संस्थान के प्रशिक्षित छात्रों ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं ।
जिसमे मुख्यतया मांगीतुंगी तीर्थ पर निर्मित भगवान आदिनाथ की 108 फिट की मूर्ति निर्माण से लेकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का महा महोत्सव यहां के प्रशिक्षत छात्र ने मैनेजर का दायित्व सम्हालते हुए कीर्तिमान स्थापित किया है।
इसी संस्थान के छात्रों ने गोम्टेश बाहुबली में आयोजित महामस्तकाभिषेक अन्तर्राष्ट्ररीय महोत्सव के आवास कार्यालय को सफलता पूर्वक सम्हाला है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम् सानिध्य में निर्मित विश्व विख्यात कुंडलपुर का मन्दिर निर्माण एवं कुण्डलपुर का 2022 का पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का भार सम्पूर्ण अकाउंट सेक्शन एवं स्टोर, द्रोणगिरि के प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान के छात्रों की टीम ने सम्हाल कर द्रोणगिरि संस्थान को गौरव प्रदान किया है कुंडलपुर कमेटी इन छात्रों की कार्य कुशलता की प्रशंसा करते नहीं थकती है। इस प्रकार देश की अनेक बड़ी संस्थाएं अतिशय क्षेत्र खजुराहो,पैठन ,हस्तनापुर,महावीरजी ,हस्तनापुर,
गुणायतन शिखर जी काठमांडू,द्रोणगिरि, आदि सैकड़ों संस्थाओं में किसी न किसी रूप में यहां के प्रशिक्षित छात्र अपनी सेवाएं दे रहे हैं जिसका नाम लिखने के लिए अनेक पृष्ठों का सहारा लेना पड़ेगा।
प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान का स्वतंत्र विद्यालय भवन परिसर बना हुआ है।
18.आवास
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इस तीर्थ पर सभी संस्थाओं के मिलाकर 100 से अधिक AC ,एवं नॉन AC कमरे, एवं सर्व सुबिधा युक्त हाल हैं।
विस्तर भी साफ सुथरे सिंगल यूज़ धुलाई बाले उपलब्ध रहते हैं। एवं गर्म पानी की सुबिधा उपलब्ध है।
त्यागी वृती, साधु संतों को आवास की अलग समुचित व्यवस्था हैं। सन्त निवास है। शौच आदि जाने के लिए शुष्क पर्याप्त स्थान है।
19. ग्राम मन्दिर
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द्रोणगिरि तलहटी में रोड के किनारे धर्मशाला परिसर में ही अति प्राचीन आदिनाथ मन्दिर है। मन्दिर में तीन वेदियां हैं।
मंदिर अति प्राचीन है ,आदिनाथ की मूर्ति मन को प्रफुल्लित कर देती है।
20.द्रोणगिरि भोजनशाला
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यहां पर नियमित रूप से संचालित स्वदिष्ठ एवं शुद्ध धुले हुए गेहूं का संस्था की ही चक्की से ताजा आटा एवं ताजे मसाले, सेंधा नमक का उपयोग
होता है । अचार भी बाजार का उपयोग नहीं होता है।
भोजनशाला में एक साथ 50 लोगों को बैठने की सुबिधा सहित, एवं 200 लोंगों की क्षमता बाला स्वयं सर्विस की सुबिधा सहित नियमित भोजन शाला संचालित है।
(ठंडा जल ,वाटर कूलर RO की सुबिधा युक्त)
समय
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सुबह 10 बजे से 1 बजे तक,सान्ध्य 4.30से सूर्य अस्त के पूर्व तक।
21.द्रोणगिरि शोध आहार शाला
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प्रतिमा धारी ,त्यागि व्रर्तियों के लिए अलग से नियमित चौका आहार शाला संचालित है।
भोजन के एक घण्टे पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
22.* द्रोणगिरि प्रवेश द्वार*
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नेशनल हाइवे 86 पर नगर बड़ामलहरा से द्रोणगिरि के लिए प्रवेश करते हैं। बड़ामलहरा बस्ती के मध्य में मुख्य मार्ग पर भव्य, अति सुंदर ,दर्शनीय, द्रोणगिरि प्रवेश द्वार बना हुआ है । इस द्वार के ऊपर विशाल काय गजराज की सूंड़ पर द्रोणगिरि पर्वत (मंदिरों सहित) की अनोखी रचना की गई है। यह सम्पूर्ण देश का अद्भुत प्रवेश द्वार बना हुआ है। इसे देखकर इस मुख्य मार्ग से निकलने वाला हर व्यक्ति इसकी छवि को निहारने को आतुर हो जाता है।
