श्री सिद्धचक्र विधान में 512 अर्घ समर्पित
मुरैना (मनोज जैन नायक) सांसारिक प्राणी धर्म को यहां वहां ढूंढता फिरता है । वह धर्म को मंदिरों में, पहाड़ों में तलाशता है । लेकिन धर्म कहां है, धर्म तो प्राणी मात्र के अंदर है । प्रत्येक प्राणी के हृदय में धर्म विराजमान हैं। धर्म कोई बाजारू वस्तु नहीं हैं, जिसे बाजार से खरीदा जा सके । धर्म तो अनुभव करने की चीज है । धर्म के प्रभाव से जहर भी अमृत बन जाता है, तलवार की धार भी अपनी प्रकृति बदल लेती है, सर्प भी हार का रूप ले लेता है । धर्म की आराधना करने से सब कुछ शीतल हो जाता है । शास्त्रों में, पुराणों में अनेकों घटनाओं से साबित होता है कि धर्म हमें जीवन जीने की कला सिखाता है । संसार में रहते हुए भी हम धर्म के बल पर सात्विक जीवन जी सकते हैं। धर्म हमें शक्ति देता है, प्रेरणा देता है, हमें दुखों से छुटकारा दिलाता है । उक्त उद्गार दिगम्बर जैन संत मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के दौरान धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
जैन संत ने कहा कि धर्म प्राणी मात्र को जीवन जीने की कला सिखाता है । नफरत में वात्सल्य के बीज अंकुरित करता है, आने वाले संकटों से निपटने की शक्ति देता है ।
धर्म से इंद्रिय सुख भले ही न मिले, लेकिन अतेंद्रीय सुख की प्राप्ति होती है । धर्म सांसारिक प्राणी के दुखों का नाश करता है, धर्म प्राणी मात्र को दुखों से निकालकर सुख की अनुभूति कराता है। जब अपने अपनों से दूर हो जाएं, प्राणी संकटों ओर विषम परिस्थितियों में घिर जाए, आपका कोई सहारा न हो तब धर्म ही हमें सही रास्ता दिखाता है ।
पूज्य मुनिश्री ने बताया कि हमें धर्म की आराधना करते समय अपने इष्ट से यही प्रार्थना करना चाहिए कि हमारी आस्थाएं मजबूत हों । हम पर कैसा भी संकट आ जाए, कैसी भी विपत्ति आ जाए, हम अपने धर्म से दूर न हो जाएं, हे भगवन हमें ऐसी शक्ति देना । धर्म की आराधना करने से जीवन पावन व पवित्र हो जाता है । जब सभी रास्ते बंद हो जाते है तब केवल धर्म का सहारा ही रह जाता है । भगवान राम ने जब सीताजी का त्याग किया था तब सीताजी ने धर्म का ही सहारा लिया था ।
जीवन रूपी नैया को पार करने के लिए धर्म परम आवश्यक है । यदि हम 24 घंटों में से कुछ समय धर्म को देंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा । जिस तरह हमें जीवन जीने की लिए वायु की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार संस्कारित जीवन जीने के लिए धर्म भी अतिआवश्यक होता है ।
22 मई को होगी ज्ञान परीक्षा, सभी को मिलेगें पुरस्कार
पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में 22 मई को आम लोगों के ज्ञान की परीक्षा ली जाएगी । पूज्य मुनिश्री ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी के व्यक्तित्व व कृतित्व से संबंधित 150 प्रश्नों का एक प्रश्न पत्र सभी को वितरित किया जायेगा । आप सभी उस प्रश्नपत्र को घर ले जाकर परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। इस ज्ञान परीक्षा में किसी भी उम्र का, कोई भी जैन अथवा अजैन व्यक्ति सम्मिलित हो सकता है । आगामी 22 मई को बड़े जैन मंदिर के प्रांगण में उसी प्रश्नपत्र के माध्यम से आपकी एक घंटे की परीक्षा होगी । ज्ञान परीक्षा में प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए जायेगें। इस ज्ञान परीक्षा को कराने का उद्देश्य आम लोगों को भगवान महावीर स्वामी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित कराना है ।