‘दीपावली से शुरू हुआ था भारत का सबसे प्राचीन संवत् ‘
– डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
भारत देश धर्म प्रधान देश है, अहिंसा प्रधान संस्कृति है। त्यौहार हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक हैं, इनका सम्बन्ध भी प्राचीन महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा होता है। यहाँ पर धार्मिकता को लिये हुए अनेकों पर्व मनाये जाते हैं। दीपावली पर्व को सारे देश में बहुत ही उत्साह-उमंग के साथ मनाया जाता है। अधिकतर धर्म-सम्प्रदायों में इस पर्व को मनाने का कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य है।
हमारे देश में वीर निर्वाण संवत्, विक्रम संवत्, शक संवत्, शालिवाहन संवत्, ईस्वी संवत, गुप्त संवत्, हिजरी संवत् आदि अनेक संवत् प्रचलित हैं लेकिन वीर निर्वाण संवत् सबसे पुराना संवत् है। यह हिजरी, विक्रम ईस्वी, शक आदि से अधिक पुराना है। जैनदर्शन में दीपावली पर्व को मनाने का एक अनूठा एवं तथ्यपरक इतिहास है। यह पर्व जैनधर्म में भगवान महावीर स्वामी से जुड़ा हुआ है।
हमारे ईसा से 527 वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली के दिन ही भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। उसके एक दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकम से भारतवर्ष का सबसे प्राचीन संवत् ‘वीर निर्वाण संवत्’ प्रारंभ हुआ था।
जैन “वीर निर्वाण संवत्” भारत का प्रमाणिक प्राचीन संवत् है और इसकी पुष्टि सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा वर्ष 1912 में अजमेर जिले में बडली गाँव (भिनय तहसील, राजस्थान) से प्राप्त ईसा से 443 वर्ष पूर्व के “84 वीर संवत्” लिखित एक प्राचीन प्राकृत युक्त ब्राह्मी शिलालेख से की गयी है। यह शिलालेख अजमेर के ‘राजपूताना संग्रहालय’ में संगृहीत है।
उल्लेखनीय है कि अजमेर जिले में बडली गाँव (भिनय तहसील, राजस्थान) से प्राप्त प्राचीन षटकोणीय पिलर पर अंकित चार लाइनों वाले शिलालेख की प्रथम लाइन में “वीर” शब्द भगवान महावीर स्वामी को संबोधित है और दूसरी लाइन में “निर्वाण से 84 वर्ष” अंकित है, जो भगवान महावीर निर्वाण के 84 वर्ष बाद लिखे जाने को दर्शाता है! ईसा से 527 वर्ष पूर्व निर्वाण में से 84 वर्ष कम करने पर 443 वर्ष आता है जो शिलालेख लिखे जाने का वर्ष है।
ईसा से 527 वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्णा अमावस्या को दीपावली के दिन भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था ,उसके एक दिन बाद कार्तिक शुक्ला एकम से भारतवर्ष का सबसे प्राचीन संवत् “वीर निर्वाण संवत्”प्रारंभ हुआ था । जैन परंपरा में इसी दिन से नए बर्ष की शुरूआत मानी जाती है।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राजबली पाण्डेय ने अपनी पुस्तक इंडियन पैलियो ग्राफी के पृष्ठ 180 पर लिखा है कि ‘अशोक के पूर्व के शिलालेखों में तिथि अंकित करने की परंपरा नहीं थी,बडली का शिलालेख तो एक अपवाद है ।
अभी तक इस शिलालेख से पूर्व का कोई भी प्रमाण नहीं है जो किसी और संवत् की परंपरा को दर्शाता हो। संप्रति यह शिलालेख अजमेर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
जैनधर्म-दर्शन, परंपरा के प्राकृत तथा संस्कृत भाषा के प्राचीन ग्रंथों/पांडुलिपियों में तो इस बात के अनेक प्रमाण हैं ही साथ ही पुरातात्विक साक्ष्यों से भी यह संवत् सबसे अधिक प्राचीन सिद्ध होता है।
जिस दिन मानव के अंतर को दीपोत्सव पर्व की एक कोमल, जगमगाती रोशनी छू लेगी, उसी दिन से जीवन की कुहासा-निराशा छंटने लगेगी और जीवन आलोक का नया प्रतीक, पर्याय बन जाएगा। इस आलोक में ही जीवन का लक्ष्य दृष्टिगोचर हो सकता है और इस लक्षित लक्ष्य का सघन मर्म समझ में आ सकता है।
दीपावली पर जलने वाले दीपकों की संख्या एक-दो नहीं, हजारों होती है, परंतु इससे बाहर का अंधकार मिटता है, अंतर का अंधकार तो यथावत् बना रहता है। अच्छा हो कि इस दीपावली में दीपक के सच की इस अनुभूति के साथ हम एक दीपक जलाएं, ताकि इस मरणशील मिट्टी की देह में आत्मा की ज्योति मुस्करा सके।
जैन परंपरा में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव के अगले दिन से नए वर्ष का शुभारंभ माना जाता है।
यद्यपि युद्ध नहीं कियो, नाहिं रखे असि-तीर ।
परम अहिंसक आचरण, तदपि बने महावीर ।।
-डॉ सुनील जैन संचय
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