सम्पत्ति
बड़ामलहरा में ही मुख्य मार्केट में विशाल लंबे चोंडे परिसर में भवन है । जिसमे मुख्य कार्यक्रमो हेतु सभा मंडप आदि एवं अनेक कमरों से युक्त भवन बना हुआ है। कुछ परिसर बैंक एवं व्यवसायिक किराए पर भी दिया हुआ है।
23.द्रोणगिरि पर्वत पर संचालित नियमित कार्यक्रम
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द्रोणगिरि पर्वत पर अतिशयकारी भारत की अद्वतीय खड़गाशन त्रिकाल चौबीसी मन्दिर में प्रतिदिन प्रातः 8 बजे 108 रजत कलशों से महामस्तकाभिषेक, एवं शांतिधारा होती है।
इस तीर्थ से भगवान मुनिसुब्रत जी के काल मे निर्वाण पधारे गुरुदत्त भगवान सहित साढ़े आठ करोड़ मुनिराजों ने निर्वाण प्राप्त किया है । इसी उपलक्ष्य में शांतिधारा के उपरांत , प्रति दिन निर्वाण लाडू भी चढ़ाया जाता है, एवं नियमित रूप से प्रतिदिन विधान भी होता है।
24.अतिशय
इस तीर्थ पर मंदिर न0 3, मंदिर न0 60, मंदिर न0 64,मंदिर न067 में निरन्तर देवों द्वारा घण्टे झालर,एवं अनेक अतिशय दिखाई देते हैं।
पर्वत पर कभी कभार एक विशालकाय सर्प निकलता है जिसके सिर से तेज रोशनी चमकती है। कुछ देरी वाद वह सर्प लुफ्त हो जाता है। आज तक उसके आने एवं जाने का पता नहीं लगा है । वह रात्रि में अपने आप प्रगट होता है। यह पर्वत चमत्कारों ,अतिशय से परिपूर्ण है।
आज तक किसी के साथ भी कोई घटना,दुर्घटना नहीं हुई है। रात्रि में यहां अत्यधिक मन मोहक लगता है, अकेला व्यक्ति भी निर्भय होकर रहता है,किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं लगता है ।
मेंने (भागचन्द जैन “पीलीदुकान”) स्वयं ने अकेले पर्वत पर मंदिरों में एवं खुले में अनेकों बार रात्रि विश्राम किया है। चमत्कार भी स्वयं देखे हैं, घण्टों ध्यान किया है । यहां की महिमा एवं शांति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती, पर्वत पर तो जो स्वयं की अनुभूति है वह अकथनीय है।
25.द्रोणगिरि कमेटी द्वारा संचालित जन उपयोगी कार्य
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द्रोणगिरि प्रबन्ध कमेटी द्वारा आम जन के कल्याणार्थ निःशुल्क औषद्यालय,नेत्र शिविर, स्वास्थ्य परीक्षण शिविर,शिक्षा,निःशक्तजनों को विभिन्न प्रकार की मदद के कार्यक्रम,स्वच्छता अभियान , प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान द्वारा प्रशिक्षण एवं अन्य लौकिक,धार्मिक शिक्षा आदि जन उपयोगी कार्य संचालित किए जाते हैं
26. * वार्षिक आयोजन*
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द्रोणगिरि तीर्थ पर प्रति वर्ष माघ शुक्ला तेरस,चौदस,पूर्णमा को वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। मेले के अवसर पर विभिन्न आयोजन किये जाते हैं इस मेले में दूर दराज के भक्त आते हैं ।
27.आय व्यय
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वार्षिक मेले पर कमेटी द्वारा वर्ष भर में जो भी आय व्यय किया जाता है उसे खुले मंच पर सुनाया जाता है।
28.* गौरव शाली क्षण*
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द्रोणगिरि तीर्थ पर देश के सभी आचार्य मुनि संघों,आर्यिका माता जी के संघों की चरण रज पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जिसमे मुख्यतः आचार्य श्री शांतिसागर जी,आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी,आचार्य श्री शिव सागर जी ,आचार्य श्री वीरसागर जी, आचार्य श्री देशभूषण जी,आचार्य श्री सन्मति सागर जी,आचार्य श्री विमल सागर जी,आचार्य श्री वाहूबली सागर जी,आचार्य श्री विद्यासागर जी,आचार्य श्री विरागसागर जी, आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी, आचार्य श्री वर्धमान सागर जी,आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी,आचार्य श्री कुन्थु सागर जी ,आचार्य श्री देवनन्दी जी, सहित अनेक आचार्य संघो, का एवं पूज्य आर्यिका श्री सुपार्श्व मति माता जी ,आर्यिका श्री विजय मति माता जी आर्यिका श्री ज्ञान मति माता जी ,आर्यिका श्री विज्ञान मति माता जी सहित अनेक आर्यिका संघ, साधु संतों का निरंतर चरण रज सानिध्य मिलता रहा है। वर्तमान में भी निरन्तर साधुओं का आगमन होता रहता है।
