नैनवा 26 सितंबर गुरुवार 2024
शांति वीर धर्म स्थल पर जैन मुनि श्रुतेशसागर जी महाराज धर्म सभा को संबोधित करते हुए बताया
मुलाचार ग्रंथ पर जैन मुनि ने बताया की मुनि संसार से सब रिश्ते नाते को छोड़कर अपने आत्म कल्याण के धर्म मार्ग पर बढ़ते हैं
पहले दिगंबर मुनि बिहडो जंगलों में रखकर धर्म साधना करते थे
दिगंबर मुनि बनने पर वह केवल धर्म की साधना का मार्ग पर ही शत उपदेश देते हैं उन्हें किसी परिवार जनों रिश्ते नाते से कोई संबंध ही नहीं रहता सभी प्रकार के दिगंबर मुनि परिग्रह के त्यागी होते हैं
जैन मुनि सभी भक्तों को एक समान समझते हैं कभी अमीर गरीब का मतभेद नहीं रखते
जो भक्त मुनि की सेवा करने का कर्तव्य मानकर करता है निश्चय उसे धर्म लाभ प्राप्त होता है
आज मनुष्य चाहे तो भगवान बनने के लिए उसे कुछ भी नहीं करना पड़ता आत्मा का ध्यान करके ही मनुष्य अपने अशुभ कर्मों से बचने के लिए शुभ कर्म करेगा तो आज भी भगवान बनने की शक्ति मनुष्य में विद्यमान है
पूजा अर्चना दान त्याग करना चाहिए मनुष्य जीवन में ही यह सार्थक कार्य हैं
मनुष्य पर्याय के अलावा अन्य कोई ऐसी पर्याय नहीं है जिसमें धर्म साधना करके मनुष्य भगवान बन सकता है
वस्तु की कीमत समय पर मालूम होती है
प्यासी की कीमत पानी से होती है परमात्मा की कीमत आस्था वाले के पास होती है प्यास लगती है तब पैसा नहीं दिखता जब प्यास लगते थे हिरे जवाहरात देने को तैयार हो जाते हैं पानी का मोल भाव तभी होता है यह प्यास ना लगी हो इसलिए कहा जाता है कि पानी की कद्र पैसे के पास होती है परमात्मा की कद्र आस्था वाले के पास होती है परमात्मा का प्यासा एक समय पल टाइम वेस्ट नहीं गवाता सच्ची आस्था जहां होती है वहीं परमात्मा की कीमत होती है
दिगंबर जैन समाज प्रवक्ता महावीर सरावगी
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