मनुष्य यदि अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहे उसके लिए लक्ष्य के प्रति सतत निरंतर प्रयत्न शील होना चाहिए। मेरी आठवीं पुस्तक “स्वस्थ एवं सुखी जीवन के अनमोल सूत्र “प्रकाशित होने के उपरांत पुस्तक संत शिरोमणि श्री विद्यासागर जी महाराज जी को समर्पित की गई है।
प्रकाशित होने के उपरांत प्राप्त होने पर पुस्तक को आचार्य श्री को भेंट करने का उपक्रम प्रयत्न मेरे द्वारा लगभग 15 माह से किया जा रहा है था,पर संयोग नहीं हो पा रहा था। शिरपुर में भेंट करने का प्रयास किया ,सफलता नहीं मिली .उसके बाद अमरकंटक में आचार्य श्री की अस्वस्थ्यता के कारण शुभ अवसर प्राप्त नहीं हुआ .वर्तमान में चंद्रगिरी अतिशय क्षेत्र डोंगरगढ़ मैं चातुर्मास के दौरान वहां पर आचार्य श्री निरंतर साधना रत है। मैं पूना से रायपुर आया .रायपुर में श्री आलोक नायक एवं श्रीमती मधु नायक के साथ सुबह छह रायपुर से डोंगरगढ़ पहुंचे। वहां के व्यवस्थापक श्री किशोर जैन जी से अपनी पुस्तक के संबंध में चर्चा उपरांत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का आगमन मंच पर होने पर पदाधिकारी द्वारा मुझे शास्त्र भेंट के साथ अपनी पुस्तक “स्वस्थ एवं सुखी जीवन के अनमोल सूत्र “भेंट करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ उस दौरान मैंने पुस्तक के संबंध में आचार्य श्री से 1 मिनट में चर्चा की और उनसे कुछ मिनटों का समय चर्चा हेतु निवेदन किया .आचार्य श्री ने आशीर्वाद देकर मौन स्वीकृति दी.उसके उपरांत उनके प्रवचन सुने आहार चर्या के उपरांत बहुत भीड़ थी उनके दर्शन किए उनके अपने कक्ष पर पहुंचने पर एक सूचना सुनाई दी गई किडॉक्टर अरविंद जैन भोपाल जहां पर भी हो आचार्य श्री से भेंट करने आए. मन में अनेकों प्रश्न उठ रहे थे वा कैसे उनसे चर्चा करूंगा।
कक्ष में प्रवेश किया श्रीफल बैठकर “चेतना के चातक” “परिषह जयी “के साथ “स्वस्थ एवं सुखी जीवन के अनमोल सूत्र” पुस्तक उन्हें भेंट की उन्होंने आशीर्वाद दिया , मैंने उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया .इसके उपरांत उनके द्वारा मुझसे संक्षिप्त चर्चा कि मेरे द्वारा अपना संक्षिप्त जीवन परिचय दिया उसके उपरांत उन्होंने आयुर्वेद के संबंध में कुछ जानकारी प्राप्त की। मेरे द्वारा आचार्य श्री के समक्ष वर्तमान में अंडा शाकाहार है एवं दूध मांसाहार है के संबंध में विषय वर्तमान समय में उठाए जा रहे हैं और मेरे द्वारा उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने मेरे विचार का समर्थन करते हुए अपना आशीर्वाद दिया और बोले आपका प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा है .इसके उपरांत आयुर्वेद के विकास में वर्तमान में क्या संभव है के संबंध में जानकारी ली मैंने बताया आयुर्वेद में अष्टविध रोगी परीक्षण कर निदान सही माना गया है .चिकित्सा की कुशलता से हम दोष- दूषय के आधार पर चिकित्सा कार्य संपादित कर सकते हैं। आवश्यक होने पर निदान हेतु आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर चिकित्सा में सहायता ले सकते हैं। इस चर्चा के उपरांत उन्होंने पुस्तक अवलोकन कर आशीर्वाद दिया और निरंतर अहिंसा ,शाकाहार ,जीव -दया ,स्वास्थ्य ,धार्मिक सामाजिक विसंगतियों के ऊपर आवाज उठाते रहे मेरा आशीर्वाद है।
यह चर्चा लगभग 10 मिनट हुई कक्ष से बाहर निकलने के उपरांत मेरी अनुभूति वा वर्षों की अभिलाषा पूरी हुई जो मेरे लिए अकल्पनीय , अकथनीय थी .आज का दिन मेरे लिए अभूतपूर्व हुआ। मेरा जीवन गुरु जी के आशीर्वाद से धन्य हुआ जिसकी में जितनी भी अपने भाग्य को सराहु कम हैं .
इस कार्य में श्री किशोर जी, श्री आलोक जी ,मधु जी एवं वहां के पदाधिकारियों का मैं विशेष आभारी रहूंगा साथ ही साथ मुनि संघ का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उन्होंने भी मेरे कार्य की अनुमोदना की और प्रेरित किया .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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