इस तीर्थ की विशेषता है कि किसी भी सन्त,पंथ,परम्परा के भेदभाव रहित होकर सभी साधुओं की वैयावृत्ति,आहार चर्या, अगवानी,विहार कमेटी द्वारा उत्साह पूर्वक किया जाता है।
29.* ऐतिहासिक क्षण*
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‘चातुर्मास, सन्त समागम ‘
इस तीर्थ पर आचार्य श्री विराग सागर जी महराज ससंघ,वर्ष 1992,
आचार्य श्री देवनन्दी जी महराज ससंघ वर्ष 1999,
आचार्य श्री वैभव सागर जी महाराज ससंघ
वर्ष 2009,
मुनि श्री अविचल सागर
आचार्य श्री सौरभ सागर जी महाराज वर्ष 2022
सहित विभिन्न काल मे अनेक संघों ,आर्यिका माता जी के संघों के चातुर्मास कराने का गौरव प्राप्त हुआ है।
‘पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव’
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विभिन्न काल मे हुए पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव
द्रोणगिरि तीर्थ पर वर्ष 1956,
आचार्य श्री विद्या सागर जी के सानिध्य में वर्ष सन 1977,
आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज जी के सानिध्य में वर्ष सन1995,
आचार्य श्री देवनन्दी जी महाराज जी के ससंघ सानिध्य में वर्ष सन 2001,
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज जी के सानिध्य में वर्ष सन 2014,वर्ष सन 2016
द्रोणगिरि मध्यप्रदेश, बुन्देल खण्ड का विकसित एवं मनोरम तीर्थों की श्रेणी में गिना जाता है।
30.ऐतिहासिक क्षण महोत्सव
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अनेक दीक्षाएं
इस तीर्थ को अनेक दीक्षाएं देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी ,आचार्य श्री विरागसागर जी,आचार्य श्री देवनन्दी जी आचार्य वैभव सागर जी एवं अन्य अनेक आचार्यों द्वारा यहां अलग अलग काल मे मुनि,एलक,क्षुल्लक,आर्यिका दीक्षएँ प्रदान की हैं।
वर्तमन आचार्य श्री विनम्र सागर जी की प्रथम दीक्षा का अवसर इसी भूमि को प्राप्त है।
इस तीर्थ पर समाधिस्थ ,एवं वर्तमान के सभी आचार्य, आर्यिका माता जी के संघों का आगमन हुआ है।
31.द्रोणगिरि के निकट वर्ती तीर्थ दूरी एवं सम्पर्क न0
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द्रोणगिरि के चारों ओर अनेक दिगम्बर जैन तीर्थ हैं उनकी जानकारी एवं दूरी
कुंडलपुर 100km
सिध्दक्षेत्र नैनागिरी 65 km,
9424345025
सिध्दक्षेत्र आहार जी 55 km,
09425141593
अतिशय क्षेत्र हटा जी 40 km
09893215054
अतिशय क्षेत्र पपौरा जी 50 km
9425141638
अतिशय क्षेत्र बंधा जी 75 km
09098355530
विश्व प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र खजुराहो 107 km
9424923857
अतिशय क्षेत्र डेरापहाड़ी छतरपुर 55 km
09425883025
अतिशय क्षेत्र भगवां 9 km
09407300580
अतिशय क्षेत्र कुटोरा 30 km
9977903995
अतिशय क्षेत्र बड़ागाँव 40 km
09926891933
अतिशय क्षेत्र दरगुवां 45 km
अतिशयक्षेत्र नवागढ़ 50 km
9425141697
अतिशय क्षेत्र कारीटोरन 60 km
+919140838754
अतिशय क्षेत्र सिरोंन जी 70 km
अतिशय क्षेत्र वानपुर 70 km
+917887024034
अतिशय क्षेत्र क्षेत्रपाल ललितपुर 110 km
+919889253509
अतिशय क्षेत्र देवगढ़ 145 km
05176272146
अतिशय क्षेत्र चंदेरी 160 k
अतिशय क्षेत्र थूवोंन जी 175 km
+919423545081
अतिशय क्षेत्र गोलाकोट 150 km
6263803101
अतिशय क्षेत्र खनियाधाना 166 km
