धार्मिक क्रियाओं से पुण्य की उत्पत्ति होती है -मुनिश्री विलोकसागर
जैन मंदिर में मुनिश्री के सान्निध्य में चल रहा है सिद्धचक्र विधान
मुरैना (मनोज जैन नायक) सांसारिक प्राणी को सदैव धार्मिक अनुष्ठान करते रहना चाहिए । धार्मिक क्रियाओं से पुण्य की उत्पत्ति होती है और पुण्य से पापों का क्षय होता है । अपने इष्ट का ध्यान, जप, पूजन करने से सुखों की प्राप्ति के साथ मन की शांति प्राप्त होती है । जहां धर्म होता है, जो लोग धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हैं, वहां धर्म उनकी रक्षा करता है । पुण्य से ही व्यक्ति धनवान और ऐश्वर्यवान बनता है । धर्मात्मा व्यक्ति अपने भावों को शुद्ध रखता हुआ अपने चित्त को शुभता की ओर लगता है । उसके हृदय में सदैव शुभ भाव उत्पन्न होते है । इसलिए हमें सदैव पुण्य का अर्जन करना चाहिए । उक्त उद्गार मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के दौरान बड़े जैन मंदिर मुरैना में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
परम पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर महाराज एवं सराकोद्धारक आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज के आशीर्वाद से, आचार्य श्री आर्जव सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य मुनिश्री विलोक सागर एवं मुनिश्री विबोध सागर महाराज के पावन सान्निध्य एवं संस्कृत विद्यालय के पूर्व प्राचार्य पंडित महेन्द्रकुमार शास्त्री के निर्देशन एवं प्रतिष्ठाचार्य राजेंद्र शास्त्री मगरौनी के आचार्यत्व में आठ दिवसीय सिद्धों की आराधना का आयोजन चल रहा है । विधान के प्रथम दिन 8, द्वितीय दिन 16, तृतीय दिन 32, चतुर्थ दिन 64, पांचवे दिन 128, छठवें दिन 256, सातवें दिन 512 एवं अंतिम दिन 1024 अर्घ्य समर्पित किए जायेगे । पुण्यार्जक परिवार मुन्नालाल, राकेशकुमार, रोबिन जैन, गौरव जैन, सौरभ जैन एवं समस्त चोरम्बार जैन परिवार की ओर से 04 मई से प्रारंभ हुए श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ में 5 मई से 10 मई तक प्रतिदिन प्रातः 5.30 बजे जा, 05.55 बजे अभिषेक, शांतिधारा, नित्यनियम पूजन, 07.40 बजे से विधान, 8.30 बजे मुनिश्री के प्रवचन, शाम 07.30 बजे गुरुभक्ति, आरती, 8.30 बजे शास्त्र सभा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होगें । भजन गायक एवं संगीतकार स्वर लहरी सैंकी एंड पार्टी फिरोजाबाद द्वारा प्रतिदिन संगीतमय गुरु भक्ति, महाआरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगें ।
अंतिम दिन 11 मई को प्रातः विश्व शांति महायज्ञ होगा । महायज्ञ में सभी लोग विश्व शांति की कामना के साथ अग्निकुंड में आहुति देगें । विधान समापन पर श्री जिनेंद्र प्रभु के कलषाभिषेक, सम्मान समारोह एवं आभार प्रदर्शन के पश्चात वात्सल्य भोज का आयोजन रखा गया है ।
मैना सुंदरी ने कराया था सिद्धचक्र महामंडल विधान
जैन सिद्धांतों के अनुसार मैनासुंदरी के पति श्रीपाल को कोढ़ की बीमारी थी । दिगंबर मुनिराज के उपदेशानुसार मैना सुंदरी ने आठ दिवसीय सिद्धचक्र महा मंडल विधान करते हुए सिद्धों की भक्ति करते हुए आठ दिन में 1024 अर्घ्य समर्पित किए थे और प्रतिदिन श्री जिनेंद्र प्रभु के अभिषेक का गंधोदक अपने कोढ़ी पति को लगाया था । जिससे उसके पति एवं अन्य लोगों को कोढ़ समाप्त हुआ था । तभी से श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का महत्व माना जाने लगा है । इसे विधानों का राजा भी कहा जाता है ।