दिनेश से आचार्य वसुनंदी का आध्यात्मिक सफर

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जैनत्व के उन्नायक;- बड़े चतुर्विध संघ का कर रहे कुशल संचालन
आज 3 जनवरी आचार्य पदारोहण दिवस पर विशेष आलेख:- संजय जैन बड़जात्या
राजस्थान प्रान्त के धौलपुर जिले की मनिया तहसील के छोटे से गांव विरोंधा की पावन धरा पर पिता ऋषभ चंद जैन के प्रांगण में उनकी धर्मपत्नी त्रिवेणी देवी की कुक्षी से 3 अक्टूबर 1967 को एक ऐसे लाल दिनेश ने जन्म लिया जो वर्तमान में जैनत्व की ध्वजा का उन्नायक बन परम पूज्य आचार्य श्री वसुनंदी की महामुनिराज कहला रहा है। जो स्वयं के साथ-साथ पर कल्याण की भावना से अपने जीवन को वैराग्य के साथ मोक्ष मार्ग की और प्रशस्त कर रहें है। ऐसे दिव्य,पूज्य संत आचार्य श्री वसुनंदी जी महामुनि राज के पावन चरणों में त्रिबार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु। भरे पूरे परिवार में धर्म का बीजारोपण प्रबलता के साथ बढ़ता रहा, गृहस्थ परिवार में धीरे-धीरे अपनी लौकिक शिक्षा बीकॉम तक पूर्ण की। जिस उम्र में युवावस्था का जोश बड़ी किलकारी करने लगता है, रंगीन दुनिया की चकाचौंध अपनी और आकर्षित करती है, मन सुनहरे सपनों को बुनने में व्यस्त हो जाता है। वही मात्र 21 वर्ष की उम्र में दिनेश को वैराग्य का मार्ग अपनी ओर खींचने लगा। वैराग्य की भावना अति प्रबलता के साथ आगे बढ़ने लगी तो 16 नवम्बर 1988 को बरासों भिंड की पावन धरा पर क्षुल्लक दीक्षा प्राप्त कर दिनेश से क्षुल्लक जिनेंद्र सागर नामकरण हुआ। साधना व अति कुशाग्र बुद्धि के कारण वैराग्य के पथ पर आगे बढ़ने का कठोर निर्णय लेकर जैसे ही क्षुल्लक श्री ने कदम बढ़ाया वैसे ही मात्र एक वर्ष बाद 11 अक्टूबर 1989 को मध्यप्रदेश के भिंड जिले की दिगम्बर जैन नशियाँ में मुनि दीक्षा प्राप्त कर मुनि निर्णय सागर के रूप में अपनी वैराग्य यात्रा को आगे बढ़ाने लगे।अब तो मानो जीवन को एक नई दिशा मिल चुकी थी।बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि अध्ययन अध्यापन में रुचि तो थी ही अतः शास्त्रों का लेखन व वाचन भी उत्कृष्टता को प्राप्त होने लगा। वात्सल्य तो आचार्य श्री की क्रियायों व मुखारविंद से टपकता हुआ दिखाई देता है। छोटे से बच्चे से लेकर युवा व बुजुर्गों यहां तक कि स्वयं के संघ में सहज व सरल रहते हुए सभी के लिए समानता का व्यवहार रखते हैं तभी तो आपको वात्सल्य रत्नाकर कहा जाता है।अनेक उपाधियां यथा अभिक्षण ज्ञानोपयोगी,निर्यापक आचार्य, अक्षर शिल्पी, वात्सल्य रत्नाकर, समाधि सम्राट,गणधराचार्य, शाश्वत प्राकृत भाषा चक्रवर्ती आदि से अलंकृत होने के उपरांत भी त्याग,संयम, साधना, चिंतन, मनन, ध्यान, वाणी भूषण जैसे गुणों से आच्छादित नजर आते हैं। श्वेत पिच्छाचार्य विद्यानंद महाराज से मिला आचार्य पद चतुर्विध संघ के कुशल व श्रेष्ठ संचालन से अभीभूत होकर गुरुवर स्वेत पिच्छाचार्य विद्यानंद महाराज ने 3 जनवरी 2015 कुंदकुंद भारती दिल्ली की पावन धरा पर आचार्य पद प्रदान कर संघ संचालक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सुपुर्द की, जिसका निर्वहन करते हुए साधु व साध्वीयों सहित संघस्थ ब्रह्मचारियों व ब्रह्मचारिणी बहनों के बड़े संघ का संचालन कर रहे हैं। आचार्य वसुनंदी महाराज ने अपने कर कमलों से लगभग 50 से अधिक दिगंबर मुनियों व आर्यिका माताओं को दीक्षा प्रदान कर वैराग्य के पथपर आरुण किया है तो अब भी अनेक श्रावक श्राविका जैनेश्वरी दीक्षा लेने कोआतुर नजर आते हैं।
युवाओं के विकास में अहम भूमिका आप के मन मे सदैव युवाओं व किशोरों को आगे बढ़ाने की भावना रहती है,आपके मार्गदर्शन में सम्पूर्ण भारतवर्ष में अखिल भारतवर्षीय धर्म जागृति संस्थान की शाखाएं धर्म सम्मत कार्य मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं तो युवाओं को धर्म से जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। समय समय पर युवा प्रतिभाओं का सम्मान उन्हें प्रेरणा प्रदान कर रहा है।
उत्कृष्ट व शास्त्र सम्मत लेखनी आपकी लेखनी तो बहुत ही उत्कृष्ट होने के साथ-साथ शास्त्र सम्मत भी है आपने लगभग 350 से अधिक पुस्तकों का लेखन व निर्ग्रन्थ ग्रन्थ माला समिति के माध्यम से प्रकाशन करवाया है। अनेक तीर्थो का जीर्णोद्धार एवं शताधिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें,मंदिर निर्माण में आपका सानिध्य एवं मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। वहीं वर्तमान में अंतिम अनुबंध केवली भगवान जम्बू स्वामी की तपोस्थली बोलखेड़ा का कायाकल्प कर संपूर्ण भारतवर्ष के जैन तीर्थ में पहचान दिलवाई है। अजमेर नाका मदार में जिन शासन तीर्थ की संरचना अकल्पनीय व अद्धभुत है आचार्य श्री वसुनंदी महाराज के मुख से निकली वाणी का जो एक बार रसास्वादन कर लेता है वह उन्हीं का होकर रह जाता है।दिगंबरत्व के उन्नयन में आपकी अहम भूमिका है और वर्तमान में ब्रह्म गुलाल की नगरी फिरोजाबाद में संघ सहित विराजमान हैं।
आगामी अनेको पंचकल्याणक प्रतिष्ठाये आपके पावन सानिध्य में अगले 6 माह में सिंहोनिया क्षेत्र सहित,मथुरा चौरासी,डीग,नेमीश्वर धाम जुरहरा,जिनशासन तीर्थ अजमेर, हस्तिनापुर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठाये होना प्रस्तावित है। इसके साथ ही कई धार्मिक व सामाजिक कार्यों की वृहद संरचना बन रही हैं। आज आचार्य पदारोहण दिवस पर सभी भक्तों की तरफ से गुरुवर के चरणों मे सादर नमोस्तु।
चरण चंचरीक:- संजय जैन बड़जात्या कामां,राष्ट्रीय प्रचार मंत्री धर्म जागृति संस्थान

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