तपाचार्य प्रसन्नसागर के चतुर्विध संघ का गाजे बाजे के साथ सदर जैन मंदिर में मंगल प्रवेश
औरंगाबाद प्रसन्नसागर ने कहा कि दिगंबरत्व की भक्ति आराधना ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। संत-वियोग, शत्रु-मित्र, सुख- दुःख में संत समता भाव धारण करते हैं। श्रावक लोभ के कारण समता भाव धारण नहीं कर सकते। जहां जनम है, वहां मरण है। जहां दुःख है, वहां सुख है। जहां दिन है, वहां रात भी है। संत हमेशा कहते हैं, ऐसी स्थिति में समता भाव धारण करना चाहिए। हमेशा गुण ग्रहण करने का भाव होना चाहिए। दोषों पर दृष्टि ना रखें, ऐसी सरल भावना होनी चाहिए। व्यवहार सत्य होना चाहिए। मरने से पहले एक व्रत करना आवश्यक है,
ताकि दुर्गति नहीं होगी। ज्ञान बढ़ने के लिए ज्ञानपच्चीसी व्रत करना आवश्यक है। इसमें भगवान के गुणों की आराधना है। 11 अंग, 14 पूर्व ऐसे पच्चीस गुणों की आराधना कर अनुमोदना करें।अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज कुलचाराम से बद्रीनाथ अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है नागपुर मे कहा की
लोगों को खोने से मत डरो..
बल्कि इस बात पर चिन्तन करो
कहीं लोगों (भक्तों) को खुश करते करते,
तुम खुद को ना खो दो..!
एक विचारक- झरने के पानी को दो सौ फीट की ऊंचाई से गिरते हुये देख रहे थे। उसमें उठ रहे झाग को देखकर विचार कर रहे थे कि यदि कोई इसमें गिर जाये तो जिन्दा ना बच पाये। फिर क्या था – एक बुजुर्ग को उस झाग के बीचों बीच कूदते हुये देखा और वह बुजुर्ग डूब गया, और कुछ देर बाद वह बुजुर्ग 100 मीटर आगे निकला – बालों को झटकारते हुये गीत गा रहा था – आदमी मुसाफिर है,, आता है जाता है।उस विचारक ने पूछा-? मैं समझा आप शरीर छोड़कर चले गये। आप कैसे बच गये-? बुजुर्ग ने बहुत गहरी बात एक लाइन में कह दी – मैं भंवर के साथ डूबता गया और उसने ही हमको बाहर कर दिया।हमने अपना सर्वस्व भंवर को सौंप दिया। इसलिए बच गया, यदि मैं चैलेंज करता तो बच नही पाता।
सब लोगों की हजारों समस्या है और हम आप ज्ञानी बनकर समाधान करने बैठ जाते हैं।ध्यान रखना! लोगों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। क्योंकि सबसे बड़ी समस्या एक ही है – जिसका कोई भी समाधान नहीं है। मूल समस्या एक ही है “अहंकार” — जिसके लिये हम सबसे लड़ भिड़ जाते हैं।यहां हर एक कोई हमारा दुश्मन है — लोग, समाज, आबोहवा, भाग्य और भी बहुत कुछ और हमें इन सबसे जीतना है। कैसे जीत पायेंगे -? समस्या में ही समाधान है। समस्या बीज की तरह होती है, जिसके गर्भ में समाधान छुपा होता है। यदि कोई समस्या आये तो जल्दबाजी में समाधान नहीं खोजें, उस समस्या के भीतर उतरते जायें – आप पायेंगे कि समाधान मिल गया।
समस्या पानी के भंवर जैसी है, उसमें छलांग लगायें और गहरे उतरते जायें। उस समझदार बुजुर्ग ने भंवर को चैलेंज नहीं किया। अपना सर्वस्व अर्पण, समर्पण कर दिया। आप भी समस्या के स्वभाव को समझ लें और समाधान प्राप्त कर लें। उन्हें अपना समझने से क्या फायदा जिनके मन में ना समर्पण हो, न अपनेपन का भाव हो…!!!*
अष्टद्रव्य से पूजन
श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन सदर मंदिर में तपाचार्य प्रसन्नसागर के चतुर्विध संघ का बाजे-गाजे के साथ मंगल प्रवेश हुआ। क्षुल्लिकारत्न विस्मिताश्री व विगम्याश्री का सान्निध्य रहा। अष्टद्रव्य से कमेटी ने पूजन किया। दीप प्रज्वलन सभी मंदिरों के ट्रस्टियों ने किया। चरण प्रक्षाल जेजानी परिवार ने किया। मंगलाचरण विभास गहाणकर ने गाया। संचालन पंकज बोहरा ने किया। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद