धर्मात्मा का अवगुण, जगजाहिर करने से बचना चाहिए – आचार्य विनिश्चय सागर महाराज

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प्रतिदिन भव्य आत्माएं सुन रहीं हैं मीठे प्रवचन

मुरैना/रामगंजमंडी (मनोज जैन नायक) किसी अज्ञानता के कारण किसी धर्मात्मा का अवगुण आपकी दृष्टि में आ जाए तो उसे जगजाहिर करने से बचना चाहिए ।
लेकिन हमारी आदत तो उसे जगजाहिर करने की है, जब तक उन अवगुणों को हम लोगों से नहीं कह देते है तब तक चैन भी नहीं पड़ती है। उन्होंने कहा लोग दूसरे के दोषों को ऐसे कहते हैं जैसे उस समय अमृत का पान कर रहे हों। बुराई बहुत जोर-जोर से करेगा इसके विपरीत कोई व्यक्ति दूसरों के गुणों का गुणगान करेगा तो बहुत धीरे से करेगा। इस बात पर ध्यान दिलाया कि धर्मात्मा का यदि दोष आपके सामने आ जाए तो पहले उसे वही का वही दबा दो और उसे ढक दो। उन्होंने कहा ऐसा भी सत्य मत बोलो किसी के प्राण संकट में आ जाए । धर्म और धर्मात्मा को परेशान ना करें जिससे धर्म कलंकित हो जाए। लोग धर्म से आस्था घटा ले ऐसा भी सत्य नही बोलना चाहिए। और वह झूठ सत्य से भी बड़ा होता है। उक्त उद्गार धर्म सभा को संबोधित करते हुए बाक्केशरी आचार्यश्री विनिश्चय सागर महाराज ने व्यक्त किए ।
प्राणों से ज्यादा धर्म का संरक्षण करना चाहिए। प्राण चले जाए तो कोई बात नहीं किंतु धर्म नहीं जाना चाहिए। धर्म का संरक्षण करना, धर्मात्मा का संरक्षण करना प्रत्येक साधर्मी का उत्तरदायित्व है।
पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री ने आस्था को ठगने के विषय में कहा की किसी की आस्था को ठगना अपनी आस्था को ठगना है । अपने आप को नरक निगोद भेजना है । अनंत काल के लिए अपने आपको कष्ट पीड़ा के लिए तैयार करना है। धर्मात्मा व्यक्ति किसी को ठग नहीं सकता क्योंकि वह अच्छी तरह से समझता है । ठगने का अर्थ क्या है, ठगने का फल क्या है, वह अच्छी तरह से समझता है। लेकिन धर्मात्मा सहज में ठग जाते हैं, समझ ही नहीं पाते हैं। ठगना अच्छी बात नहीं है, स्वयं को, न दूसरों को । अगर दूसरे को ठग रहे हो तो उस समय तुम समझ लो अपने आप को ठग रहे हो। व्यक्ति की रक्षा करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन धर्म की रक्षा करना अनिवार्य है। धर्म की रक्षा से ही हमारा धर्म सुरक्षित रहता है।
उन्होंने कहा दिमाग मत लगाओ किसी की भूल में, किसी की चूक में । आपके सामने किसी ने रात्रि भोजन का त्याग किया, भूल से उसे ध्यान नहीं रहा और आपके सामने वह रात्रि भोजन करते पाया गया तब चार लोगों को बुलाकर मत कहो । दिमाग मत लगाओ, दिल लगाओ । हो सकता है भूल गया हो, हो सकता है ध्यान नही रहा हो, हो सकता है कि भाव बदल गया हो । समझाओ, बात करो उससे एकांत में ले जाकर । पहले तो ढक दो, उसके बाद ऐसा उपक्रम करो की वह पुनः स्थापित हो जाए । लोग गड्ढा दूसरे के लिए खोदते है लेकिन बाद में खुद उसी में गिर जाते हैं। अग्नि का गोला किसी को मारने के लिए उठाओगे तो पहले कोन जलेगा, स्वयं जलेगे। ऐसे ही अगर आपने धर्मात्मा की बात को ढका नहीं तो आपको इतनी हानि उठानी पड़ेगी कि आप अनंत भवों तक सुलझ नहीं पाओगे। अच्छा तो यह है इसी भव में सुलझने का प्रयास करो और उपगुहन अंग को धारण करो ताकि आत्मा का कल्याण हो सके।

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