इससे आत्महत्या बिल्कुल भिन्न है
क्षुल्लक सुप्रकाश सागरजी महाराज नैनवा जिला बूंदी
महावीर कुमार जैन सरावगी जैन गजट संवाददाता नैनवा जिला बूंदी राजस्थान
नैनवा 7 जनवरी मंगलवार को
आचार्य सुनील सागर महाराज के परम पावन शिष्य क्षुल्लक सुप्रकाश सागर महाराज ने
जैन गजट पेपर के संवाददाता को नेमिनाथ तीर्थ क्षेत्र पर जानकारी देते हुए बताया संलेखना संथारा और समाधि मरण एकार्थवादी शब्द है यह सती प्रथा और आत्महत्या से बिल्कुल भिन्न प्रवृत्ति में है आचार्य समृद्ध भद्र ने 2000 साल पहले लिखा था की अनिवार्य उपसर्ग आपत्ति आने पर उपसर्ग पड़ने पर बुढ़ापा आने पर और घातक रोग होने पर आत्मगुणों की रक्षा के लिए शरीर का त्याग करना ही संलेखना है
अपने शरीर को अच्छी तरह क्षीण कसाइयों विकारों और शरीर को क्षीण करते हुए त्याग देना आक्रोश या क्रोधादिवस सल्लेखना नहीं होती
संथारा प्राकृत भाषा का शब्द है जिसे स्वीकारने के बाद मरण पर्यंत
अन्न जल का त्याग कर दिया जाता है क्षुल्लक महाराज ने यह भी बताया
समाधि मरण मतलब सर्च शांत भावों से आत्मा परमात्मा का स्मरण करते हुए सर्वसंघ त्याग पूर्वक शरीर छोड़ने इसे ऐसे ही कर सकते हैं की इच्छाएं जीवित रहे और व्यक्ति मर जावे इसका नाम आत्महत्या है इच्छाएं मर जावे और फिर व्यक्ति शांति शरीर छोड़े उसका नाम समाधि मरण मुनि ने बताया
महावीर कुमार जैन सरावगी जैन गजट संवाददाता नैनवा जिला बूंदी राजस्थान
Unit of Shri Bharatvarshiya Digamber Jain Mahasabha