सिध्दक्षेत्र सोनागिर जी 220 km
अतिशय क्षेत्र करगुवां झांसी 175 km
09450071632
अतिशय क्षेत्र पवा जी
अतिशय क्षेत्र तिगोड़ा 29 km
9630013458
अतिशय क्षेत्र नेमगिरी बंडा 80 km
+917879857895
अतिशय क्षेत्र पजनारी जी बंडा 90 km
9893753270
अतिशय क्षेत्र मंगलगिरी सागर 110 km
08305918215
अतिशय क्षेत्र गिरार जी 70 km
09179190330
अतिशय क्षेत्र पटेरिया जी गढ़ाकोटा 150 km
9300957075
अतिशय क्षेत्र बीना बारह 170 km
अतिशय क्षेत्र रहली पटनागंज 140 km
33.पर्यटन स्थल
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द्रोणगिरि से कुण्डलपुर के हाइवे पर बाजना ग्राम के पास में अत्यंत मनोहारी हिन्दू तीर्थ पर्यटक स्थल भीमकुण्ड है। इस कुंड की गहराई अथाह है ,इसमें हल्के नीले रंग का स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्य वर्धक जल है । इस कुंड का तारतम्य समुद्र से जुड़ा है इसे वैज्ञानिकों ने सुनामी लहर के उछाल से सिद्ध किया है।
भीमकुण्ड हाइवे मुख्य रोड़ से 2km , द्रोणगिरि से 30 km दूरी पर है।
ये सभी दूरी द्रोणगिरि से दी गई है ।यदि आप क्रमवद्ध तरीके से यात्रा करेंगे तो सभी तीर्थ एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ की दूरी 10 से 30 km की ही दूरी पर है। लगभग सभी तीर्थों पर आवास की सुबिधा है।
द्रोणगिरि के आसपास, अच्छे होटल एवं रिसोर्ट भी हैं।
34.द्रोणगिरि से निकटवर्ती रेलवे स्टेशन
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महाराजा छत्रशाल छतरपुर 57 km
ललितपुर 120 km
टीकमगढ़ 55 km
सागर 110 km
बीना 150 km
खजुराहो 90 km
हरपालपुर 100 km
महोबा 100 km
दमोह 107 km
झांसी 170 km
भोपाल 220 km
कानपुर 250 km
सतना 180 km
कटनी 200km
जबलपुर 200km
35.नजदीकी हवाई अड्डा
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खजुराहो
भोपाल
इंदौर
ग्वालियर
जबलपुर
36. निकटवर्ती शहर
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छतरपुर 50km
टीकमगढ़ 55km
ललितपुर 120 km
दमोह 100km
सागर 110 km
बड़ामलहरा 7 km
घुवारा 22 km
37. निकटवर्ती स्वास्थ्य सेवाएं
उपरोक्त सभी शहरों में श्रेष्ठ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं । एवं द्रोणगिरि में भी उपस्वास्थ्य केंद्र है।
38. ट्रेवलर्स (बस,फोर व्हीलर,सेवाओं हेतु सम्पर्क)
टीकमगढ़
1.Travelers agency टीकमगढ़
Mr zuber.
8269216153
2.Mishra bus service manager टीकमगढ़
9425141876
3.Beeru gupta
Gupta bus service टीकमगढ़
9179003575
4, झांसी ट्रेवलर्स
09839569291
39.* अन्य संस्थाएं*
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द्रोणगिरि में सिद्धायत्न,एवं गुरुदत्त उदाशीन आश्रम है। ये दो स्वतंत्र संस्थाएं संचालित है इनकी स्वतंत्र प्रबन्ध कमेटियां हैं। दोनों जगह मन्दिर हैं। दर्शनीय हैं।
@#बुन्देल खण्ड के समस्त तीर्थों की क्रमबद्ध यात्रा की विशेष जानकारी हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।👍
आप सभी द्रोणगिरि तीर्थ के साथ, द्रोणगिरि के आस पास के समस्त तीर्थों के दर्शन कर पुण्यार्जन करें।
👌यदि आपने अभी तक द्रोणगिरि के दर्शन नहीं किये है तो आपका मनुष्य भव प्राप्त करना अधूरा है । यह अतिशयोक्ति नहीं सत्य है ।आप सभी इष्ट मित्रों परिवार सहित द्रोणगिरि अवश्य पधारें।
* “द्रोणगिरि” बुन्देलखण्ड की अनुपम कृति है।*
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विनम्र
भागचन्द जैन “पीलीदुकान”
9425144006
विशेष निवेदन – आप सभी से अनुरोध है की इस लेख को सभी प्रकार के शोशल मीडिया पर भेजने का कष्ट करें जिससे सम्पूर्ण विश्व के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति लाभान्वित हो ।
योगेश जैन, संपादक, जैन गजट, टीकमगढ़